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Bollywood movies on War: युद्ध की कहानियां खंगालते फिल्ममेकर्स, जल्द दर्शकों को मिलने वाला है इन फिल्मों का खास तोहफा

पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन के साथ हुई झड़प और युद्ध को कई फिल्मों और वेब सीरीज के जरिए पर्द पर दिखाया गया है। युद्ध में विजय ने हर देशवासी का सीना गर्व से चौड़ा किया हैं। हालांकि एक युद्ध के पीछे सैकड़ों कहानियां छिपी होती होती है।

By Anand KashyapEdited By: Published: Sun, 31 Jan 2021 09:03 AM (IST)Updated: Sun, 31 Jan 2021 04:23 PM (IST)
भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया और शेरशाह, Instagram : ajaydevgn/sidmalhotra

प्रियंका सिंह, दीपेश पांडेय। पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन के साथ हुई झड़प और युद्ध को कई फिल्मों और वेब सीरीज के जरिए पर्द पर दिखाया गया है। युद्ध में विजय ने हर देशवासी का सीना गर्व से चौड़ा किया हैं। हालांकि एक युद्ध के पीछे सैकड़ों कहानियां छिपी होती होती है। इन्हीं अलग-अलग पहलुओं को अब फिल्ममेकर्स खंगाल रहे हैं। उस युद्ध में शामिल शूरवीर जवानों की कहानियों में दिलचस्पी ले रहे हैं। युद्ध में थलसेना, वायुसेना और जलसेना ने अपनी-अपनी भूमिकाएं कैसे निभाई है, उस पर अब मेकर्स कहानियां तलाश कर पेश कर रहे हैं। आने वाले दिनों में ऐसी कई फिल्में और वेब सीरीज आएंगी।

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यह फिल्में दिखाएंगी युद्ध का दूसरा पहलू

साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान के युद्ध पर बॉर्डर, 1971, द गाजी अटैक, राजी जैसी तमाम फिल्में बनी हैं। अब भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया, पिप्पा जैसी फिल्में इस युद्ध का दूसरा पहलू दिखाएंगी। भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया युद्ध के दौरान वायुसेना के शौर्य को सामने लेकर आएगी,जब भुज में पाकिस्तान द्वारा क्षतिग्रस्त हुई हवाई पट्टी को रातों-रात उस समय एयर फोर्स बेस कमांडर रहे स्क्वाड्रन लीडर विजय कुमार कर्णिक के नेतृत्व में 300 ग्रामीण महिलाओं ने मिलकर दुरुस्त कर दिया था। फिल्म में अजय देवगन स्क्वाड्रन लीडर विजय कुमार कर्णिक का किरदार निभा रहे हैं। वहीं पिप्पा इसी युद्ध के दौरान 45वें कैवेलरी टैंक स्क्वाड्रन के दिग्गज ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता की कहानी बयां करेगी, जिन्होंने पूर्वी मोर्चे पर यह युद्ध अपने भाई-बहन के साथ मिलकर लड़ा था। मेघना गुलजार सैम मानेकशॉ पर फिल्म बनाने की तैयारी में हैं। मानेकशॉ 1971 के युद्ध के समय भारतीय सेना के अध्यक्ष थे। निर्माता, अभिनेता निखिल द्विवेदी भी 1971- भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित फिल्म कि घोषणा कर चुके हैं, जो बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के आसपास होगी। साल 1971 युद्ध में शहीद हुए अरुण खेत्रपाल की बायोपिक वरुण धवन करेंगे।

साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध पर लक्ष्य, एलओसी कारगिल, धूप, गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल जैसी फिल्में बनी हैं। हाल ही में अमित साध अभिनीत वेब सीरीज जीत की जिद भी कारगिल युद्ध के नायक दीपेंद्र सिंह सेंगर की जीवनी से प्रेरित थी। अब सिद्धार्थ मल्होत्रा इस जंग में शहीद हुए परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा के अदम्य साहस और वीरता की कहानी फिल्म शेरशाह में बयां करेंगे।

साल 1981 में अपनी टीम के साथ मिलकर 24000 फीट ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराने वाले कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार की बायोपिक की भी घोषणा हो चुकी है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों में से एक सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की पकड़ बनाए रखने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। निर्माता रमन छिब और अंकू पांडे ने उनकी जीवनी को पर्दे पर उतारने के राइट्स लिए हैं। साल 1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध पर हकीकत,72 ऑवर्स-मार्टर हू नेवर डाइड, जैसी फिल्में बनी हैं। अब डिज्नी प्लस हॉटस्टार की नई वेब सीरीज 1962 – द वॉर इन द हिल्स की पहली झलक भी जारी हो गई है। सीरीज का निर्देशन महेश मांजरेकर ने किया है। अभिनेता अजय देवगन गलवन घाटी में बीते साल चीनी सैनिक और हिंदुस्तानी सैनिकों के बीच हुई झड़प में शहीद हुए 20 सैनिकों के शौर्य पर फिल्म बनाने की घोषणा की है।

