अलविदा कादर ख़ान: वो 'सिविल इंजीनियर' जिसकी लिखी लाइनें बोलकर अमिताभ बच्चन ने बटोरीं तालियां
संयोग देखिए, रियल लाइफ़ में अमिताभ बच्चन ने कुछ समय के लिए सियासत ज्वाइन की थी, तब कादर ख़ान को उनका यह रूप अच्छा नहीं लगा था।
मुंबई। 2019 की पहली सुबह बॉलीवुड के लिए मनहूस ख़बर लेकर आयी। जब सारा जहां नये साल का इस्तकबाल कर रहा था, कादर ख़ान इस दुनिया को अलविदा कह गये। हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार और संवाद लेखक कादर ख़ान का 81 साल की आयु में कनाडा में निधन हो गया।
पिछले शुक्रवार से अस्पताल में भर्ती कादर ख़ान के मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था, जिसके बाद उनकी स्थिति को लेकर डॉक्टर्स और परिजन बेहद चिंतित थे, मगर कहते हैं ना कि जब तक सांस है, तब तक आस है। इसीलिए उनके बेटे और बहू किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे। 2018 साल की आख़िरी शाम को 6 बजे कादर ख़ान की मृत्यु की पुष्टि कर दी गयी। कादर ख़ान उन चंद हुनरमंदों में शुमार होते हैं, जिनमें बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। अपने पांच दशकों से ज़्यादा लम्बे करियर में कादर ख़ान ने तक़रीबन हर तरह के किरदार को पर्दे पर पेश किया। विलेन बने। कॉमेडी की और चरित्र रोल भी निभाये। मगर, उनकी सबसे अधिक चर्चा उनके ख़ास तरह के संवादों के लिए होती है, जिनमें वक़्त और दौर की ज़रूरत के साथ ज़िंदगी का एक फलसफा छिपा रहता था। भूख, ग़रीबी, भ्रष्टाचार पर एक टिप्पणी होती है।
कादर ख़ान ने वैसे तो कई पीढ़ियों के साथ काम किया है, मगर सबसे ज़्यादा उन्हें अमिताभ बच्चन और गोविंदा के साथ काम करने के लिए जाना जाता है। गोविंदा के साथ कादर ख़ान ने जहां अधिकतर कॉमेडी फ़िल्में कीं, वहीं अमिताभ के साथ संजीदा क़िस्म के किरदार निभाये। कभी भाई तो कभी दुश्मन के रोल में पर्दे पर नज़र आये।
सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई का ने वाले कादर ख़ान ने 1973 की फ़िल्म 'दाग़' से बतौर एक्टर करियर शुरू किया था, जिसमें राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर लीड रोल्स में थे, मगर उनका पहला बड़ा किरदार 'ख़ून पसीना' में ठाकुर ज़ालिम सिंह था। इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन लीड रोल में थे। इस फ़िल्म के लेखक कादर ख़ान ही थे। हालांकि फिल्म लेखक के रूप में उनका करियर जवानी दीवानी से शुरू हुआ था, जिसमें रणधीर कपूर और जया भादुड़ी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं।
कादर ख़ान ने अमिताभ की कई फ़िल्मों में एक्टिंग करने के साथ संवाद भी लिखे। अमिताभ की परवरिश, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, सत्ते पे सत्ता, नसीब, मुकद्दर का सिकंदर, हम, शहंशाह जैसी सफल फ़िल्मों के लिए संवाद लिखे थे।
