S Mohinder Passed Away: राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित संगीतकार एस. मोहिंदर का निधन, लता मंगेशकर ने जताया दुख
S Mohinder Passed Away लता मंगेशकर ने एस. मोहिंदर को एक बहुत अच्छा संगीत निर्देशक और सज्जन व्यक्ति बताया।
नई दिल्ली, जेएनएनl पंजाबी ब्लॉकबस्टर फिल्म 'नानक नाम जहाज है (1969) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक की केटेगरी में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित संगीतकार एस. मोहिंदर का रविवार को मुंबई में अपने ओशिवारा निवास पर दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हो गया। उन्होंने हाल ही में अपना 95 जन्मदिन मनाया था। भारतरत्न लता मंगेशकर ने उनके निधन पर दुख जताया हैl
लता मंगेशकर ने एस. मोहिंदर को 'एक बहुत अच्छा संगीत निर्देशक और सज्जन व्यक्ति' बताया।एस. मोहिंदर की बेटी नरेन चोपड़ा ने बताया, 'जब मेरे पिता ने पुरस्कार जीता, तो सबसे पहले उन्हें बधाई देने वाले एस.डी. बर्मन थे, जिनकी आराधना भी इसी पुरस्कार के लिए स्पर्धा कर रही थीl'
Aaj bahut acche sangeetkar S Mohinder Ji ka swargwas hua ye sunkar mujhe bahut dukh hua. Wo bahut shareef aur nek insan the.Ishwar unki aatma ko shaanti pradan karein.— Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) September 6, 2020
नानक नाम जहाज है (1969) में मोहम्मद रफी, मन्ना डे, आशा भोंसले और अन्य लोगों द्वारा गाए गए कुछ यादगार भक्ति गीत थे। मोहिंदर के संगीत के प्रशंसक जसबीर सिंह कहते हैं, 'फिल्म की सफलता में दिलकश गानों का अहम योगदान था।'नरेन ने आगे बताया, 'एस. मोहिंदरका पूरा नाम मोहिंदर सिंह सरना था। उनका जन्म मोंटोगोमेरी जिले (अब साहिवाल, पाकिस्तान) में हुआ, विभाजन के दंगों से उन्होंने जान बचाई।लाहौर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक कुली ने उन्हें बताया कि दंगे भड़क गए है और उन्हें जीवित रहने के लिए ट्रेन पकड़कर बंबई जाना चाहिए। वह दादर के एक गुरुद्वारे में रहे और उन्होंने बाद में एक रागी (संगीतकार जो गुरबा गाते थे) के रूप में भी काम किया। उन्हें प्रति सप्ताह 10 रुपये का भुगतान किया जाता था।'
"गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा"
Very Sad News !!
Composer S. Mohinder (24.02.1925) left for heavenly abode today in the morning at about 4.45 a.m. He was cremated at about 12 in the noon in absence of his relatives. He was running ill for long
ॐ शान्ति pic.twitter.com/UWFYYDh4gB— Shankar-Jaikishan® (@SJFansAssnCal) September 6, 2020
नरेन आगे कहती है, 'पिता का फिल्मी करियर सेहरा (1948) से शुरू हुआ और तीन दशकों तक चला। उन्हें सुरैया, के आसिफ, एस मुखर्जी, मधुबाला जैसे कई लोगों ने मदद की। वह मधुबाला के परिवार और पृथ्वीराज कपूर के करीब थे।' मोहिंदर की धुनों में अक्सर पंजाब का स्वाद होता था। मोहिंदर की आखिरी फिल्म दहेज (1981) थी। अस्सी के दशक में मोहिंदर न्यूयॉर्क में बस गए और वह 2013 में मुंबई वापिस आ गए थे।