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सलमान ख़ान ज़मानत केस में Race जैसा रोमांच, याद आ जाएंगी ये 10 कोर्ट रूम फ़िल्में

सलमान ख़ान केस के इस पेंचोख़म से हिंदी सिनेमा की वो फ़िल्में याद आ जाती हैं, जिनमे कोर्ट रूम ड्रामा को देखने के लिए दर्शक सिनेमा हाल की सीटों पर दम साधकर बैठे रहते थे।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Fri, 06 Apr 2018 02:38 PM (IST)Updated: Sun, 08 Apr 2018 11:27 AM (IST)
सलमान ख़ान ज़मानत केस में Race जैसा रोमांच, याद आ जाएंगी ये 10 कोर्ट रूम फ़िल्में

मुंबई। काला हिरण शिकार केस में सलमान ख़ान की ज़मानत की कहानी गुरुवार 5 अप्रैल को जोधपुर की सेशंस कोर्ट से शुरू हुई और 7 अप्रैल को जमानत मिलने के साथ पर्दा गिरा, मगर इस दौरान इस कहानी में जो ट्विस्ट्स और टर्न्स आये, वो किसी तेज़ रफ़्तार थ्रिलर फ़िल्म की पटकथा से कम नहीं हैं।

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5 अप्रैल को जोधपुर की अदालत ने 20 साल पुराने इस केस में सलमान को 5 साल की जेल और 10 हज़ार रुपए ज़ुर्माने की सज़ा का एलान किया था। उस दिन अदालत का समय पूरा होने की वजह से ज़मानत नहीं मिल सकी, जिसके चलते सलमान को गुरुवार की रात जेल में बितानी पड़ी। हालांकि इस बात की तसल्ली सभी को थी कि 6 अप्रैल यानि शुक्रवार को तो सलमान को हर हाल में ज़मानत मिल जाएगी।

मगर, शुक्रवार को जब अदालत में सलमान की बेल पर बहस शुरू हुई तो पासा ही पलट गया। ज़मानत की जो प्रक्रिया सीधी और आसान लग रही थी, वो कानूनी बारीक़ियों में उलझकर रह गयी और पता चला कि सलमान को शुक्रवार की रात भी जेल में गुज़ारनी होगी, क्योंकि जज साहब ने फ़ैसला कल तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।

सलमान की बेल की दुश्मन वो केस डायरी बनी, जो अदालत में मौजूद नहीं थी। केस की पूरी जानकारी ना होने की वजह से जज साहब ने केस डायरी तलब की और इसका अध्ययन करने के बाद ही फ़ैसला देने का फ़रमान सुनाया। इसे प्रॉसिक्यूशन पक्ष की स्ट्रेटजिक जीत के रूप में देखा गया। अभी एक ट्विस्ट और बाक़ी था। शुक्रवार की रात ही ख़बर आयी कि सलमान के केस की सुनवाई कर रहे जज का तबादला हो गया है।

इस ख़बर के बाहर आते ही सलमान के खेमे में हड़कंप मच गया, कहीं ऐसा ना हो कि नए जज केस की स्टडी के लिए और वक़्त मांंग लें। अगर ऐसा होता तो सलमान की बेल लटक जाती और ये वीकेंड भी जेल में गुज़ारना पड़ता। लेकिन, शनिवार को तब राहत महसूस की गयी, जब केस की सुनवाई करने पुराने जज ही पहुंचे और सलमान को लंच के बाद ज़मानत मिल गयी। सज़ा पर पुनर्विचार याचिका भी स्वीकार कर ली गयी। 

बहरहाल, सलमान ख़ान केस के इस पेंचोख़म से हिंदी सिनेमा की वो फ़िल्में याद आ जाती हैं, जिनमे कोर्ट रूम ड्रामा को देखने के लिए दर्शक सिनेमा हाल की सीटों पर दम साधकर बैठे रहते थे। ऐसी ही कुछ फ़िल्में-

आवारा- 1951 में आयी इस फ़िल्म को राज कपूर ने डायरेक्ट किया था और इसका निर्माण भी किया। हिंदी सिनेमा के शोमैन कहे जाने वाले राज कपूर की ये बहतरीन फ़िल्मों में शामिल है, जिसमें उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने वक़ील और जज का किरदार निभाया था, जो एक ग़लतफ़हमी का चलते जन्म से पहले ही अपने बच्चे और पत्नी का त्याग कर देता है। पिता की नाइंसाफ़ी और ज़िंदगी की दुश्वारियां जब एक बच्चे को आवारा बना देती हैं तो उसकी आख़िरी मंज़िल जेल ही होती है, मगर उससे पहले उसे अदालत के कड़े इम्तेहान से गुज़रना पड़ता है, जहां उसकी बेगुनाही के रास्ते में उसका अपना पिता ही दीवार बनकर खड़ा होता है। इस सोशल ड्रामा में वक़ील बनीं नर्गिस के साथ पृथ्वीराज की जिरह इस कोर्ट रूम ड्रामा को इंगेजिंग बनाते हैं। राज कपूर के दादा दीवान बशेश्वर नाथ सिंह कपूर भी आख़िरी दृश्यों में जज के किरदार में दिखते हैं।

क़ानून- 1960 में आयी बीआर चोपड़ा निर्देशित क़ानून एक मुकम्मल कोर्ट रूम ड्रामा है, जिसमें क़त्ल के एक केस की जिरह दिखायी गयी, मगर इस जिरह में सिर्फ़ क़ानूनी दांवपेंच ही नहीं, बल्कि रिश्तों की डोर भी उलझी हुई है। जज के रोल में अशोक कुमार थे, जबकि क़त्ल के आरोपी के वक़ील का किरदार राजेंद्र कुमार ने निभाया था, जो जज के होने वाले दामाद भी थे। हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम काल में जब गानों की बिना कोई कहानी पूरी नहीं होती थी, उस वक़्त बीआर चोपड़ा ने क़ानून में एक भी गाना शामिल नहीं किया, मगर देखने वालों को गानों की कमी बिल्कुल नहीं खलती।

