'रंग दे बसंती' से लेकर 'शहीद' तक, चंद्रशेखर आजाद के बलिदान को प्रमुखता से दर्शाती हिंदी फिल्में
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। देश के इस लाल के जीवन पर अब तक कई फिल्में बन चुकी। आज चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर उन पर बनी फिल्मों पर बात करेंगे।
आरती तिवारी, जेएनएन। हिंदी सिनेमा में स्वाधीनता संग्राम पर बनने वाली फिल्में चंद्रशेखर आजाद की उपस्थिति के बिना अधूरी हैं। आज उनके बलिदान दिवस (27 फरवरी) पर जागरण डॉट कॉम की पत्रकार आरती तिवारी द्वारा लिखा गया खास आलेख।
यह उन दिनों की बात है जब प्रयागराज के पवित्र संगम में चार नदियां आकर मिलती थीं- गंगा, यमुना, सरस्वती और देशभक्ति। यह उन दिनों की भी बात है जब भरी-पूरी शहरी आबादी होने के बावजूद प्रयागराज में एक शेर निद्र्वंद्व घूमता था। इतिहास गवाह है कि शेर का शिकार हमेशा छल से ही किया जाता रहा है और उस दिन भी यही हुआ था। 27 फरवरी, 1931 को जब अल्फ्रेड पार्क गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज रहा था, तब भी वह सिंहगर्जना शांत नहीं हुई और आज भी मानो यहां आसमान पर लिखा हुआ है- ‘दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद थे, आजाद हैं, आजाद ही रहेंगे।’
स्कूल के दिनों के फैंसी ड्रेस कांप्टीशन से लेकर सिनेमा के बड़े पर्दे तक, चंद्रशेखर आजाद की मौजूदगी दर्शकों में जोश भरती रही है। भारतीय सिनेमा जगत में भले ही खास तौर पर उन पर केंद्रित फिल्में बहुत कम बनीं, लेकिन यह भी सच है कि जंग-ए-आजादी पर बनने वाली कोई भी फिल्म चंद्रशेखर आजाद के बिना पूरी नहीं होती है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में चंद्रशेखर आजाद का प्रभाव सिनेमा जगत पर व्याप्त रहा है। ‘शहीद’ हो या ‘रंग दे बसंती’ चंद्रशेखर आजाद का सूर्य चमकता नजर आता है। हिंदी सिनेमा ने इस वीर क्रांतिकारी को सम्मान दिया है। कई अभिनेताओं ने चंद्रशेखर आजाद का किरदार निभाया और लोगों के सामने उनकी वीरगाथा व स्वाधीनता संग्राम में उनके योगदान को बड़ी गंभीरता से उजागर किया है।
नहीं मिला केंद्रित नामांकन
किस्सा शुरू होता है वर्ष 1963 से। जगदीश गौतम द्वारा निर्देशित ‘चंद्रशेखर आजाद’ में अभिनेता जयराज ने मुख्य भूमिका निभाई थी। मोहम्मद रफी के देशभक्ति गीतों से सजी यह फिल्म शुरुआत थी इस सच्चे राष्ट्रभक्त को बड़े पर्दे पर उतारने की। इसमें कोई दोराय नहीं कि स्वतंत्रता संग्राम में उठाए गए तमाम ऐतिहासिक कदमों पर छाप चंद्रशेखर आजाद की रही। जिन युवाओं को तैयार करने में आजाद के किस्से-कारनामों ने प्रेरणा का काम किया, इसे विडंबना ही कहेंगे कि उन युवा क्रांतिकारियों पर तो तमाम फिल्में बनीं मगर आजाद के प्रति हिंदी सिनेमा मख्य भूमिका में वह शिद्दत नहीं दिखा पाया। इस क्रम में साल 2020 में आई ‘शहीद चंद्रशेखर आजाद’ बड़े पर्दे पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई। फिल्म में हेमेंद्र सिंह सोलंकी ने मुख्य भूमिका निभाई थी।
परोक्ष मगर नितांत आवश्यक