शूरवीरों पर फिल्म बनाना जिम्मेदारी का काम

बॉर्डर पर लड़ी गई लड़ाई के अलावा उस लड़ाई को लड़ने वाले शूरवीरों की जीवनी को दर्शाने को लेकर सैम मानेकशॉ पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहीं मेघना गुलजार का कहना रहा है कि फिल्ममेकिंग जिम्मेदारी का काम है। जब असल जीवन पर फिल्में बनती हैं तो यह जिम्मेदारी दोगुनी हो जाती है, क्योंकि उसमें विश्वसनीयता बहुत जरूरी हो जाती है। जब ऐसी फिल्मों में वास्तविक लोग जुड़े होते हैं, फिर भले ही वह जीवित हो या नहीं, यह कोशिश करनी होती है कि किसी की भावना को ठेस न पहुंचे। मानेकशॉ फिल्म देशभक्ति और 1971 के भारत- पाकिस्तान युद्ध पर आधारित नहीं है। वह उस शख्सियत पर आधारित है, जो उनकी जिंदगी के कई पहलुओं को दर्शाएगी। उनकी देशभक्ति उनकी सोच और उनके डायलॉग्स में आपको दिखेगी। अगर वह कैसेनोवा है और फ्लर्ट हैं, तो वह भी दिखेगा। अगर वह अपने प्रधानमंत्री से टक्कर लेते हैं, तो वह रूप भी नजर आएगा।

युद्ध फिल्म में पारिवारिक एंगल महत्वपूर्ण करने वाले निर्देशक अश्विनी चौधरी कहते हैं कि युद्ध में कई कहानियां कहने का स्कोप है। मैं धूप फिल्म को पोस्ट वॉर फिल्म कहता हूं। वह फिल्म बॉर्डर की लड़ाई नहीं, बल्कि शहीद जवान के परिवार के बारे में थी। वह मानवीय कहानी थी कि जो देश के लिए शहीद होता है, उसे लोग चंद दिनों बाद भूल जाते हैं। पहले कहानियां मुख्य तौर पर सीमा पर आधारित होती थी, उनके घर छोटा सा हिस्सा फिल्म में दिखाया जाता था। लेकिन उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक में परिवार का एंगल था। जब फिल्म में परिवार, मां, बहन का एंगल जुड़ जाता है, तो उनकी भावनाएं दर्शकों के साथ ज्यादा कनेक्ट होती हैं। फिल्म की पहुंच बढ़ जाती है। दुनिया भर में जो भी युद्ध पर कल्ट फिल्में बनी हैं, उनमें परिवार की कहानियां हमेशा काम करती हैं। हालांकि इन सब से परे देशभक्ति का जज्बा दिखाना भी मेकर्स के लिए उतना ही जरूरी है।

युद्ध के नायकों की कहानी करती है प्रभावित

फिल्म शेरशाह में कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार निभाने वाले अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा कहते हैं कि फिल्ममेकर की कोशिश यही होती है कि अगर हम एक सैन्यकर्मी की फिल्म बना रहे हैं, तो उसमें उसके सफर के साथ उसकी लवस्टोरी भी शामिल हो। जब एक किरदार के आसपास फिल्म होती है, तो बारीकी में जाने का मौका मिलता है। कैप्टन विक्रम के जीवन से बहुत सी चीजें सीखी हैं। उनकी एक पर्सनैलिटी थी। उनमें एक अनुशासन था।कितनी शिद्दत से वह इस जॉब को करते थे और किसी भी युद्ध के लिए वह पूरे साल खुद को तैयार रखते थे। इसके लिए एक अलग मानसिक मजबूती चाहिए। अनुशासन जितना जरूरी एक जवान के लिए है, उतना ही जरूरी एक्टर के लिए भी है। हालांकि जवानों का काम हमसे दस गुना ज्यादा मुश्किल है। वह देश के लिए अपनी जान लगा रहे हैं।

