‘पीहू’ के रिलीज़ पर भावुक हुए इस नन्हीं कलाकार के पिता, लिख डाली इमोशनल पोस्ट
फ़िल्म को लेकर और क्या-क्या हुआ हमारी ज़िंदगी में। फ़िल्म की शूटिंग में क्या-क्या हुआ? ये सब एक दिन पीहू पढ़ सके इसलिए..
मुंबई। दो साल की बच्ची को केंद्र में रखकर बनी फ़िल्म ‘पीहू’ इसी शुक्रवार यानी 16 नवंबर को रिलीज़ हो गयी है। पत्रकार से फिल्म डायरेक्टर बने विनोद कापड़ी की फ़िल्म ‘पीहू’ ट्रेलर के आने के बाद से ही चर्चा में है। दो साल की बच्ची को इस तरह से फ़िल्म में देखना सभी के लिए एक नया और अलग अनुभव है।
फ़िल्म में पीहू का किरदार मायरा विश्वकर्मा ने निभाया है। इस बच्ची की हर तरफ तारीफ़ हो रही है। बहरहाल, मायरा (पीहू) के पिता रोहित विश्वकर्मा ने सोशल मीडिया पर आज एक भावुक पोस्ट शेयर की है, जिसमें पीहू पर उनका अनुभव पढ़ा जा सकता है। रोहित लिखते हैं-
“फ़िल्म आज रिलीज़ हो रही है। देश दुनिया के करीब-करीब करोड़ लोग अब तक फिल्म का ट्रेलर देख चुके हैं कुछ ने फ़िल्म भी देख ली है। हम (मैं और प्रेरणा) जितनी बार भी फ़िल्म को देखते हैं उसके हर सीन को हम जीते हैं। सब कुछ सपने जैसा लगता है, जैसे अभी तो शूटिंग चल रही थी, फ़िल्म में पीहू की मां प्रेरणा शर्मा और मैं उसके सौ फीसदी सीन से सीधे जुड़े हुए हैं। जुड़े होने का मतलब ये नहीं की हम सेट पर मौजूद थे। बल्कि इसका मतलब है कि पीहू का हर सीन हमने पूरा कराया है।
हर दिन शूटिंग से पहले स्क्रीनप्ले यानी पटकथा सुनकर पीहू से सीन कैसे कराया जाएगा ये हमारा काम होता था। ठीक उसी तरह जैसे फ़िल्म में EP या फिर फ़िल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर काम करते हैं। कमोबेश वैसे ही हमने इस फ़िल्म में काम किया है। इस फ़िल्म के हर सीन को पीहू के बाल मन ने जिया है। जिस वक्त वो रो रही है वो वाकई रो रही है। जब वो हंस रही है, वो वाकई हंस रही है। और जब वो पानी में फिसल कर गिरती है तो वाकई गिरती है। पढ़ने में अजीब और क्रूर लग सकता है।
लेकिन, एक ऐसे माता पिता की मौजूदगी में ये सोचना गलत होगा जिनके लिए बच्चा उनकी कमाई का जरिया नहीं। बल्कि दिल का वो टुकड़ा है जिसके बिना इंसान जिंदा नहीं रह सकता। हां कई सीन में मुश्किल आई भावनाओं ने आंख भर दिए। कई बार हमने पापड़ बेले। फूट-फूटकर रो भी पड़ा। पीहू की हरकतों से खिलखिलाकर हंस भी दिए और कई बार खुद से सवाल किए। हर बार मन ने यही जवाब दिया कि एक ऐसी कहानी दुनिया के सामने रखनी है जो पीहू जैसे बच्चों से जुड़ी है।
अगर पीहू हमारे कलेजे का टुकड़ा है तो बाकी सारे भी तो ऐसे ही हैं। पूरी शूटिंग करीब महीने भर में पूरी हो गयी। जिसका तकरीबन पूरा हिस्सा सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही शूट होता था। वो किसी मॉडल की तरह सिर्फ कैमरों पर पोज देने नहीं आती थी। जैसे एक कलाकार अदाकारी के लिए किरदार को जीता है वैसे पीहू के बाल मन ने भी हर सीन को जिया है। लेकिन, पीहू फ़िल्म में अभिनय नहीं बल्कि सच में भावनाए दे रही है। हर कोई पूछता है कि बच्चे को रुलाया कैसे? हंसाया कैसे? बच्चे से ये कैसे कराया वो कैसे कराया? ये सारी बातें फ़िल्म रिलीज़ के बाद होंगी। बस इतना कहूंगा कि माता-पिता ये जानते हैं कि बच्चा किन हालात में क्या करता है और क्या कर सकता है?
फ़िल्म को लेकर और क्या-क्या हुआ हमारी ज़िंदगी में? फ़िल्म की शूटिंग में क्या-क्या हुआ? ये सब एक दिन पीहू पढ़ सके इसलिए लिखूंगा.. ताकि पीहू हमारे फैसले पर गर्व कर सके, विनोद जी ने बड़ी हिम्मत का काम किया जो इस विषय पर फ़िल्म बनाने की सोची और उसे रिलीज तक लेकर आए और शूटिंग के दौरान फ़िल्म के प्रोड्यूसर किशन जी का पीहू पर प्यार तो बयां ही नहीं किया जा सकता… आज भी पीहू उनके दिए तोहफों से खेलती है… उम्मीद करूंगा कि पीहू की मेहनत आप सभी की ज़िंदगी में बदलाव लाएगी! जरूर देखिएगा 16 नवंबर को पीहू!!”