Move to Jagran APP

बॉलीवुड में Sequels का हैरान करने वाला इतिहास, पहले सीक्वल का किरदार भी था 'बाग़ी'

आम तौर फ़िल्मों के सीक्वल्स पहले भाग की रिलीज़ के कुछ सालों के अंदर ही बनाने की परंपरा रही है, मगर कई बार पार्ट2 के लिए कई साल इंतज़ार करना पड़ता है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Tue, 06 Mar 2018 06:36 PM (IST)Updated: Fri, 30 Mar 2018 07:27 AM (IST)
बॉलीवुड में Sequels का हैरान करने वाला इतिहास, पहले सीक्वल का किरदार भी था 'बाग़ी'
बॉलीवुड में Sequels का हैरान करने वाला इतिहास, पहले सीक्वल का किरदार भी था 'बाग़ी'

मुंबई। बॉलीवुड में आज कल सीक्वल फ़िल्मों का चलन काफ़ी बढ़ गया है। कई फ़िल्मों के दूसरे, तीसरे या चौथे भाग दर्शकों के बीच पहुंच रहे हैं। 2018 भी इस चलन से अछूता नहीं है। बाग़ी2, हेट स्टोरी4, रेस3, टोटल धमाल, यमला पगला दीवाना फिर से जैसे सीक्वल इस साल रिलीज़ हो रहे हैं। इनमें कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिनमें मुख्य किरदारों की पुनरावृत्ति हो रही है, जबकि कहानी नई होगी। वहीं, कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिनमें कहानी के साथ मुख्य किरदार भी बदल जाते हैं, बस शीर्षक वही रहता है।

loksabha election banner

आम तौर फ़िल्मों के सीक्वल्स पहले भाग की रिलीज़ के कुछ सालों के अंदर ही बनाने की परंपरा रही है, मगर कई बार पार्ट2 के लिए कई साल इंतज़ार करना पड़ता है। ऐसी ही फ़िल्मों का ज़िक्र इस लेख में, जिनकी सीक्वल आने में सालों लग गये।

अंखियों के झरोखों से- 33 साल बाद आया सीक्वल

1978 में हीरेन नाग की फ़िल्म अंखियों के झरोखों से आयी थी। ताराचंद बड़जात्या निर्मित इस रोमांटिक फ़िल्म में सचिन पिलगांवकर और रंजीता ने मुख्य किरदार निभाये थे। अंखियों के झरोखों से ट्रैजिक लव स्टोरी थी, जिसमें रंजीता के किरदार की क्लाइमैक्स में मौत हो जाती है। फ़िल्म का संगीत हिट रहा और फ़िल्म सुपर हिट रही। पूरे 3 दशक बाद इस फ़िल्म का सीक्वल 2011 में जाना पहचाना शीर्षक से आया। फ़िल्म के मुख्य किरदार वही रहते हैं, लेकिन कहानी 33 साल आगे बढ़ चुकी है। सचिन के किरदार अरुण के पास धन-दौलत की कमी नहीं है, मगर प्रेमिका लिली को कैंसर की वजह से खोने के कारण अवसाद में रहता है। अरुण लिली की याद में एक कैंसर मरीज़ों के लिए अस्पताल चलाता है। उसकी ज़िंदगी में तब उथल-पुथल मचती है, जब लिली की हमशक्ल आशा उसकी ज़िंदगी में दाखिल होती है। कुछ उतार-चढ़ाव के बाद अरुण को अपना प्यार मिल जाता है। अंखियों के झरोखों से जहां बेहद कामयाब फ़िल्म थी, वहीं जाना पहचाना फ्लॉप रही।

