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सिनेमाघरों में 'रेस 3' कल से, आज जानिए बॉलीवुड में कब शुरू हुई सीक्वल फ़िल्मों की रेस

रेस फ्रेंचाइजी को ही मिसाल के तौर पर लें तो पहली फ़िल्म 'रेस' 2008 में आयी थी, जबकि 2013 में 'रेस 2' आयी और उसके ठीक 5 साल बाद 'रेस 3' आ रही है, यानि 10 साल में तीन भाग।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Mon, 11 Jun 2018 12:24 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jun 2018 01:11 PM (IST)
सिनेमाघरों में 'रेस 3' कल से, आज जानिए बॉलीवुड में कब शुरू हुई सीक्वल फ़िल्मों की रेस
सिनेमाघरों में 'रेस 3' कल से, आज जानिए बॉलीवुड में कब शुरू हुई सीक्वल फ़िल्मों की रेस

मुंबई। सलमान ख़ान की बहुप्रीतिक्षित फ़िल्म 'रेस 3' 15 जून को रिलीज़ हो रही है। साल 2018 में सलमान की यह पहली रिलीज़ है। ज़ाहिर है दर्शकों के बीच उत्साह होगा ही। वैसे भी ईद पर सलमान की फ़िल्म उनके फ़ैंस के लिए किसी ईदी से कम थोड़े ही है। बॉलीवुड में वक़्त के साथ सीक्वल्स या किसी एक ही शीर्षक को लेकर फ्रेंचाइजी फ़िल्में बनाने का चलन बढ़ गया है। 2018 में 'रेस 3' के अलावा बाग़ी2, हेट स्टोरी4, टोटल धमाल, यमला पगला दीवाना फिर से जैसे सीक्वल रिलीज़ हो रहे हैं।

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इनमें कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिनमें मुख्य किरदारों की पुनरावृत्ति हो रही है, जबकि कहानी नई होगी। वहीं, कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिनमें कहानी के साथ मुख्य किरदार भी बदल जाते हैं, बस शीर्षक वही रहता है। आम तौर फ़िल्मों के सीक्वल्स पहले भाग की रिलीज़ के कुछ साल बाद ही आ जाते हैं। अगर रेस फ्रेंचाइजी को ही मिसाल के तौर पर लें तो पहली फ़िल्म 'रेस' 2008 में आयी थी, जबकि इसके 5 साल बाद 2013 में 'रेस 2' आयी और उसके ठीक 5 साल बाद 'रेस 3' आ रही है, यानि 10 साल में तीन भाग। मगर कई बार पार्ट2 के लिए ही कई साल इंतज़ार करना पड़ता है। ऐसी ही फ़िल्मों का ज़िक्र इस लेख में, जिनके सीक्वल आने में 20 साल से भी अधिक वक़्त लगा। 

33 साल बाद अंखियों के झरोखों से

1978 में हीरेन नाग की फ़िल्म 'अंखियों के झरोखों से' आयी थी। ताराचंद बड़जात्या निर्मित इस रोमांटिक फ़िल्म में सचिन पिलगांवकर और रंजीता ने मुख्य किरदार निभाये थे। 'अंखियों के झरोखों' से ट्रैजिक लव स्टोरी थी, जिसमें रंजीता के किरदार की क्लाइमैक्स में मौत हो जाती है। फ़िल्म का संगीत हिट रहा और फ़िल्म सुपर हिट रही। पूरे 3 दशक बाद इस फ़िल्म का सीक्वल 2011 में 'जाना पहचाना' शीर्षक से आया। फ़िल्म के मुख्य किरदार वही रहते हैं, लेकिन कहानी 33 साल आगे बढ़ चुकी है। सचिन के किरदार अरुण के पास धन-दौलत की कमी नहीं है, मगर प्रेमिका लिली को कैंसर की वजह से खोने के कारण अवसाद में रहता है। अरुण लिली की याद में कैंसर मरीज़ों के लिए अस्पताल चलाता है। उसकी ज़िंदगी में तब उथल-पुथल मचती है, जब लिली की हमशक्ल आशा उसकी ज़िंदगी में दाखिल होती है। कुछ उतार-चढ़ाव के बाद अरुण को अपना प्यार मिल जाता है। अंखियों के झरोखों से जहां बेहद कामयाब फ़िल्म थी, वहीं जाना पहचाना फ्लॉप रही।

