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Holi 2024: होली के गीतों ने गाढ़े किए हिंदी सिनेमा के रंग, कभी दिल जोड़े कभी हुई ठिठोली

गिले-शिकवे निराशा जातीय भेदभाव व अमीरी-गरीबी के भेद को मिटाकर प्रेम और उम्मीदों के रंगों से सराबोर करने का त्योहार होली जब फिल्मों में दिखता है तो सिनेप्रेमी मस्ती में डूब जाते हैं।। जीवन में रंग भरने व खुशियों का स्वागत करने का यह पर्व फिल्मी कहानियों को सार्थकता देता है। स्वाधीनता से पहले बने सिनेमा से लेकर आधुनिक दौर की अनेक बॉलीवुड फिल्मों में दिखे होली के रंग।

By Rajshree Verma Edited By: Rajshree Verma Published: Fri, 22 Mar 2024 10:13 AM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2024 10:13 AM (IST)
इन फिल्मों में दिखा होली का रंग (Photo Credit: X)

कीर्ति सिंह, नोएडा। फागुन की ऋतु आई रे जरा बांसुरी बजाओ...वर्ष 1940 में बनी ए. आर. कारदार की फिल्म होली के इस गाने में गायिका व अभिनेत्री सितारा देवी ने अपनी आवाज की मिठास से घोला था होली का रंग, वहीं दूसरी ओर फिल्म का शीर्षक और कथानक आपस में बड़ी खूबसूरती से गूंथे गए थे। नफरत व भेदभाव को भुलाकर प्रेम के रंग में डूबने का संदेश देती है होली।

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उसी थीम पर बनी इस फिल्म में अमीरी व गरीबी के भेद को मिटाती दो जोड़ों की प्रेम कहानी थी। श्वेत श्याम सिनेमा के उस दौर के गानों मेंं फागुन व होली की चर्चा होती थी, पर पर्दे पर रंगीन होली पहली बार दिखी दिलीप कुमार व निम्मी की फिल्म आन (1952) के गाने खेलो रंग हमारे संग में..., जिसे लता मंगेशकर और शमशाद बेगम ने आवाज दी थी।

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अंधेरों से निकले नवरंग: सामाजिक फिल्में बनाने के लिए चर्चित फिल्मकार वी शांताराम ने जब पर्दे पर होली को दर्शाने का मन बनाया तो उसके पीछे भी दिलचस्प कहानी थी। फिल्म दो आंखें बारह हाथ (1957) के निर्माण के दौरान वह घायल हुए थे। बैलों से लड़ाई के दृश्य को फिल्माते समय उनकी आंखों पर चोट लगी थी। जब आंखों पर पट्टी बंधी थी, तब अंधकार से जूझते हुए वी शांताराम को लगा कि ऐसी फिल्म का निर्माण करना चाहिए, जिसमें भावनाओं के रंग बिखरे हों और उनका फिल्मांकन भी हो रंगीन।

फिल्म का शीर्षक भी उन्होंने नवरंग रखा, जो वी शांताराम की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म में भरत व्यास के लिखे व आशा भोसले व मन्ना डे के स्वरों से सजे गाने रंग दे रे, जीवन की चुनरिया... में जीवन के प्रति उल्लास झलकता है। वहीं, फिल्म के गीत अरे जा रे हट नटखट... में नायिका संध्या में साहस और अपने काम के प्रति समर्पण दिखता है।

इस गाने में कृष्ण और राधा दोनों की भूमिका में नायिका संध्या हैं। उनकी नृत्य मुद्रा के साथ हाथी और घोड़ा भी तालमेल बिठाते दिखते हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनसे दोस्ती करने के लिए संध्या उन्हें अपने हाथ से चारा खिलाती थीं।

रंग सुख-दुख के: होली के रंगों से जीवन में रंग भरने के भावों को निर्देशक शक्ति सामंत ने फिल्म कटी पतंग (1971) में बखूबी उकेरा। सफेद साड़ी में नायिका आशा पारेख के जीवन में सूनापन दिखता है। अबीर-गुलाल उड़ाती टोली के बीच नायक राजेश खन्ना गाना आज न छोड़ेंगे तुझे हमजोली, खेलेंगे हम होली... गाते हुए उन्हें होली खेलने के लिए आमंत्रित करते हैं।

अबीर-गुलाल के स्पर्श से नायिका के सूने जीवन में भी रंगों की बौछार होती है। फिल्म शोले (1975) में भी होली पर्व को प्रमुखता से दिखाया गया है। गब्बर सिंह का संवाद होली कब है, कब है होली.... के ठीक बाद होली के दिन दिल खिल जाते हैं... गाने में गांव वालों संग थिरकते धर्मेंद्र और हेमा मालिनी के चेहरों पर खुशी के रंग दिखते हैं, पर उसी समय डाकू गब्बर सिंह के हमले के साथ ही कहानी में नाटकीय मोड़ आता है।

पिछली होली पर ऐसे ही एक हमले में डाकुओं ने ठाकुर और उनके परिवार के जीवन को बेरंग कर दिया था। बसंती की भूमिका में दिल जीतने वाली हेमा मालिनी कहती हैं कि वैसे तो होली मस्ती भरा त्योहार है, पर जब होली के गाने फिल्माए जाते हैं तो वह कठिन प्रक्रिया होती है। रंगों में डूबने के साथ बहुत मेहनत होती है। फिल्म आप बीती के गाने नीला पीला हरा गुलाबी... सहित मैंने अनेक होली के गाने किए हैं, पर लोगों के दिलो दिमाग में आज भी शोले का होली गीत बसा है।

प्रेम व विरह: रंगों के उत्साह को हृदय से महसूस करना आवश्यक है, तभी उन भावों को गानों में अभिव्यक्त कर सकते हैं। जन्म से दृष्टिबाधित गीतकार व संगीतकार रवींद्र जैन के लिखे व संगीत से सजे गाने सुनकर एक पल के लिए नहीं लगता कि वे स्वयं रंगों से वंचित रहे होंगे। फिल्म नदिया के पार (1982) में देसी परिवेश में चित्रित गाना जोगी जी धीरे धीरे... आज भी लोगों की जुबान पर है।

राजश्री प्रोडक्शन की इस फिल्म में दो गांवों में रहने वाले नायक-नायिका की कहानी है। इसे फिल्माने की बात आई तो पूर्वांचल में बसे गांवों से बेहतर लोकेशन क्या हो सकती थी। इसकी शूटिंग उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के विजयीपुर व राजेपुर गांव में हुई थी। इसमें देसी परिवेश व स्त्री वेश में पुरुषों के नृत्य करने की परंपरा भी दिखती है। इस गाने में दिख रहे लोग वहीं के ग्रामीण थे।

गाने में अवधी की छाप है, जबकि गायक जसपाल सिंह पंजाबी, नायक सचिन मराठी व गुंजा की भूमिका को जीवंत करने वाली नायिका साधना सिंह मूलत: उत्तर प्रदेश के कानपुर की थीं, पर यह विविधता गाने में एकरंग हो गई और दिलों का स्पर्श करता यह गाना आज भी होली के गानों में शीर्ष पर है।

बाक्स श्रीकृष्ण की दीवानी भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से निवर्तमान सांसद व लोकसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी स्वयं कृष्ण की उपासक हैं। गुलजार की फिल्म मीरा में उन्होंने कृष्ण की दीवानी नायिका मीरा की भूमिका निभाई तो वहीं स्वयं भी वह कृष्ण भजनों को स्वर दे चुकी हैं।

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