Interview: 'एंड टुमारो वी विल बी डेड' में तालिबानी कमांडर बने सिद्धांत कार्णिक ने कहा- 'तालिबान के माइंडसेट को दिखाती है फ़िल्म'
Siddhant Karnick Interview 23 सितम्बर से शुरू हुए 10 दिवसीय ज़्यूरिख फ़िल्म फेस्टिवल की शुरुआत एंड टुमारो वी विल बी डेड की स्क्रीनिंग के साथ हुई। सिद्धांत ने जागरण डॉट कॉम से बातचीत में अपने किरदार और फ़िल्म की यात्रा से जुड़े कई दिलचस्प किस्से शेयर किये।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। एक था राजा एक थी रानी, किस्मत, माही वे और मेरा साई जैसे धारावाहिकों के ज़रिए अपनी पहचान पुख्ता कर चुके सिद्धांत कार्णिक के करियर में एक बड़ा और अहम पड़ाव आया है। सिद्धांत माइकल स्टाइनर की फ़िल्म 'एंड टुमारो वी विल बी डेड' (And Tomorrow We Will Be Dead) फ़िल्म से इंटरनेशनल डेब्यू कर रहे हैं।
'एंड टुमारो वी विल बी डेड' होस्टेज ड्रामा है, जिसकी कहानी 2011 में तालिबानियों द्वारा एक स्विस कपल डैनिला विडमर (मोर्गेन फेरु) और डेविड ओच (स्वेन शेलकर) को किडनैप करने की वास्तविक घटना पर आधारित है। सिद्धांत, फ़िल्म में तालिबानी कमांडर और मध्यस्थ (Negotiator) नज़रजान की भूमिका में हैं। 23 सितम्बर से शुरू हुए 10 दिवसीय ज़्यूरिख फ़िल्म फेस्टिवल की शुरुआत 'एंड टुमारो वी विल बी डेड' की स्क्रीनिंग के साथ हुई। सिद्धांत ने जागरण डॉट कॉम से बातचीत में अपने किरदार और फ़िल्म की यात्रा से जुड़े कई दिलचस्प किस्से शेयर किये।
सिद्धांत, सबसे पहले मैं आपसे जानना चाहूंगा, 'एंड टुमारो वी विल बी डेड' आप तक कैसे पहुंची?
फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने-माने कास्टिंग डायरेक्टर हैं- नंदिनी श्रीकांत और करण माही। ये लोग इंटरनेशनल वर्क बहुत करते हैं। जब भी बाहर का कोई प्रोडक्शन हाउस इंडियन कलाकारों के साथ शूट करना चाहता है तो इन लोगों से ही सम्पर्क करता है। मेरे किरदार नज़रजान के लिए मेकर्स को एक अफ़गान या पठान जैसे दिखने वाले 6 फुट लम्बे कलाकार की ज़रूरत थी। जनवरी 2020 में फ़िल्म की टीम ख़ुद आडिशन लेने भारत आयी थी। काफ़ी सारे लोगों ने ऑडिशन दिया। उसी दौरान मुझे सिलेक्ट किया गया।
(साथी कलाकार स्वेन शेलकर के साथ सिद्धांत। फोटो- सिद्धांत कार्णिक)
नज़रजान की शख्सियत किस तरह की है?
तालिबान में यही एक शख़्स हैं, जो अंग्रेज़ी काफ़ी अच्छे से बोल सकते थे। इसलिए उनको हॉस्टेज निगोसिएशन इंचार्ज बना दिया गया था। जब मैंने अपने किरदार के लिए रिसर्च की तो पता चला कि उस एरिया में तालिबान के लिए किडनैपिंग धंधे जैसा है। वो सिर्फ़ अमेरिकी या स्विस लोगों को नहीं, बल्कि भारतीय और नेपाली लोगों को भी किडनैप करते हैं और फिर जिन कंपनी के लिए बंधक काम करते हैं, उनसे फिरौती मांगते हैं।
किरदार का लुक और शारीरिक बनावट तो ठीक है, मगर उसकी भाषा और हाव-भाव के लिए आपने क्या तैयारी की?