29 साल बाद ज्वैल थीफ़ की वापसी

विजय आनंद निर्देशित 'ज्वैलथीफ़' 1967 में रिलीज़ हुई थी। 'ज्वैलथीफ़' चोरी पर आधारित बेहतरीन थ्रिलर फ़िल्मों में शामिल है। देव आनंद, वैजयंतीमाला और अशोक कुमार ने फ़िल्म में मुख्य किरदार निभाये थे। देव आनंद ने डबल रोल प्ले किया था। 29 साल बाद 1996 में देव आनंद ने 'ज्वैल थीफ़' का सीक्वल 'रिटर्न ऑफ़ ज्वैल थीफ़' का निर्माण किया, जबकि निर्देशन अशोक त्यागी का था। 'रिटर्न ऑफ़ ज्वैल थीफ़' की कहानी नई हो गयी, जबकि 'ज्वैल थीफ़' से इसका जुड़ाव देव आनंद और अशोक कुमार के किरदारों के ज़रिए होता है। धर्मेंद्र, जैकी श्रॉफ, प्रेम चोपड़ा और सदाशिव अमरापुरकर फ़िल्म में मुख्य किरदारों में शामिल हुए। वहीं, शिल्पा शिरोडकर, अनु अग्रवाल और मधु महिला किरदारों में दिखायी दीं। ये बात अलग है कि ये सीक्वल पहली फ़िल्म के आस-पास भी नहीं ठहरता।

26 साल बाद घायल वंस अगेन

1990 में आयी 'घायल' सनी देओल के करियर की सबसे यादगार और बेहतरीन परफॉर्मेंसेज़ में शामिल है। राज कुमार संतोषी ने फ़िल्म का निर्देशन किया था, जबकि धर्मेंद्र इसके प्रोड्यूसर थे। मीनाक्षी शेषाद्रि फ़िल्म की नायिका थीं। 2016 में सनी देओल ने इसी फ़िल्म के सीक्वल 'घायल वंस अगेन' के साथ बतौर निर्देशक वापसी की। सीक्वल में दिखाया गया कि सनी का किरदार अजय मेहरा बलवंत राय का क़त्ल करने के बाद सज़ा पूरी करके जेल से बाहर आ चुका और अब शराफ़त की ज़िंदगी गुज़ार रहा है। मगर, परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि एक बार फिर वो साजिशों के जाल में फंस जाता है। कहानी का विलेन इस बार भी एक बिज़नेस टाइकून है, जिसे नरेंद्र झा ने निभाया था। आंचल मुंजाल, सनी की बेटी के रोल में थीं, जबकि फ़िल्म की नायिका सोहा अली ख़ान बनीं। ये सीक्वल उतना नहीं चला, जितना पहला भाग।

श्रीदेवी की निगाहें नहीं है पहला सीक्वल

बॉलीवुड में फ़िल्मों के सीक्वल लंबे अर्से से बनते रहे हैं, लेकिन नई सदी की शुरुआत के साथ इस चलन ने रफ़्तार पकड़ी। साठ, सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशकों में फ़िल्ममेकर्स सीक्वल्स बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाते थे। अगर 2000 से पहले के सिनेमा पर ग़ौर करें तो अस्सी के दशक में 'नगीना' का सीक्वल 'निगाहें' ही ज़हन में आता है। 'नगीना' 1986 में आयी थी, जबकि 'निगाहें' 1989 में रिलीज़ हुई थी।

75 साल पहले आया था पहला सीक्वल

ये जानकर आप चौंक जाएंगे कि हिंदी सिनेमा में सीक्वल की शुरुआत बीसवीं सदी के चौथे दशक में ही हो गयी थी। ठीक 75 साल पहले हिंदी सिनेमा में पहली सीक्वल फ़िल्म आयी थी। 'हंटरवाली' की बेटी को भारतीय सिनेमा का पहला सीक्वल माना जाता है, जो 1943 में रिलीज़ हुई थी। ये 1935 में आयी 'हंटरवाली का सीक्वल' थी दोनों फ़िल्मों में फियरलेस नाडिया ने मुख्य किरदार निभाया था, जो एक वुमन सुपर हीरो का था। 'रंगून' में कंगना रनौत का किरदार फियरलेस नाडिया पर ही आधारित दिखाया गया था।


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