Cinema Halls Re-open: 10 फीसदी से अधिक आबादी तक है सिनेमाघरों की पहुंच, दर्शक और सिनेमा का दिलचस्प रिश्ता
Cinema Halls Re-open सिनेमाघरों का खुलना क्यों ज़रूरी था? इसका अंदाज़ा ऑरमैक्स मीडिया की एक रिपोर्ट से हो जाता है जिसमें भारतीय दर्शकों और सिनेमाघरों के बीच गाढ़े संबंध का अध्ययन किया गया है। मीडिया कंसल्टिंग फर्म ऑरमैक्स मीडिया की यह रिपोर्ट भारतीय फ़िल्म उद्योग की अहमियत भी समझाती है।
नई दिल्ली, जेएनएन। केंद्र सरकार ने 'अनलॉक 5' के तहत सिनेमाघरों को खोलने का फ़ैसला किया है और इसके लिए कुछ गाउडलाइंस जारी की हैं, जिनका पालन करना ज़रूरी होगा। कोरोना वायरस पैनडेमिक की वजह से क़रीब 6 महीनों से सिनेमाघरों पर ताले लटके रहे, जिसकी वजह से इंडस्ट्री को करोड़ों की चपत लगी है।
केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से फ़िल्म उद्योग के चेहरे की मुस्कान भी लौटी है। उन्होंने सरकार के इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए आभार जताया। सिनेमाघरों का खुलना क्यों ज़रूरी था? इसका अंदाज़ा ऑरमैक्स मीडिया की एक रिपोर्ट से हो जाता है, जिसमें भारतीय दर्शकों और सिनेमाघरों के बीच गाढ़े संबंध का अध्ययन किया गया है।
मीडिया कंसल्टिंग फर्म ऑरमैक्स मीडिया की यह रिपोर्ट भारतीय फ़िल्म उद्योग की अहमियत भी समझाती है। यह रिसर्च शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 5,600 भारतीयों के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गयी है, जो भारत में थिएटर दर्शक जगत का आकार-प्रकार बताती है। इस सर्वेक्षण के लिए डेटा कोविड-19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन से पहले जनवरी-मार्च 2020 में जुटाया गया था।
प्रति वर्ष औसतन 7 फ़िल्में सिनेमाघर में देखता है दर्शक
'साइजिंग द सिनेमा: एन ऑरमैक्स मीडिया रिपोर्ट ऑन इंडियाज थियेट्रिकल ऑडियंस रीच' शीर्षक से जारी इस रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, 14.6 करोड़ (145.7 मिलियन) भारतीय 2019 में फिल्म देखने के लिए कम से कम एक बार थिएटर (सिनेमाघर) गए। इस तरह भारत में सिनेमाघर की पहुंच इसकी आबादी के 10.5% हिस्से तक है। इन 14.6 करोड़ दर्शकों ने 2019 में 103.0 करोड़ थियेट्रिकल फुटफॉल्स का योगदान दिया। इसे सरल शब्दों में ऐसे समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति हर साल औसतन 7.1 फिल्में (विभिन्न भाषाओं की) सिनेमाघर में देखता है।
शहरी इलाक़ों के मल्टीप्लेक्सेज़ का है बड़ा योगदान
इसी रिपोर्ट से मल्टीप्लेक्सों की अहमियत का भी पता चलता है। रिसर्च के अनुसार, सिनेमाघरों तक पहुंच रखने वालों का 58% हिस्सा शहरी भारत से आता है। ग्रामीण क्षेत्रों में भारत की 69% आबादी रहती है, लेकिन थिएटर जाकर फिल्म देखने वालों में उसका हिस्सा सिर्फ 42% है, क्योंकि उन क्षेत्रों में थिएटर्स की संख्या कम है।
दक्षिण भारत के लोग ज़्यादा 'फ़िल्मी'
दक्षिण भारत बेशक सिनेमाघरों की सबसे ज्यादा पैठ वाला क्षेत्र है। 2019 में वहां 22% आबादी थिएटरों तक पहुंची थी। नतीजतन, यह थिएटर जगत में 44% का योगदान देता है, जो कि भारत की जनसंख्या में इसके 21% हिस्से के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है।
हिंदी (51%), तेलुगु (21%), तमिल (19%) और हॉलीवुड (डब वर्जन्स सहित 15%) शीर्ष 4 भाषाएं हैं, जिनमें भारत के सिनेमाघरों में फिल्में देखी गई हैं।
केरल के लोग देखते हैं विभिन्न भाषाओं का सिनेमा
रिसर्च में भाषा को लेकर भी एक दिलचस्प आंकड़ा सामने आया। एक औसत सिनेमाघर जाने वाला भारतीय 1.4 भाषाओं में फिल्में देखता है। ज्यादा भाषाओं में फिल्में देखने के मामले में केरल (1.7) और महाराष्ट्र (1.6) सबसे आगे हैं।
इस रिपोर्ट और इसके निष्कर्षों के बारे में ऑरमैक्स मीडिया के संस्थापक और सीईओ शैलेश कपूर ने कहा- “14.6 करोड़ दर्शकों वाले भारत के थिएटर जगत का आकार इतना बड़ा तो है कि डेटा की बेहतर गुणवत्ता का होना ज़रूरी है। यह अध्ययन सिनेमाघर जाने वालों की जनसांख्यिकी के साथ-साथ भारत के विभिन्न राज्यों में भाषा के दोहराव (डुप्लीकेशन) को समझने जैसी कई चीजों पर केंद्रित है। यह सिनेमाघरों से जुड़े व्यवसाय के विभिन्न स्टेक होल्डर्स को ज्यादा जानकारियों के आधार पर बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगा।"