मुझे उन लोगों (मेकर्स) की एक बात बहुत अच्छी लगी। वो लोग एक्टिंग कोच को बुलाते हैं। सारे एक्टर्स की वर्कशॉप होती है। मेरे एक्टिंग कोच लंदन के थे। उनके साथ मैंने बहुत वक़्त बिताया और नज़रजान के लिए एक बॉडी लैंग्वेज क्रिएट की। एक डायलॉग कोच थे सेट पर। उनके साथ तलफ्फुज़ सुधारा। पश्तो बोलने वाला शख़्स अंग्रेज़ी में कैसे बात करेगा, उस पर काफ़ी काम किया।
(गेटअप में सिद्धांत कार्णिक और तालिबानी कमांडर नज़रजान। फोटो- सिद्धांत कार्णिक)
फ़िल्म की शूटिंग कहां-कहां हुई और महामारी की वजह से क्या दिक्कतें आयीं?
हम लोग उदयपुर में शूट कर रहे थे, फिर देश में लॉकडाउन हो गया। स्विस एम्बेसी ने फ़िल्म की टीम से कहा कि अगर आप भारत में लम्बे समय तक रहेंगे तो हम आपकी ज़िम्मेदारी नहीं लेंगे। उस समय शूट 10 दिन बचे थे। वो लोग वापस चले गये। फिर पहले और दूसरे लॉकडाउन के बीच मुझे स्पेन बुला लिया गया। स्पेन में बाकी शूटिंग पूरी हुई।
उदयपुर में शूट करने की क्या वजह थी, क्योंकि कहानी तो अफगानिस्तान में केंद्रित है?
दरअसल, यह वास्तविक घटना से प्रेरित कहानी है। स्विस कपल को किडनैप करके बलूचिस्तान में रखा गया था। अब बलूचिस्तान में तो शूट नहीं कर सकते तो उदयपुर के बाहर ही जो पहाड़ हैं, वो काफ़ी हद तक बलूचिस्तान की तरह ही दिखते हैं। इसलिए, वो हिस्सा वहां शूट किया गया।
अफ़गानिस्तान में तालिबान ने नये मुखौटे के साथ सरकार बना ली है। मौजूदा हालात में एंड टुमारो वी बिल बी डेड कितना प्रासंगिक रह गयी है?
यह फ़िल्म तालिबान के प्रति एक अलग नज़रिया पेश करती है, क्योंकि राजनीति, वास्तविकता और इंसानियत अलग-अलग बातें हैं। यह स्विस कपल जो किडनैप हुआ था, उसके पीछे राजनीतिक कारण था, पर जब उन्होंने तालिबान के साथ क़ैद में 290 दिन गुज़ारे तो दोनों के बीच एक रिश्ता कायम हो जाता है। मुझे निर्देशक ने काफ़ी पहले ही ब्रीफ दे दिया था कि इस फ़िल्म में वही दिखाना चाहते हैं, जो वास्तव में हुआ है। हॉलीवुड तालिबान को हमेशा एक आतंकी संगठन की तरह दिखाता रहा है। स्विस कपल का नज़रजान के साथ जो इंटरेक्शन हुआ है, उसे डिटेल में दिखाना चाह रहे थे। यह फ़िल्म तालिबान के बारे में दर्शक की जानकारी बढ़ाती है।
(साथी कलाकार मोर्गेन फेरु के साथ सिद्धांत। फोटो- सिद्धांत कार्णिक)
तालिबान का नाम सुनते ही ज़हन में एक नेगेटिव इमेज आती है। इस किरदार को लेकर आपकी क्या सोच थी?
