Ram: महात्मा गांधी ने अपने जीवन में देखी थी ये एकमात्र फिल्म, जानें भारतीय सिनेमा में राम का महत्व
रंगमंच पर श्रीराम की लीला वैश्विक प्रतीक है भारत की अद्भुत सांस्कृतिक प्रस्तुति का। कहीं श्रीराम भारतीय कला केंद्र की नृत्य नाटिका ह्यश्री रामह्ण है तो कहीं अक्षय कुमार की ह्यरामसेतुह्ण कहीं जापान की एनीमेटेड रामायण है तो कहीं वीएफएक्स से भरी ह्यआदिपुरुषह्ण। श्रीरामनवमी पर विनोद अनुपम का खास लेख...
नई दिल्ली, जेएनएन। हे रोम रोम में बसने वाले राम, जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या मांगू....राम मांगने के लिए हैं ही नहीं, आत्मसात करने के लिए हैं। ह्ण साहिर लुधियानवी के ये शब्द कहने को 1967 में अपने रचे जाने के बाद श्रीराम के प्रति भारतीय मानस की अंतर्मन की अभिव्यक्ति बने, लेकिन सच यही है कि सदियों पूर्व से यह भाव भारतीय मन में व्याप्त है और सदियों बाद भी बने रहेंगे। भगवान राम हैं तो हम हैं। जन्म लेने के बाद हमें जिस पहले प्रेरक व्यक्तित्व की जानकारी दी जाती है, वे श्रीराम ही होते हैं। पुत्र, पति, सखा, राजा, सत्यनिष्ठ, योद्धा सब कुछ के शीर्ष हैं श्रीराम। हमारे पग-पग के साथी। क्या आश्चर्य कि महात्मा गांधी के आखिरी शब्द राम ही होते हैं। यदि स्वाधीनता आंदोलन में महात्मा गांधी के योगदान को स्वीकार करते हैं तो ह्यरघुपति राघव राजा रामह्ण को भी नहीं भूल सकते हैं, उनके लिए यह आत्मिक बल का मंत्र था!
राम आगमन से बदलता समय
भगवान राम हमारे सुर हैं, हमारी संस्कृति हैं। यदि वे हमारे जीवन में नहीं होते तो शायद हम वह नहीं होते जो आज हैं। ह्यरामा चढ़ले चइतवा राम जनमलें हो रामा, घरे-घरे बाजेला अनंद बधइया हो रामा, दसरथ लुटावे अनधन-सोनवा हो रामा, कैकयी लुटावे सोने के मुनरिया हो रामा।ह्ण, ह्यमिथिला में राम खेलें होरीह्ण और ह्यहोली खेलै रघुबीरा अवध मेंह्ण के साथ होली गीतों के समापन के साथ ही चैता की शुरुआत होती है। किसी रिले रेस की तरह, आज से होली बंद, कल से चैता शुरू, उतरल फगुनवा, चईत चढ़ आइल हो रामा, अमवां में लउकता टिकोरवा, हो रामा। भारतीय पंचाग के अनुसार, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नया वर्ष शुरू होता है। नई फसल के घर आने का भी यही समय होता है, जिसका उल्लास चैता में स्वर पाता है। चैता में राधा-कृष्ण की भी चर्चा मिलती, शिव-पार्वती की भी और तमाम लोकगीतों की तरह प्रेम विरह सुख-दुख को तो यहां स्वर मिलते ही, लेकिन रामनवमी के दिन चैता गाने का एक विशेष उत्साह होता है, जो रामजन्म व उनके जीवन की अन्य घटनाओं से संबद्ध रहता है। यह अपने आप में गायन की अद्भुत परंपरा है, जहां राम ही राम हैं, जहा राम की तरह ही वीर रस और शृंगार रस समवेत होते हैं। चैता का कमाल यह है कि नगाड़ा, मृदंग और डफ जैसे वाद्य भी प्रेम का