29 साल बाद ज्वैल थीफ़ की वापसी

विजय आनंद निर्देशित ज्वैलथीफ़ 1967 में रिलीज़ हुई थी। ज्वैलथीफ़ चोरी पर आधारित बेहतरीन थ्रिलर फ़िल्मों में शामिल है। देव आनंद, वैजयंतीमाला और अशोक कुमार ने फ़िल्म में मुख्य किरदार निभाये थे। देव आनंद ने डबल रोल प्ले किया था। 29 साल बाद 1996 में देव आनंद ने ज्वैल थीफ़ का सीक्वल रिटर्न ऑफ़ ज्वैल थीफ़ का निर्माण किया, जबकि निर्देशन अशोक त्यागी का था। रिटर्न ऑफ़ ज्वैल थीफ़ की कहानी नई हो गयी, जबकि ज्वैल थीफ़ से इसका जुड़ाव देव आनंद और अशोक कुमार के किरदारों के ज़रिए होता है। धर्मेंद्र, जैकी श्रॉफ, प्रेम चोपड़ा और सदाशिव अमरापुरकर फ़िल्म में मुख्य किरदारों में शामिल हुए। वहीं, शिल्पा शिरोडकर, अनु अग्रवाल और मधु महिला किरदारों में दिखायी दीं। ये बात अलग है कि ये सीक्वल पहली फ़िल्म के आस-पास भी नहीं ठहरता।

26 बाद सनी देओल फिर हुए घायल

1990 में आयी घायल सनी देओल के करियर की सबसे यादगार और बेहतरीन परफॉर्मेंसेज़ में शामिल है। राज कुमार संतोषी ने फ़िल्म का निर्देशन किया था, जबकि धर्मेंद्र इसके प्रोड्यूसर थे। मीनाक्षी शेषाद्रि फ़िल्म की नायिका थीं। 2016 में सनी देओल ने इसी फ़िल्म के सीक्वल घायल वंस अगेन के साथ बतौर निर्देशक वापसी की। सीक्वल में दिखाया गया कि सनी का किरदार अजय मेहरा बलवंत राय का क़त्ल करने के बाद सज़ा पूरी करके जेल से बाहर आ चुका और अब शराफ़त की ज़िंदगी गुज़ार रहा है। मगर, परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि एक बार फिर वो साजिशों के जाल में फंस जाता है। कहानी का विलेन इस बार भी एक बिज़नेस टाइकून है। आंचल मुंजाल, सनी की बेटी के रोल में थीं, जबकि फ़िल्म की नायिका सोहा अली ख़ान बनीं। ये सीक्वल उतना नहीं चला, जितना पहला भाग।

हिंदी सिनेमा का पहला सीक्वल

बॉलीवुड में फ़िल्मों के सीक्वल लंबे अर्से से बनते रहे हैं, लेकिन नई सदी की शुरुआत के साथ इस चलन ने रफ़्तार पकड़ी। साठ, सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशकों में फ़िल्ममेकर्स सीक्वल्स बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाते थे। अगर 2000 से पहले के सिनेमा पर ग़ौर करें तो अस्सी के दशक में नगीना का सीक्वल निगाहें ही ज़हन में आता है। नगीना 1986 में आयी थी, जबकि निगाहें 1989 में रिलीज़ हुई थी। हालांकि ये जानकर आप चौंक जाएंगे कि हिंदी सिनेमा में सीक्वल की शुरुआत बीसवीं सदी के चौथे दशक में ही हो गयी थी। हिंदी सिनेमा का पहला सीक्वल हंटरवाली की बेटी को माना जाता है, जो 1943 में रिलीज़ हुई थी। ये 1935 में आयी हंटरवाली का सीक्वल थी दोनों फ़िल्मों में फियरलेस नाडिया ने मुख्य किरदार निभाया था, जो एक वुमन सुपर हीरो का था। रंगून में कंगना रनौत का किरदार फियरलेस नाडिया पर ही आधारित दिखाया गया था।

यह भी पढ़ें: टाइगर श्रॉफ़ फिर हुए बाग़ी, 2018 में लगी है सीक्वल्स की रेस


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.