अमिताभ और कादर ख़ान ने कुछ ऐसी फ़िल्मों में भी काम किया है, जिनमें कादर ख़ान सियासत के स्याह पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि अमिताभ भ्रष्ट सियासत के शिकार बनते हैं। संयोग देखिए, रियल लाइफ़ में अमिताभ ने कुछ समय के लिए सियासत ज्वाइन की थी, तब कादर ख़ान को उनका यह रूप अच्छा नहीं लगा था। कई साल पहले एक इंटरव्यू में कादर ख़ान ने कहा था- ''अमिताभ के साथ जो मेरा रिश्ता था... जब वो एमपी बन गया... तो मैं ख़ुश नहीं था। क्योंकि यह सियासत ऐसी है कि इंसान को बदलकर रख देती है। वो वापस जब आया तो मेरा अमिताभ बच्चन नहीं था। मुझे बहुत दुख हुआ।''
कादर ख़ान के चले जाने से अमिताभ गहरे दुख में हैं। अपने दुख को उन्होंने शब्दों के रूप में ट्विटर पर बयां किया है। बिग बी लिखते हैं- ''कादर ख़ान गुज़र गये। दुखद और निराशाजनक ख़बर। मेरी प्रार्थनाएं और संवेदनाएं। एक उम्दा मंच कलाकार और फ़िल्मों का संपूर्ण हुनर। मेरी ज्यादातर कामयाब फ़िल्मों के शानदार लेखक। खुशनुमा साथी और एक मैथमेटिशियन।''
T 3045 - Kadar Khan passes away .. sad depressing news .. my prayers and condolences .. a brilliant stage artist a most compassionate and accomplished talent on film .. a writer of eminence ; in most of my very successful films .. a delightful company .. and a mathematician !! pic.twitter.com/l7pdv0Wdu1— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) January 1, 2019
कादर ख़ान के लिखे कुछ आइकॉनिक संवाद-
- मुक़द्दर का सिकंदर फ़िल्म में कादर ख़ान ने एक भिखारी का किरदार निभाया था। एक दृश्य में एक बच्चा कब्रिस्तान में एक कब्र के पास बैठा रो रहा होता है। कादर ख़ान उससे कहते हैं- ''इस शहर-ए-ख़ामोशियों में, इस ख़ामोश शहर में, इस मिटटी के ढेर के नीचे, सब दबे पड़े हैं। मौत से किसको रास्तागारी है? मौत से कौन बच सकता है? आज उनकी तो कल हमारी बारी है। पर मेरी एक बात याद रखना, इस फ़कीर की बात ध्यान रखना ये ज़िन्दगी में बहुत काम आएगी कि अगर सुख में मुस्कुराते हो तो दुःख में कहकहा लगाओ, क्योंकि ज़िंदा हैं वो लोग जो मौत से टकराते हैं, पर मुर्दों से बदतर हैं वो लोग जो मौत से घबराते हैं। सुख तो बेवफा है चंद दिनों के लिए है, तवायफ की तरह आता है दुनिया को बहलाता है, दिल को बहलाता है और चला जाता है। मगर दुःख तो हमेशा साथी है। एक बार आता है तो कभी लौट कर नहीं जाता है। इसलिए सुख को ठोकर मार, दुःख को गले लगा, तकदीर तेरे क़दमों में होगी और तू मुकद्दर का बादशाह होगा।'' फ़िल्म का टाइटल ट्रैक भी कुछ इन्हीं लाइनों पर आधारित था।
- बाप नंबरी बेटा दस नंबरी- तुम्हें बख्शीश कहां से दूं। मेरी ग़रीबी का तो यह हाल है कि किसी फकीर की अर्थी को भी कंधा दूं तो अपनी इंसल्ट मानकर अर्थी से कूद जाता है।
- हम- क्या इश्क़ का ख़ून किसी साहूकार के पान की पिचकारी है। क्या तुम्हारी ज़िंदगी ज़िंदगी, हमारी बीमारी है। तुम्हार ख़ून ख़ून, हमारा ख़ून पानी है। तुम्हारा नाम नाम, हमारा नाम गाली है। तुम करो ज़ुल्म तो वो सरकारी है और हमारी फरियाद गद्दारी है।
- नसीब- अरे औरों के लिए गुनाह सही, हम पियें तो शबाब बनती है। अरे सौ ग़मों को निचाड़ने के बाद एक कतरा शराब बनती है।
- शहंशाह- दुनिया की कोई जगह इतनी दूर नहीं है, जहां जुर्म के पांव में क़ानून अपनी फौलादी ज़ंजीरें पहना ना सके।