मरणोपरांत National Award जीतने वाली अभिनेत्री श्रीदेवी का ऐसा रहा फ़िल्मी सफ़र
54 साल के जीवन में 50 साल तो सिनेमा को ही दिये हैं। इस ख़ास मौक़े पर श्रीदेवी के फ़िल्मी जीवन पर एक नज़र...
मुंबई। 65 वें राष्ट्रीय फ़िल्म अवॉर्ड्स में श्रीदेवी को बेस्ट एक्ट्रेस चुना गया है। उन्हें ये पुरस्कार मॉम फ़िल्म के लिए दिया जा रहा है। संयोग ऐसा बना है कि श्रीदेवी हिंदी सिनेमा की संभवत: पहली ऐसी अभिनेत्री बन गयी हैं, जिन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मरणोपरांत दिया गया है।
ये वार्षिक पुरस्कार हैं, जो कलाकारों को उनकी ताज़ा फ़िल्मों में प्रदर्शन के आधार पर दिये जाते हैं। श्रीदेवी इसी साल फरवरी में ये दुनिया छोड़कर चली गयी थीं, जबकि मॉम पिछले साल रिलीज़ हुई थी। 54 साल के जीवन में 50 साल तो सिनेमा को ही दिये हैं। इस ख़ास मौक़े पर श्रीदेवी के फ़िल्मी जीवन पर एक नज़र...
श्रीदेवी का जन्म तमिलनाडु के शिवाकाशी में 13 अगस्त 1963 को हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम श्री अम्मा अयंगर अयप्पन रखा। श्रीदेवी ने अपना करियर बाल कलाकार के रूप में तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम सिनेमा से शुरू किया था। चार साल की उम्र में श्रीदेवी ने भक्ति फ़िल्म Thunaivan से पर्दे की दुनिया में क़दम रखा था। 12 साल की उम्र में श्रीदेवी ने हिंदी सिनेमा का रुख़ किया। 1975 में आयी फ़िल्म 'जूली' में उन्होंने फीमेल लीड लक्ष्मी की छोटी बहन का किरदार निभाया था।
1976 में आयी के बालाचंदर की फ़िल्म Moondru Mudichu से बतौर फीमेल लीड श्री की पहली फ़िल्म थी। दक्षिण भारतीय सिनेमा के दिग्गज कमल हासन और रजनीकांत उनके पहले हीरो थे। मुख्य नायिका के तौर पर पहली ही फ़िल्म में अदाकारी से श्रीदेवी ने संकेत दे दिया था कि सितारे का जन्म हो चुका है। सत्तर के दशक में कमल हासन और रजनीकांत के साथ श्रीदेवी ने कई यादगार फ़िल्में कीं। इन सभी फ़िल्मों में श्रीदेवी ने काफ़ी इंटेस किरदार निभाये थे।
हिंदी सिनेमा श्रीदेवी को भले ही ग्लैमरस अभिनेत्री के तौर पर याद करता हो, लेकिन तमिल सिनेमा में अपने करियर के शुरुआती दौर में ही उन्होंने कुछ ऐसे किरदार निभा लिये थे, जो उनकी असीमित अभिनय क्षमता की मिसाल बने। हिंदी सिनेमा में बतौर लीड एक्ट्रेस उनकी शुरुआत 1979 की फ़िल्म 'सोलवां सावन' से हुई। 1983 में श्रीदेवी की 'सदमा' और 'हिम्मतवाला' रिलीज़ हुईं। दोनों फ़िल्में दक्षिण भारतीय फ़िल्मों का रीमेक थीं। सदमा और हिम्मतवाला, श्रीदेवी के सहज और विविधतापूर्ण अभिनय के उदाहरण हैं।
अस्सी के दशक में श्रीदेवी मवाली, इंक़िलाब और तोहफ़ा जैसी कामयाब मसाला फ़िल्मों की हीरोइन बनीं। अस्सी का दशक उतर रहा था, मगर हिंदी सिनेमा के दर्शकों के सिर श्रीदेवी की ख़ूबसूरती और अदाकारी का सुरूर चढ़ रहा था। 1986 में आयी म्यूज़िकल थ्रिलर फ़िल्म 'नगीना' में इच्छादारी नागिन के किरदार में श्रीदेवी के डांसिंग स्किल्स ने उनका नाम घर-घर में पहुंचा दिया। इस वक़्त तक हिंदी सिनेमा के दर्शक भूल चुके थे कि श्रीदेवी दक्षिण भारत से आयी एक अभिनेत्री हैं, जिनके हिंदी डायलॉग भी कोई दूसरी अभिनेत्री (नाज़) डब करती है। बॉक्स ऑफ़िस पर हिट-फ्लॉप का खेल चलता रहा, मगर श्रीदेवी की शोहरत का ग्राफ ऊपर चढ़ता रहा। शेखर कपूर की 'मिस्टर इंडिया' ने श्रीदेवी को एक अलग ही रूप में पेश किया।
एक बेतरतीब रिपोर्टर के रूप में श्री ने बच्चों के दिल जीते तो 'काटे नहीं कटते दिन ये रात...' जैसे गाने से बड़ों को भी दीवाना बना लिया। फिर आयी 'चांदनी'। यश चोपड़ा के इस प्रेम त्रिकोण में श्रीदेवी ने ऋषि कपूर और विनोद खन्ना के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर किया। इस रोमांटिक ड्रामा में एक बार फिर श्रीदेवी के डांस ने दर्शकों को थिरकने के लिए मजबूर किया। ये उनके स्टारडम का स्वर्णिम काल था। इस दौर में 'चालबाज़' रिलीज़ हुई, जिसमें उन्होंने डबल रोल निभाया और सनी देओल और रजनीकांत के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर किया।
नब्बे का दशक शुरू होने के साथ हिंदी सिनेमा माधुरी दीक्षित की मोहक मुस्कान की गिरफ़्त में आने लगा था। श्रीदेवी की फ़िल्मों की कामयाबी फीकी पड़ने लगी थी। 'लम्हे' और 'ख़ुदागवाह' जैसी फ़िल्मों ने श्रीदेवी के करियर को कुछ थामा तो 'रूप की रानी चोरों का राज़ा' और 'लाड़ला' जैसी फ़िल्मों के ज़रिए वो फिसलीं। 1996 में उन्होंने बोनी कपूर से शादी करके तीन दशक लंबे करियर से ब्रेक लेने का मन बना लिया। 1997 में आयी 'कौन सच्चा कौन झूठा' में सदी बदलने से पहले श्रीदेवी आख़िरी बार पर्दे पर नज़र आयीं।
2004 में 'मेरी बीवी का जवाब नहीं' 10 साल की देरी के बाद रिलीज़ हुई। अक्षय कुमार के साथ ये फ़िल्म 1994 में ही बनकर तैयार हो गयी थी। लगभग 15 साल का वनवास ख़त्म करके 2012 में श्रीदेवी एक बार फिर पर्दे पर लौटीं और 'इंग्लिश विंग्लिश' के ज़रिए अपनी अदाकारी का दम दिखाया। श्रीदेवी के इस कमबैक को दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया। श्रीदेवी पर्दे पर लौटीं तो, मगर फ़िल्में चुनने में कोई जल्दबाज़ी नहीं की। पांच साल बाद 2017 में उनकी 300वीं फ़िल्म 'मॉम' रिलीज़ हुई थी और अब वो शाह रुख़ ख़ान के साथ 'ज़ीरो' में नज़र आने वाली हैं।