बात एक रात की- 1962 में आयी शंकर मुखर्जी निर्देशित बात एक रात की रहस्य, रोमांच से भरपूर कोर्ट रूम ड्रामा है, जिसमें फ़िल्म की नायिका वहीदा रहमान पर क़त्ल का इल्ज़ाम होता है, जिसे वो स्वीकार कर चुकी हैं, जबकि वक़ील के किरदार में देवानंद होते हैं, जिन्हें मुल्ज़िम के इक़बाले-जुर्म पर यक़ीन नहीं होता। और यहीं से शुरू होता है एक रोमांचक कोर्ट रूम ड्रामे का सफ़र। इस फ़िल्म का संगीत भी हिट रहा था।

वक़्त- 60 के दशक में आयी सबसे कामयाब फ़िल्मों में शामिल वक़्त हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्मों में शुमार है। यश चोपड़ा निर्देशित वक़्त हिंदी सिनेमा की पहली मल्टीस्टारर फ़िल्म भी कही जाती है, जिसमें उस दौर के दिग्गज सुनील दत्त, राज कुमार, शशि कपूर, बलराज साहनी, शर्मिला टैगोर और साधना ने मुख्य किरदार निभाये थे। फ़िल्म की कहानी एक परिवार के बिखरने से शुरू होकर हत्या के इल्ज़ाम में फंसे एक भाई को दूसरे भाई द्वारा बचाने पर ख़त्म होती है। इसी सफ़र में कोर्ट के यादागर दृश्य आते हैं। सुनील दत्त वक़ील के किरदार में होते हैं, जबकि राज कुमार हत्यारोपी।

एक रुका हुआ फ़ैसला- 1986 में आयी बासु चैटर्जी निर्देशित एक रुका हुआ फ़ैसला, दरअसर 1957 में आयी हॉलीवुड फ़िल्म 12 एंग्री मैन का रीमेक है। फ़िल्म पूरी तरह से कोर्ट रूम ट्रायल पर आधारित है, जिसमें एक किशोर पर अपने ही पिता की हत्या का मुक़दमा चलाया जाता है। 12 लोगों की ज्यूरी को फ़ैसला करना होता है कि किशोर क़ातिल है यो निर्दोष। एक रूका हुआ फ़ैसला में ज्यूरी के सदस्यों की मानसिक और वैचारिक यात्रा को कहानी का अहम हिस्सा बनाया गया।

मेरी जंग- 1985 की ये फ़िल्म अनिल कपूर के बेहतरीन अभिनय के लिए जानी जाती है, जिसमें उन्होंने एक लॉयर का किरदार प्ले किया था। सुभाष घई निर्देशित इस फ़िल्म में अनिल कपूर का किरदार अपने भ्रष्ट वक़ील ठकराल से अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए वक़ील बनता है। ठकराल का रोल अमरीश पुरी ने निभाया था। मेरी जंग में दिखाये गये कोर्ट रूम दृश्य क़ानूनी दांवपेचों और दिलचस्प मोड़ों से भरे हुए थे।

दामिनी- 1993 में रिलीज़ हुई राजकुमार संतोषी निर्देशित दामिनी वैसे तो एक बलात्कार पीड़ित को न्याय दिलाने की कहानी है, मगर इस कहानी में कोर्ट रूम दृश्य ग़ज़ब का रोमांच पैदा करते हैं। फ़िल्म में सनी देओल वक़ील के रोल में थे, जो रेप विक्टिम के पक्ष में मुक़दमा लड़ते हैं, जबकि अमरीश पुरी बचाव पक्ष के लॉयर होते हैं। दोनों के बीच तकरार के दृश्य दामिनी की हाइलाइट हैं। ढाई किलो का हाथ और तारीख़ पे तारीख़... जैसे कालजयी संवाद दामिनी से ही निकले हैं। फ़िल्म में ऋषि कपूर और मीनाक्षी शेषाद्रि ने मुख्य किरदार निभाये।

पिंक- 2016 में रिलीज़ हुई पिंक बेहतरीन कोर्ट रूम ट्रायल फ़िल्म है, जिसमें अमिताभ बच्चन ने रिटायर हो चुके वक़ील का किरदार निभाया था। तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हरी और एंड्रिया टैरियांग ने मुख्य किरदार निभाये थे। महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के इस दौर में पिंक एक प्रासंगिक फ़िल्म है, जो मॉलेस्टेशन और रेप प्रयासों के ख़िलाफ़ लड़ने की नसीहत देती है। अनिरुद्ध रॉय चौधरी निर्देशित फ़िल्म को शूजित सरकार ने निर्देशित किया था।

जॉली एलएलबी- सुभाष कपूर निर्देशित जॉली एलएलबी में अरशद वारसी ने वक़ील का मुख्य किरदार निभाया था। ये फ़िल्म न्यायिक प्रक्रिया में देरी और जटिलताओं के चलते पैदा होने वाले साइड इफ़ेक्ट्स को रेखांकित करती है। इसके सीक्वल जॉली एलएलबी2 में अक्षय कुमार ने वक़ील का रोल प्ले किया था। दूसरे भाग में सार वही रहता है, पर कहानी बदल जाती है। जॉली एलएलबी2 में न्यायालयों में लंबित पड़े लाखों मुक़दमों के संजीदा मुददे को ह्यूमर के साथ रेखांकित किया गया।


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