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लुटेरा' के बाद से सोनाक्षी अलग-अलग तरह की भूमिकाएं कर रही हैं

मुंबई। सोनाक्षी सिन्हा ने 'लुटेरा' फिल्म से अपनी अदाकारी की प्रतिभा का लोहा मनवा लिया है। आगे वे 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' और 'रैंबो राजकुमार' कर रही हैं। वे मानती हैं कि अलग-अलग भूमिकाएं उनकी ताकत बन रही हैं। हर फिल्म में वे एक अलग अंदाज में नजर आ रही हैं। 'वन्स

By Edited By: Published: Mon, 05 Aug 2013 05:16 PM (IST)Updated: Tue, 06 Aug 2013 03:50 PM (IST)

मुंबई। सोनाक्षी सिन्हा ने 'लुटेरा' फिल्म से अपनी अदाकारी की प्रतिभा का लोहा मनवा लिया है। आगे वे 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' और 'रैंबो राजकुमार' कर रही हैं। वे मानती हैं कि अलग-अलग भूमिकाएं उनकी ताकत बन रही हैं। हर फिल्म में वे एक अलग अंदाज में नजर आ रही हैं। 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' में जैसमिन के रोल में वे साड़ी की बजाय पहली बार कश्मीरी सूट और शरारा में नजर आएंगी, तो 'रैंबो राजकुमार' में शाहिद कपूर के साथ स्टंट करेंगी। खुद सोनाक्षी कहती हैं, 'किरदार और फिल्मों की विविधता मेरी ताकत बन रही है। कहने को 'लुटेरा' और 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' में पीरियड सेंस है, लेकिन दोनों एक-दूसरे से अलग हैं।' 'लुटेरा' पांचवें, जबकि 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' आठवें दशक में सेट है। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे कुछ ऐसा करने को मिला, जिसने मुझे बीते दौर की सैर करा दी। 'वन्स अपॉन .' की शूट के दौरान तो मिलन लूथरिया ने वाकई मुझे अलग दुनिया की सैर करा दी।

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फिल्म सिटी स्टूडियो में उन्होंने पुरानी मुंबई रच दी। मुझे महसूस होता था कि मैं मोहम्मद अली रोड पर घूम रही हूं। बहरहाल, 'रैंबो राजकुमार' में मुझे पहली बार एक्शन सीक्वेंस करते देखा जाएगा। उसके बाद उनकी एक और फिल्म में मैं काम कर रही हूं, जिसमें मेरे साथ अजय देवगन हैं। मुझे लगता है कि मैं आधी साउथ इंडियन बन चुकी हूं।

'जंजीर' में आज की औरत

सितंबर में रिलीज हो रही 'जंजीर' की रीमेक विशुद्ध एक्शन फिल्म है। मूल फिल्म में एक्शन को अहमियत दी गई थी। रीमेक में हीरोइन के लिए भी निर्माताओं ने काफी स्पेस रखा है। हीरोइन का रोल प्रियंका प्ले कर रही हैं। मूल फिल्म में जया बच्चन के किरदार के उलट प्रियंका का किरदार माला काफी मजबूत है। वह आज की महिला है। वह ईट का जवाब पत्थर से देना जानती है। हीरो विजय खन्ना पर जब विलेन हावी होता है, तो वह उससे मूल फिल्म की माला की तरह सब कुछ छोड़ कर घर बसाने को नहीं कहती। वह विलेन से बदला लेने के लिए कहती है।

फिल्म के निर्देशक अपूर्व लाखिया कहते हैं, 'आज की औरत बेचारी नहीं है। आज के रियलिस्टिक फिल्म के दौर में छुई-मुई और परिष्कृत तौर पर महिलाओं का चित्रण चलेगा भी नहीं। ऐसे में हमने अपनी माला को मजबूत और इस्पाती इरादों वाला दिखाया है। वह एस्केपिस्ट नहीं है। हमने फिल्म में नासिक के चर्चित यशवंत सोनावने हत्याकांड को भी दिखाया है। कुछ साल पहले तेल माफिया ने 26 जनवरी को दिन-दहाड़े उन्हें जिंदा जला दिया था। फिल्म में उसी सोनावने हत्याकांड की एकमात्र विटनेस माला है। वह विजय से अपना संसार बसाने की चिंता किए बगैर तेल माफिया का सफाया करने को कहती है।' लब्बोलुआब यह कि अब औरत बेचारी बनीं साउथ कतई नहीं है। वह विद्रोही है। अपना हक लड़कर लेना जानती है।

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