Smita Patil: 31 साल की जिंदगी में ही सिनेमा को बहुत कुछ दे गईं, पर्दे तक सीमित नहीं रहा अभिनय
Smita Patil Birth Anniversary मशहूर अदाकारा स्मिता पाटिल भारतीय सिनेमा का वो दीपक हैं जिसने अपनी जगमगाहट से सिर्फ समानांतर सिनेमा में ही नहीं बल्कि कॉमर्शियल सिनेमा में अपनी खास पहचान बनाई है और कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। मशहूर अदाकारा स्मिता पाटिल भारतीय सिनेमा का वो दीपक हैं, जिसने अपनी जगमगाहट से सिर्फ समानांतर सिनेमा में ही नहीं, बल्कि कॉमर्शियल सिनेमा में अपनी खास पहचान बनाई है। इस दीपक की जगमगाहट को भारत में ही नहीं विदेश में भी महसूस किया गया। हालांकि, 31 साल की कम उम्र में सिनेमा का ये दीपक बुझ गया और इसकी रोशनी ने भारतीय सिनेमा को हमेशा के लिए गौरवान्वित कर दिया। आज इसी अदाकारा का जन्मदिन है, जिन्हें उनके फैंस याद कर रहे हैं। बता दें कि एक्ट्रेस का जन्म 17 अक्टूबर 1955 को हुआ था और 13 दिसंबर 1986 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।
करीब दो दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाली स्मिता पाटिल राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनके पिता शिवाजी राय पाटिल महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे, जबकि उनकी मां समाज सेविका थीं। अपनी मां की वजह से ही एक्ट्रेस ने बेहतरीन समानांतर फिल्मों में काम किया और महिलावादी विचारधारा के साथ अपनी खास पहचान बनाई। आज भी उनके साथ काम कर चुके साथी एक्टर्स उनकी तारीफ करते हैं और उनके अभिनय के दीवाने हैं।
एंकर से फिल्मों में किया पदार्पण
एक्ट्रेस ने पहले पुणे में पढ़ाई की थी और फिर उनका परिवार मुंबई आ गया। यहां उनकी बड़ी बहन की दोस्त की मदद से उनकी दूरदर्शन मराठी में बतौर एंकर जॉब लग गई। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मराठी टेलीविजन में बतौर एंकर काम करने लगी। इसी दौरान उनकी मुलाकात जाने माने निर्माता-निर्देशक श्याम बेनेगल से हुई। इस वक्त बेनेगल अपनी फिल्म चरण दास चोर बना रहे थे और इस फिल्म में ही एक्ट्रेस को पहली बार मौका मिला। यह फिल्म भारतीय सिनेमा जगत की ऐतिहासिक फिल्मों में से है।
1975 में मिल गया था नेशनल अवॉर्ड
इस फिल्म में स्मिता पाटिल ने इतना अच्छा काम किया कि श्याम बेनेगल को स्मिता पाटिल का नाम भा गया। इसके बाद साल 1975 में श्याम बेनेगल ने एक और फिल्म बनाई, जिसका नाम था निशांत और इस फिल्म में भी स्मिता को ही काम करने का मौका मिला। इसके बाद स्मिता पाटिल ने कई यथार्थवादी फिल्मों में काम किया। उन्होंने 1977 में फिल्म भूमिका में काम किया, जिसमें स्मिता पाटिल ने 30-40 के दशक में मराठी रंगमच की जुड़ी अभिनेत्री हंसा वाडेकर की निजी जिंदगी को पर्दे पर बहुत अच्छी तरह साकार किया। इसके लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और तब से एक्ट्रेस फिल्म इंडस्ट्री का अहम हिस्सा बन गईं।
पर्दे तक सीमित नहीं रही फिल्में
उनकी फिल्में सिर्फ पर्दे तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने समाज में भी काफी असर डाला। दुग्ध क्रांति पर बनी उनकी फिल्म मंथन का इतना प्रभाव पड़ा कि गुजरात के लगभग पांच लाख किसानों ने अपनी प्रति दिन की मिलने वाली मजदूरी में से दो-दो रूपये फिल्म निर्माताओं को दिए थे। उन्होंने फिर 1980 में चक्र में काम किया, इसके लिए भी उन्हें नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 80 के दशक तक उन्होंने लीग से हटकर कई फिल्मों में काम किया, जिससे उनकी पहचान एक अदाकार से बढ़कर हो गई थी। इसके बाद उन्होंने व्यावसायिक सिनेमा की ओर अपना रुख किया।
ये फिल्में हैं खास
इसके बाद उन्होंने नमक हलाल, शक्ति फिल्में कीं। आगे के करियर में एक्ट्रेस ने व्यावसायिक फिल्मों के साथ साथ समानांतर फिल्मों में भी काम किया। उनकी खास फिल्मों में मिर्च मसाला, निशांत, आक्रोश, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, सद्गति जैसी फिल्में शामिल हैं। हिंदी फिल्मों के अलावा स्मिता ने मराठी, गुजराती, तेलुगू. बांग्ला, कन्नड़ और मलयालम फिल्मों में भी अपना कारनामा दिखाया। 1986 में उनके निधन के बाद भी उनकी फिल्म वारिस रिलीज हुई, जिसे आज भी याद किया जाता है।