हालांकि, जिस प्रकार चंद्रशेखर आजाद को भगत सिंह की जीवन गाथा बताने वाली फिल्मों में दर्शाया गया, वह इन सभी शिकायतों को कुछ हद तक नजरअंदाज करने में सहायक है। इन फिल्मों में आजाद और भगत सिंह की जुगलबंदी इस खटास को इस हद तक दूर कर देती है कि यह एहसास ही नहीं होता कि हिंदी सिनेमा ने चंद्रशेखर आजाद के साथ पर्याप्त न्याय नहीं किया। वे इन फिल्मों में परोक्ष रहे मगर नितांत आवश्यक अंश की तरह उनकी उपस्थिति पूरी तन्मयता से दर्ज हुई। हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार मनोज कुमार की फिल्म ‘शहीद’(1965) उनके करियर की पहली देशभक्ति फिल्म थी। एस. राम. शर्मा द्वारा निर्देशित इस फिल्म में भगत सिंह का किरदार मनोज कुमार ने और चंद्रशेखर आजाद का किरदार मनमोहन ने निभाया था। इस फिल्म का एक खास संयोग यह भी था कि इसके गीत राम प्रसाद बिस्मिल के कलमबद्ध किए हुए थे।
संयोग या विचारों का टकराव
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि विचारों की कोई सीमा नहीं होती। वे एक ही वक्त में एक से अधिक व्यक्तियों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। इसका प्रमाण था वर्ष 2002 में आई फिल्में ‘द लीजेंड आफ भगत सिंह’ और ‘23 मार्च 1931: शहीद’। सात जून, 2002 को रिलीज हुई इन दोनों फिल्मों का आधार भगत सिंह ही थे। ‘द लीजेंड आफ भगत सिंह’ में अजय देवगन ने भगत सिंह का किरदार निभाया था, वहीं चंद्रशेखर आजाद का किरदार अखिलेंद्र मिश्रा ने निभाकर इसके उच्चतम मानक तय कर दिए थे। दो राष्ट्रीय पुरस्कार और तीन फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित इस फिल्म का निर्देशन राजकुमार संतोषी ने किया था। तो वहीं ‘23 मार्च 1931: शहीद’ में नजर आई थी भगत सिंह के जीवन में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका व उनके आपसी तालमेल की कहानी। इस तालमेल को जीवंत किया था बाबी देओल और सनी देओल की जानदार बांडिंग ने। फिल्म में भगत सिंह की भूमिका में बाबी देओल और चंद्रशेखर आजाद की भूमिका में उनके बड़े भाई सनी देओल नजर आए।
एक ही दिन रिलीज हुई इन दोनों फिल्मों ने दर्शकों को असमंजस में डाल दिया था कि किस फिल्म को पहले सिनेमाघरों में जाकर देखें, उसी प्रकार यह तय करना आज भी मुश्किल ही है कि चंद्रशेखर आजाद के किरदार में अखिलेंद्र मिश्रा (‘द लीजेंड आफ भगत सिंह’) और सनी देओल (‘23 मार्च 1931: शहीद’) में से किसे प्रमुखता दी जाए। दोनों के द्वारा निभाए गए अल्फ्रेड पार्क में हुई मुठभेड़ और चंद्रशेखर आजाद की गौरवशाली शहादत के दृश्य आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं। इसके बाद इसी साल रिलीज हुई सुकुमार नायर द्वारा निर्देशित ‘शहीद-ए-आजम’ में भगत सिंह का किरदार सोनू सूद ने निभाया था। फिल्म में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका में राज जुत्सी और राजगुरु की भूमिका में देव गिल नजर आए थे।
युवाओं के दिलों पर छाए आजाद
चंद्रशेखर आजाद स्वयं किशोरावस्था से ही अंग्रेजों की नाक में दम करने लगे थे। जैसे-जैसे उम्र युवावस्था के पायदान पर पहुंची, उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई थी। उनके नारे, बुलंद आवाज और निडर योजनाएं युवाओं को जोश से लबरेज करने के लिए काफी थीं। आजाद की इन्हीं प्रेरक बातों से प्रभावित होने का एक रंग नजर आया 2006 में आई फिल्म ‘रंग दे बसंती’ में। चंद नौजवान मात्र एक डाक्यूमेंट्री फिल्म की शूटिंग के दौरान इन क्रांतिकारियों की सोच से वाकिफ होते हैं और उनसे प्रेरित होकर देश बदलने निकल पड़ते हैं। इसमें परोक्ष रूप से चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों की कहानी दिखाई गई। राकेश ओमप्रकाश मेहरा का सटीक निर्देशन और चंद्रशेखर आजाद का किरदार निभाने में आमिर खान का परफेक्शन फिल्म को सफलता की ऊंचाइयों तक ले गया था।