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एक्टर्स को भी होमवर्क करना पड़ता है - प्रियंका चोपड़ा

इस बातचीत के समय प्रियंका चोपड़ा भोपाल में थीं। वह प्रकाश झा की फिल्म ‘गंगाजल 2’ की शूटिंग कर रही थीं। इसमें वह आईपीएस अधिकारी आभा माथुर की भूमिका निभा रही हैं। अपनी पहली पोस्टिंग में वह बांकीपुर आती हैं। यहां उन्हें राजनीतिज्ञों के साथ अपने महकमे से भी भिड़ना

By Monika SharmaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 01:11 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 03:19 PM (IST)
एक्टर्स को भी होमवर्क करना पड़ता है - प्रियंका चोपड़ा

इस बातचीत के समय प्रियंका चोपड़ा भोपाल में थीं। वह प्रकाश झा की फिल्म ‘गंगाजल 2’ की शूटिंग कर रही थीं। इसमें वह आईपीएस अधिकारी आभा माथुर की भूमिका निभा रही हैं। अपनी पहली पोस्टिंग में वह बांकीपुर आती हैं। यहां उन्हें राजनीतिज्ञों के साथ अपने महकमे से भी भिड़ना पड़ता है। ‘गंगाजल’ की ही पृष्ठभूमि पर बन रही ‘गंगाजल 2’ की कहानी पहली फिल्म का विस्तार नहीं है। यह एक अलग कहानी है।

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मेरे लिए ही थी फिल्म
कहानी तो इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा के होने की भी खूब चली है। खबर आई कि वह फिल्म कर रही हैं, फिर खबर आई कि नहीं कर रही हैं। आखिरकार वह भोपाल में ‘गंगाजल 2’ की शूटिंग कर रही हैं। इस हां, न और हां के बारे में पूछने पर प्रियंका चोपड़ा ठहाका लगाकर हंसती हैं। वह बताती हैं, ‘पिछले पांच-छह सालों से प्रकाश जी से अलग-अलग फिल्मों को लेकर बातें चलती रही है। इस फिल्म के लिए भी हमारी दो-तीन बार बातें हुईं लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही थी। मैं काम के सिलसिले में लगातार यात्राएं कर रही थी। छह-सात महीने गुजर गए। हम लोग न मिल पाए और न कोई फैसला ले सके। बहरहाल, हमारी मुलाकात हुई। मैं सहमी हुई थी कि डांट पड़ेगी। प्रकाश जी झड़पेंगे कि भला ऐसे कोई इंतजार करवाता है। वे आए और स्पष्ट कहा कि तुम स्क्रिप्ट सुन लो। अगर न करोगी तो मैं नई लड़की कास्ट करूंगा, क्योंकि मुझे प्रोडक्शन चालू करना है। नरेशन सुनने के बाद मैंने साफ शब्दों में कहा ‘आई एम सॉरी’ देरी के लिए, लेकिन यह फिल्म कोई और कर ही नहीं सकता। आप तो स्क्रिप्ट सुनाकर फंस गए। प्रकाश जी हंसने लगे। उन्होंने कहा, ‘इसीलिए तो अभी तक कास्ट नहीं की थी।’ यह मार्च की बात है। मैंने उनसे कहा कि आप जुलाई में कर लें। मैं तब तक ‘बाजीराव मस्तानी’ पूरी कर लूंगी।’

