मैं स्क्रिप्ट में अपने किरदारों को तलाशता हूं: पवन मल्होत्रा
‘नुक्कड़’ को नए अंदाज में बनाया गया था। उसके 60 एपिसोड थे जबकि मूल शो के केवल 39 एपिसोड थे लेकिन आज भी बात मूल शो की ही होती है। एक बार मैं आस्ट्रेलिया में एक रेस्त्रां में बैठा था।
प्रियंका सिंह, मुंबई। लगातार प्रयोगात्मक किरदार निभा रहे अभिनेता पवन मल्होत्रा हाल ही में डिज्नी प्लस हाटस्टार की वेब सीरीज ‘ग्रहण’ में नजर आए। शो, बढ़ती उम्र के साथ बदलते किरदारों, स्टारडम की बदलती परिभाषा को लेकर उनसे बातचीत के अंश...
आपने ‘पंजाब 1984’ जैसी फिल्म की है। सत्य व्यास की किताब ‘चौरासी’ पर आधारित इस शो की कहानी में भी उन्हीं दंगों का जिक्र है...
हां, लेकिन वह कहानी का बैकड्राप है। शो में युवा कपल के बीच की प्रेम कहानी दर्शाई गई है। साथ ही एक पिता और बेटी की कहानी है। पिता अपनी बेटी से एक राज छुपा रहा है। वह झूठ नहीं बोल रहा, लेकिन सच भी नहीं बता रहा। यह स्क्रिप्ट ‘पंजाब 1984’ फिल्म से बेहद अलग है। मेरी कोशिश होती है कि हर बार अलग किरदार निभाऊं। मैंने कई फिल्मों में सरदार के किरदार निभाए हैं, लेकिन सारे किरदार एक-दूसरे से बहुत अलग रहे हैं। मैं स्क्रिप्ट में अपने किरदारों को तलाशता हूं। जब वह मिल जाता है तो बाडी लैंग्वेज बदल जाती है। काम खत्म होने के बाद मैं उस किरदार के साथ उस पैटर्न को वहीं छोड़ देता हूं।
किरदार निभाने से पहले आपने ‘चौरासी’ उपन्यास पढ़ा था?
हां, ‘चौरासी’ छोटा सा उपन्यास है। उसमें युवा प्रेम कहानी का जिक्र है। मेरा पार्ट उपन्यास में नहीं है। मेरा किरदार शो के लिए लिखा गया है। वैसे वास्तविक जीवन में मैं भले ही सिंगल रहता हूं। प्यार में फेल हुआ हूं, लेकिन मुझे प्यार पर बहुत भरोसा है। मुझे लगता है कि जिसने प्यार और इश्क नहीं देखा, उसकी जिंदगी व्यर्थ है।
आप लगातार फिल्मों और वेब सीरीज में काम कर रहे हैं, उम्र आपके लिए सिर्फ एक संख्या है?
हां, नंबर ही है। मुझे लगता है कि जिस उम्र का किरदार आप निभा रहे हैं, उसके मुताबिक ही नजर आना चाहिए। मुझे किरदार में अच्छा नहीं लगना है, किरदार जैसा लगना है। अब उम्र बढ़ रही है, तो वह तो दिखेगी। जहां तक फिटनेस की बात है, तो हर किसी को फिट रहना चाहिए।
करियर के इस मोड़ पर जहां आपकी अपनी पहचान है, वहां अब जीवन से क्या चाहिए?
स्टारडम और बाकी बातें जो इस पेशे से जुड़ी हैं, मैं उससे बहुत ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखता। मैं जमीन से जुड़ा देसी आदमी हूं। शहर के बच्चों के पैरों में तो मिट्टी भी नहीं लगती है। हम मिट्टी में सन जाते थे, बरसात होते ही सारे दोस्त घर से बाहर निकल आते थे। लोग मुझे पहचानते हैं, लेकिन मैं इस बात का घमंड नहीं करता। कलाकार को हर किसी से बात करनी होती है। जीवन में लोगों से मिलकर ही नए किरदार मिलते हैं। जब आप स्क्रिप्ट से अलग किसी किरदार में अपना योगदान देते हैं, तो अलग चीजें निकलकर आती हैं। मैं तो कहीं भी बैठकर चाय पी लेता हूं, खाना खा लेता हूं। हर बार खुद के लिए अच्छा काम तलाशना भी एक संघर्ष है। लेकिन काम करेंगे, तभी तो फेल होने का चांस होगा। कलाकार को उसके काम करने के तरीकों से जाना जाता है। एक अच्छा काम आपको बहुत अच्छा एक्टर या निर्देशक नहीं बनाएगा, न ही एक खराब काम आपको बुरा बना देगा। अलग-अलग चीजें ट्राई करेंगे, तो अलग किरदार अपने आप कर पाएंगे। कलाकार को भी गलतियां करने का हक है। अगर डरेंगे, तो अभिनय कैसे करेंगे !
क्या लगता है कि ‘नुक्कड़’ जैसे धारावाहिक आज के दौर में भी बनने चाहिए?
मुझे नहीं लगता कि आज की पीढ़ी ‘नुक्कड़’ से जुड़ पाएगी। ‘नुक्कड़’ को नए अंदाज में बनाया गया था। उसके 60 एपिसोड थे, जबकि मूल शो के केवल 39 एपिसोड थे, लेकिन आज भी बात मूल शो की ही होती है। एक बार मैं आस्ट्रेलिया में एक रेस्त्रां में बैठा था। पीछे बैठी एक महिला ‘नुक्कड़’ में मेरे किरदार पर बने गाने को गा रही थी। मैंने उनसे कहा कि यह गाना तो मैं भी भूल गया हूं। वह मुझे देखकर इतनी खुश हुईं। उन्होंने कहा कि मैं उनका क्रश हुआ करता था। ‘बुनियाद’, ‘तमस’, ‘हम लोग’ जैसे शोज लोगों को आज भी याद हैं, जबकि आज तो इतने शोज बन रहे हैं कि लोगों को उनके नाम भी याद नहीं रहते हैं। आज की पीढ़ी को ब्रांडेड कपड़ों और महंगे फोन में ज्यादा दिलचस्पी है। पहले की पीढ़ी रिश्तों पर ज्यादा जोर देती थी।