बेमिसाल रहा है नूतन का सफ़र, दुर्लभ तस्वीरों संग जानिये उनसे जुड़ी ये रोचक बातें
बाद में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा भी था कि विदेश में बिताये गए वो एक साल उनके जीवन का सबसे यादगार वर्ष था। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ से डेब्यू किया था!
मुंबई। 21 फरवरी को रुपहले पर्दे पर अपनी सौम्य और सशक्त अभिनय से गहरी छाप छोड़ने वाली खूबसूरत अभिनेत्री नूतन Nutan की पुण्यतिथि Nutan Death Anniversary मनाई गयी। नूतन का दौर ब्लैक एंड व्हाईट फ़िल्मों का दौर था लेकिन, उन्होंने अपने अभिनय से बड़े पर्दे पर जो रंग भरा वो आज भी बेहद सुनहरा है! वाकई उनका कोई मुकाबला नहीं।
नूतन का जन्म मुंबई में ही 4 जून 1936 को एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक जाने-माने डायरेक्टर और कवि रहे हैं जबकि उनकी मां शोभना समर्थ एक चर्चित अभिनेत्री थीं। ज़ाहिर है परिवार में कला को लेकर एक माहौल उन्हें शुरू से ही विरासत में मिला। पंचगनी के एक कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वो उच्च शिक्षा के लिए स्विटज़रलैंड चली गईं। जहां वो तकरीबन एक साल रहीं फिर देश लौट आईं। बाद में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा भी कि विदेश में बिताये गए वो एक साल उनके जीवन का सबसे यादगार साल रहा। बता दें कि विदेश जाने से पहले वो कुछ फ़िल्में कर चुकी थीं जो सफल नहीं हो पायी। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ से डेब्यू कर लिया था!
नूतन साल 1952 में मिस इंडिया पीजेंट भी चुनी गयीं। नूतन को पहला बड़ा ब्रेक साल 1955 में आई फ़िल्म ‘सीमा’ में मिला। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी जीता। यहां से उनकी कामयाबी को एक नया आसमान मिला। एक के बाद एक कई फ़िल्में जैसे-‘पेईंग गेस्ट’, ‘अनाड़ी’, ‘सुजाता’ हिट साबित हुईं। साल 1963 में आई फ़िल्म 'बंदिनी' भारतीय सिनेमा जगत में अपनी संपूर्णता के लिए सदा याद की जाती है। फ़िल्म में नूतन के अभिनय को देखकर ऐसा लगा कि केवल उनका चेहरा ही नहीं बल्कि हाथ-पैर की अंगुलियां तक अभिनय कर सकती हैं।
बिमल रॉय की ‘बंदिनी’ नूतन के करियर में एक मील की पत्थर की तरह है। इसके अलावा ‘छलिया’, ‘देवी’, ‘सरस्वतीचंद्र’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘सौदागर’ जैसी 70 से ज्यादा फ़िल्में करने वाली नूतन अपार सफलता पाने के बावजूद सादगी की एक मिसाल रही हैं। नूतन ने अपने करियर के टॉप पर पहुंचने के बाद साल 1959 में नेवी के लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी कर ली थी। उनका बेटे मोहनीश बहल भी एक्टर बने। बहरहाल, शादी ही नहीं बल्कि बेटे के जन्म के बाद भी वो लगातार अवॉर्ड विनिंग फ़िल्में करती रहीं।
आम तौर पर ऐसा मान लिया गया है कि शादी और बच्चे के जन्म के बाद एक हीरोइन के लिए फ़िल्मी सफ़र आसान नहीं होता। हां, करीना कपूर ख़ान की तरह अपवाद हो सकते हैं लेकिन, ऐसे कितने नाम हैं जिनके करियर पर मां बनने के बाद ब्रेक लग गया। सीमा’, ‘सुजाता’, बंदिनी’, ‘मिलन’ और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीत कर नूतन ने साबित कर दिया कि वो अपनी दौर की टॉप की अभिनेत्री हैं।
साल 1985 ‘मेरी जंग’ के लिए उन्होंने फ़िल्मफेयर से बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड भी जीता। भारत सरकार से पद्मश्री समेत कई सम्मान पाने वाली नूतन को साधना से लेकर स्मिता पाटिल जैसी अभिनेत्रियां अपना रोल मॉडल मानती रही हैं।
आज के समय के एक बड़े निर्देशक संजय लीला भंसाली ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वो नूतन की तरह सहज और करिश्माई अभिनेत्री नहीं बना सकते।
उनके फ़िल्मों के अलावा जो गाने उन पर फ़िल्माये गए वह भी यादगार हैं और आज तक गुनगुनाये जाते हैं। 'छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा', सावन का महीना', 'चन्दन सा बदन', फूल तुम्हें भेजा है खत में' ये सब गीत सुपरहिट्स में गिने जाते हैं।