महत्वपूर्ण होता है मुद्दा
‘गंगाजल 2’ के लिए हां कहने की बड़ी वजह प्रकाश झा हैं। फिर भी प्रियंका चोपड़ा अभी जिस पोजीशन पर हैं, वहां फिल्म की कहानी और किरदार भी महत्व रखते हैं। प्रियंका बताती हैं, ‘इस फिल्म का मुद्दा महत्वपूर्ण है। किसानों की आत्महत्या का मसला बहुत बड़ा है। इस मामले में सभी को चुप कर दिया जाता है। लैंड माफिया की वजह से जारी करप्शन से किसान आत्महत्या करते हैं। इस मुद्दे पर फिल्म बनाना जरूरी और प्रासंगिक भी है। हम आखिर क्यों मानकर चलते हैं कि मुद्दों पर बनी फिल्मों में कलाकारों की भागीदारी और प्रतिबद्धता सिर्फ संवाद बोलने तक रहती है।’ क्या स्क्रिप्ट और डायरेक्टर के निर्देश से मिली समझ के आधार पर वे जटिल किरदारों को निभा ले जाती हैं? प्रियंका चोपड़ा ऐसी धारणा से असहमति जाहिर करती हैं। वह कहती हैं, ‘कलाकार केवल पुतले नहीं होते कि आए और संवाद बोलकर चलते बने। कम से कम इस देश के टॉप एक्टर पुतले नहीं हैं, तभी तो वे इस ऊंचाई पर हैं। हमारी समझ रहती है। रिसर्च और होमवर्क तो करना पड़ता है। मैं एक कलाकार हूं। किसी भी मुद्दे पर मैं अपनी आर्ट के जरिए ही बात करूंगी। फिल्मोें के जरिए ही मैं अपनी बातें कहती हूं। मुझे अपनी फिल्मों में ऐसे मौके मिले। ‘बर्फी’ का ही उदाहरण ले लें। इस फिल्म से ऑटिज्म के बारे में दर्शकों की जानकारी बढ़ी। ‘मैरी कॉम’ से कई बातें सामने आईं। खेल की दुनिया में महिलाओं की स्थिति, नार्थ ईस्ट के बारे में प्रचलित पूर्वाग्रह और दूसरी बातें उभर कर सामने आईं।’

औरत का वजूद सेलिब्रेट करें
‘गंगाजल 2’ प्रियंका चोपड़ा के लिए खास फिल्म है। इस फिल्म के लिए उन्हें अलग तैयारी भी करनी पड़ी। प्रियंका बताती हैं, ‘सबसे पहले तो प्रकाश जी ने कहा कि स्टैमिना होना चाहिए। महिला पुलिस अधिकारियों से मिली। उनके वीडियो तैयार किए। मैंने यह भी समझने की कोशिश की कि महिला पुलिस अधिकारियों को देखा कैसे जाता है? खासकर ऐसे राज्यों में, जहां औरतों को अधिकार वाले पदों पर नहीं देखा जाता या ढंग से स्वीकार नहीं किया जाता। यह फिल्म सिर्फ एक महिला अधिकारी के बारे में नहीं है। मैंने यह सावधानी बरती कि साहस और बहादुरी के बावजूद आभा माथुर मर्दों जैसा व्यवहार न करे। मैंने उसे महिला के रूप में ही पेश किया है। जरूरी है कि हम औरत के वजूद को सेलिब्रेट करें। वर्दी पहनने का यह मतलब नहीं है कि वह मर्दो के तौर-तरीके अपना ले। औरत होकर भी आप अथॉरिटी जता सकती हैं।’ इस फिल्म के एक्शन दृश्यों के लिए प्रियंका चोपड़ा को अलग से कुछ सीखना नहीं पड़ा। वह कहती हैं, ‘हैंड टू हैंड फाइट के सीन हैं। मेरे हाथ में हर पुलिस अधिकारी की तरह डंडा है। उसके पास गन भी है लेकिन आभा माथुर को गन का इस्तेमाल पसंद नहीं है। वह रूल बुक से चलना पसंद करती है। वह देश के संविधान में यकीन रखती है। उसे वॉयलेंस पसंद नहीं है।’

घर की भाषा है हिंदी
इस फिल्म के लिए जैसी हिंदी चाहिए थी, उसमें प्रियंका चोपड़ा फर्राटेदार हैं। एक अच्छी बात हुई कि प्रकाश झा की सलाह पर प्रियंका चोपड़ा ने शूटिंग के दौरान हिंदी साहित्य पढ़ना आरंभ किया। प्रियंका गर्वभाव से बताती हैं, ‘मेरी मां खूब हिंदी किताबें पढ़ती थीं। मैं भी उनके साथ पढ़ती थी। फिर आदत छूट गई। नई रुचि जागी है। देखूं कब तक पढ़ पाती हूं। बीच में मैंने उर्दू सीखनी शुरू की थी। वह भी छूट गई। मुझे अफसोस होता है कि अब संपर्क भाषा अंग्रेजी हो गई है। हमारे कामकाज की भाषा भी अंग्रेजी हो चुकी है। फिर भी मैं पूरे फख्र के साथ कहती हूं कि मैं तो घर में हिंदी ही बोलती हूं। मां से मैं हिंदी में ही बातें करती हूं। मेरे घर की भाषा हिंदी है।’

अजय ब्रह्मात्मज

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