शहादत से ज्यादा जीवन सफर दिखाना जरूरी

वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करने के बाद साल 2008 में मुंबई पर हुए 26/11 के आतंकी हमले में शहीद हुई मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बॉयोपिक मेजर में उनका किरदार निभा रहे अभिनेता अदिवी शेष का कहना है कि मेजर संदीप की जैसे रीयल हीरोज की कहानियां लोगों के बीच पहुंचना जरूरी है। 26/11 के हमले में वह शहीद कैसे हुए यह तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन उससे ज्यादा यह दिखाना जरूरी है कि उन्होंने जिंदगी कैसे गुजारी। हमारी फिल्म में एक डायलॉग भी है कि यह कहानी उनकी शहादत की नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी के बारे में है। हम यह फिल्म मेजर संदीप के नजरिए से बना रहे हैं। कारगिल युद्ध के दौरान मेजर संदीप 7 बिहार रेजीमेंट में कैप्टन थे। उनकी जिंदगी कई युवाओं को प्रेरित करेगी।

देशप्रेम और अभिनय दोनों जरूरी

युद्ध पर बनी फिल्में मल्टीस्टारर होती हैं। जबकि इन दिनों बन रही फिल्में उन युद्ध में शामिल हुए जवानों पर बन रही हैं। साल 1962 युद्ध के बाद साल 1967 में भारत-चीन के बीच नाथू ला और चो ला के बीच सैन्य झड़प हुई थी। इस पर बनी फिल्म पलटन में मेजर हरभजन सिंह का किरदार निभाने वाले अभिनेता हर्षवर्धन राणे का कहना है कि मैं झूठ नहीं कहूंगा, लेकिन कई बार इन फिल्मों में अपनी स्क्रीन टाइमिंग को लेकर ख्याल आता है। लेकिन वह ख्याल पीछे छूट जाता है, जब आप यूनिफॉर्म पहनते हैं। हालांकि जब फिल्म व्यक्ति विशेष पर होती है, तो अभिनय दिखाने का मौका ज्यादा मिलता है। देशप्रेम आपके जीवन का हिस्सा है, लेकिन आप यहां एक्टिंग करने आए हैं। हालांकि मैं पलटन में बैकग्राउंड आर्टिस्ट का रोल भी कर लेता, क्योंकि फिल्म में यूनिफॉर्म पहनने का मौका मिल रहा था। मेरे दादा कर्नल थे, इसलिए वर्दी से अलग किस्म का लगाव है। मैंने टीवी सीरियल लेफ्ट राइट लेफ्ट भी इसलिए किया था, क्योंकि यूनिफॉर्म पहनने का मौका मिल रहा था। उसके बाद मैंने टीवी में कभी काम नहीं किया। यूनिफॉर्म वाले किरदार की तैयारी सिविल किरदार से अलग होती है। जब आप किसी शहीद का किरदार निभाते हैं, तो काम इतनी सच्चाई से करना पड़ता है कि जब उनका परिवार देखे तो उनके चेहरे पर मुस्कान हो। मैं आज भी मेजर हरभजन की बहन के संपर्क में हूं, जन्मदिन और त्योहारों पर हम एक-दूसरे को विश करते हैं। मैं उनका कोई नहीं हूं, लेकिन मैंने उनके भाई का किरदार निभाया था, जिसने हमें जोड़े रखा है।

सदाबहार विषय

युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्में निर्माताओं के लिए एक सदाबहार विषय हैं। पिछली सदी के नौवें दशक से पहले ज्यादातर निर्माता अंग्रेजों को खिलाफ हुए संघर्षों पर फिल्में बनाते थे। आजादी के बाद भारत को तीन-तीन युद्ध लड़ने पड़े। जिनमें मातृभूमि के लिए सब कुछ समर्पित कर देने वाले तमाम नायकों की कहानियां सामने आई। ट्रेड विशेषज्ञ गिरीश जौहर का कहना है कि युद्ध की पृष्ठभूमि वाली फिल्मों में फिल्मकारों को एक्शन, ड्रामा और इमोशन समेत वह सारी चीजें मिल जाती हैं। जो एक अच्छी फिल्म के जरूरी होती है। ऐसी फिल्मों से दर्शकों का भावनात्मक लगाव भी होता है। हर युद्ध को राजनीतिक, किसी व्यक्ति विशेष, युद्ध स्थल या उससे प्रभावित लोगों समेत तमाम अलग-अलग नजरिए देखा जा सकता है। लिहाजा एक ही युद्ध से जुड़ी तमाम कहानियां लोगों के सामने आ रही है। सेना, युद्ध और देशभक्ति से जुड़े विषय सदाबहार हैं। इन पर पहले भी फिल्में बनती थी, अब भी बन रही हैं और आगे भी बनेंगी।’ 


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