मेरी सोच भी तालिबान के बारे में नेगेटिव ही थी। क्योंकि फ़िल्मों और दूसरे सूचना माध्यमों के ज़रिए वही हमें बताया गया है, दिखाया गया है। मेरे पिता फौज में ब्रिगेडियर पद से रिटायर हुए हैं। वो कश्मीर में एंटी इनसर्जेंसी स्क्वॉड में थे। उन्होंने काफ़ी आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ की है। उनमें कई अफ़गान लड़ाके भी थे। जब मैं उनसे पूछने गया तो उन्होंने मुझसे कहा कि एक देश का फ्रीडम फाइटर दूसरे देश के लिए आतंकवादी होता है। तब मेरे समझ में यह बात आयी कि पूरी दुनिया के लिए उनकी कौम आतंकवादी है, लेकिन वहां की अवाम के लिए तो फ्रीडम फाइटर ही हैं। फ़िल्म में एक और लाइन है, जो नज़रजान स्विस कपल से कहता है कि हम सदियों से यहां हैं। पहले अंग्रेज़ों के साथ लड़े। फिर रूसियों से लम्बे समय तक लड़ते रहे। अब बीस साल से अमेरिका को हराते आये हैं... तो इस किरदार को निभाने के लिए यह सब समझना बहुत ज़रूरी था और अपने किरदार के साथ न्याय करने के लिए तालिबान को लेकर जो नेगेटिविटी थी, वो मुझे हटानी पड़ी।
विदेशी प्रोडक्शन में काम करना भारतीय मनोरंजन इंडस्ट्री के साथ काम करने से कितना अलग है?
बहुत कुछ है, लेकिन मैं डिप्लोमेटिक बनना चाहूंगा, क्योंकि मुझे यहां पर भी काम करना है (हंसते हुए)। मैं आपको एक मिसाल देता हूं। मैं वहां के डीओपी (डायरेक्टर ऑफ सिनेमैटोग्राफी) के साथ लंच कर रहा था। हम लोगों का होस्टेज सिचुएशन का सेटअप था। बहुत सारे शॉट्स ऐसे थे कि गाड़ी में हम हॉस्टेजज को ले जा रहे हैं।लंच के बाद एक सीक्वेंस वो शूट करने वाले थे। उनके असिस्टेंट आते हैं। फाइल पकड़ाते हैं, उन्हें कुछ चेक करना था। फाइल खोली तो मैंने देखा कि टॉप एंगल व्यू ऑफ द कार, कार में हर कैरेक्टर कहां बैठा है, दो कैमरा सेटअप है, दोनों कैमरों के क्या-क्या एंगल रहेंगे, टाइम ऑफ द डे... सब लिखा था, डायाग्राम के ज़रिए दिखाया गया था कि धूप किस दिशा में थी। फिर मेरी नज़र डेट पर गयी तो चार महीने पहले की तारीख़ थी।
अगर कोई इतना ज़्यादा प्लान करके काम करेगा तो प्रोडक्ट कैसे अच्छा नहीं बनेगा! कहते हैं कि स्विस घड़ियां एकदम परफेक्ट चलती हैं। उसी संजीदगी के साथ यह लोग फ़िल्म भी बनाते हैं। अलग-अलग विभागों के 15 प्रोडक्शन हेड थे। ज़्यादातर क्रू इंडिया का ही था। सारे डिपार्टमेंट्स को एक्सेल शीट दिया जाता था, ताकि सब अपना-अपना काम टाइम पर करें। इस प्लानिंग की वजह से कभी ओवर टाइम शूट नहीं हुआ। कभी-कभी टाइम से आधा घंटा पहले शूट पूरा कर लिया करते थे।
फ़िल्म कब तक रिलीज़ करने की योजना है?
भारत के सिनेमाघरों में रिलीज़ होना तो मुश्किल है, क्योंकि हिंदी में एक भी लाइन नहीं है। फ़िल्म में जिन भाषाओं का इस्तेमाल हुआ है, उनमें जर्मन, पश्तो है और अंग्रेज़ी है। उम्मीद कर रहे हैं कि किसी मशहूर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आएगी, क्योंकि माइकल स्टाइनर की पिछली फ़िल्म (The Awakening of Motti Wolkenbruch) भी नेटफ्लिक्स पर आयी थी।