Exclusive: पिता को फिल्म मेकर्स ने काम देना बंद कर दिया था तो इस चक्कर मे बचपन मे अनु मलिक को उठाना पड़ा था ये कदम
सिंगर अनु मलिक ने बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक गाने गाए और लोगों को अपनी धुन पर डांस करवाया। लेकिन अनु मलिक ने हाल ही में खास बातचीत के दौरान ये बताया कि उनका ये सिंगिंग सफर कितना कठिन था और पिता के बारे में भी बात की।
शिखा धारीवाल, मुंबई। अपने शानदार म्यूजिक से कई दशक से ऑडियंस के दिलो पर राज करने वाले अनु मलिक के लिए हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपने करियर की शुरुआत करना इतना आसान नही था। अनु मलिक ने Jagran.com से एक्सक्लूसिव बातचीत में अपने स्ट्रगल से जुड़े कई खुलासे किए हैं।
अनु मलिक स्ट्रगल से जुड़े सवाल पर कहते हैं कि, 'असल मे स्ट्रगल जितना आसान लगता है उतना होता नहीं है। मैंने इस स्ट्रगल को खत्म करने के लिए क्या -क्या किया है ये मैं ही जानता हूं। उन दिनों हमारे पास मुश्किल से गुजारा करने के लिए पैसे होते थे, क्योंकि मेरे पिता सरदार मलिक के पास काम नही था। मैं बचपन से ही ज्यादा से ज्यादा वक्त डैडी के साथ बिताता था तो म्यूजिक जानता था और मैं कई बार बैठे -बैठे धुन बना लेता था। मैं यह समझ गया था कि सरस्वती की कृपा हो जाये तो सबसे अच्छा यही प्रोफेशन है क्योकि मेरे पास हुनर ही यही था'।
अनु मलिक आगे कहते हैं कि, 'मैंने सोचा कि इस प्रोफेशन में आगे कैसे बढ़ा जाए तो मुझे किसी ने बताया कि सप्ताह में एक दिन फिल्म इंडस्ट्री के बड़े प्रोड्यूसर और डायरेक्टर टाउन में कोई जगह है वहां आते है, बस फिर क्या था मैंने भी अपना बाजा उठाया और पहुंच गया। लेकिन एक दिन में कहां बात बनती है कोई मेरी बात सुनना तो दूर अपने पास खड़े भी नहीं होने देता था। उस समय मैं काम मांगने के लिए लोगों की गाडियों के पीछे भागता था, लेकिन उसके बाबजूद मुझे कोई सुनने को तैयार नहीं होता था। एक ग्यारह साल का बच्चा प्रोड्यूसर और डायरेक्टर्स के पीछे काम मांगने के लिए हर बार उतनी ही शिद्दत से भाग रहा है और कोई उसका गाना सुनने के बजाय उसे पागल कहे तो कही न कही कॉन्फिडेंस हिलने लगता है। लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। मैं लोगो की गाड़ी के कांच थपथपाता था कि बस कोई एक बार मुझे सुन ले और उस वक्त आशा जी ने कहा था कि यह लड़का एक दिन आगे जाएगा'।
अनु मलिक आगे कहते हैं कि, 'बहुत स्ट्रगल के बाद 1977 में फिल्म हंटरवाली 77 में मुझे काम मिला और सबसे पहली बार मेरे लिए आशा जी ने गाना गाया और उन्होंने मेरे म्यूजिक पर और मुझ पर भरोसा किया। मुझे आज भी याद है कि जब वह पहली बार स्टूडियो में रिकॉर्ड करने आई थीं उस दिन उनकी तबीयत भी ठीक नहीं थी, उनके हाथ मे फ्रैक्चर था लेकिन उसके बाबजूद उन्होंने मुझ पर भरोसा किया था। उसके बाद मैंने काफी फिल्मो में गाने गाए, लेकिन महेश भट्ट की फिल्म 'बाजीगर' से मुझे बहुत पॉप्युलैरिटी मिली'।
अनु मलिक ने आगे कहा कि, 'सच बताऊं तो मुझ पर एक जुनून था कि मैं इस वक्त को बदलूंगा जरूर और मेरे मां - पिता को जो सम्मान और आराम मिलना चाहिए वह मैं जरूर दूंगा। इतना पैसा कमाऊँगा कि मैं अपनी मम्मी डैडी को आरामदायक जिंदगी दे सकू। अनु मलिक आगे कहते है कि मेरे डैडी बहुत टैलेंटेड शख्सियत थे उन्होंने काफी फिल्मो में बतौर म्यूजिक कंपोजर काम भी किया था लेकिन उसके बाबजूद जब लोग उन्हें हल्के में लेते थे तो मुझे बहुत दुःख होता था। ऐसे बहुत से लोग थे जो मेरे पिता के टैलेंट को जानते थे जो उन्हें अपनी फिल्मों में काम भी दे सकते थे, लेकिन उसके बाबजूद मेरे डैडी को उन्होंने काम नही दिया। लेकिन जब मुझे सक्सेस मिलनी शुरू हुई तब उन्हीं लोगों ने मुझे बुलाया और काम दिया। तब मेरे मन में थोड़ी पुरानी बात को लेकर चुभन थी। लेकिन एक बार मेरे डैडी ने मुझे समझाया कि पुरानी चीजों को कभी प्रोफेशन में मत लाना और काम मांगने में कभी मत हिचकिचाना, और उनकी कही ये दोनों बातें मैं आज भी फॉलो करता हूं। मुझे खुशी है कि मेरे डैडी ने सिर्फ बुरा स्ट्रगल वाला दौर ही नहीं बल्कि सक्सेस वाला दौर भी देखा।