सुर बिखेरते हैं। चैता राम के प्रति लोक के स्नेह की सबसे मुखर अभिव्यक्ति मानी जा सकती है। अयोध्या का कनक भवन मंदिर राम-सीता के व्यक्तिगत महल के रूप में तो जाना ही जाता, जिसे महारानी कैकयी ने राम और सीता को विवाह में उपहारस्वरूप दिया था। इसलिए भी श्रीरामनवमी के अवसर पर दूर-दूर से महिलाएं यहां रामलला के लिए सोहर गाने जुटती हैं। लोकगीतों की इतनी बड़ी प्रस्तुति अन्यत्र नहीं होती। लोकगीत किसी भाषा के हों, किसी अवसर के हों, भगवान राम के साथ ही वे पूर्णता पाते हैं। सोरठी बृजभार का टेक है, रामे रामे रामे हो रामा, रामेजी के नइया हो, रामे लगइहें बेड़ा पार हो रामा..।
तमाम कलारूपों में व्याप्ति
आश्चर्य नहीं कि तमाम कला रूपों में भी भगवान राम की व्याप्ति दिखती है। कहते हैं 300 से भी अधिक रामकथाएं दुनियाभर में किसी न किसी रूप में भगवान राम के स्वरूप को चित्रित करती हैं। वास्तव में भारतीय जहां भी गए, अपनी रामकथा को हृदय में समेटते गए। स्थानीय सांस्कृतिक वातावरण के अनुरूप उनमें परिवर्तन भी हुए, उनके स्वरूप भी बदले, लेकिन रामकथा की आत्मा अक्षुण्ण रही। आज फिजी, सूरीनाम, मारिशस, नेपाल, कंबोडिया जैसे दुनिया के कई देशों में रामकथाएं कही जाती हैं। रामकथा पर इन देशों की अपनी नाटिकाएं भी हैं। जहां स्थानीय संस्कृति और परिकल्पना के अनुरूप लोगों ने राम गढ़े हैं, लेकिन भगवान राम का शौर्य और पुरुषोत्तम रूप समान है। रामलीला तो किसी न किसी रूप में देश के कोने-कोने में होती है, लेकिन अयोध्या, मिथिला और वृंदावन की रामलीला की अपनी विशिष्टता है, जहां अपलक प्रभु की लीला लोग निहारते नहीं थकते।
श्रद्धा का अद्भुत समागम
वास्तव में रामकथा जब भी जिस भी रूप में, जितनी बार भी कही जाती है, लोग श्रद्धानवत होकर उसके रस में डूब जाते हैं। रामकथा शायद दुनिया की सबसे अधिक देखी-सुनी जाने वाली कथा होगी। ऐसी कथा जिसके क्लाइमेक्स को जानने की उत्कंठा नहीं होती, बस उससे गुजरते जाने की इच्छा होती है। एक ही रामलीला हर साल अमूमन एक ही रूप में होती है, फिर भी हम प्रतीक्षा करते हैं। आश्चर्य नहीं कि रामानंद सागर की ह्यरामायणह्ण वर्षों बाद भी दूरदर्शन पर दिखाई जाती है तो सबसे अधिक लोकप्रिय शो के रूप में दर्ज होती है। वास्तव में रामकथा हम कथा के लिए देखते ही नहीं, यहां एक ही चीज जो हमें बार-बार रामकथा से जोड़ती है, वह है श्रद्धा। अच्छाई, सच्चाई और नैतिकता के प्रति श्रद्धा, साहस और समर्पण के प्रति श्रद्धा। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रति श्रद्धा। शायद इसीलिए अपराध कथा में डूबे ओटीटी प्लेटफार्म ने भी रामकथा कहने में संकोच नहीं किया। कुणाल कोहली जैसे फिल्मकार ने पूरे ह्यरामयुगह्ण में नएपन और भव्यता के साथ रामकथा को प्रस्तुत करने की कोशिश की। ह्यरामयुगह्ण में पात्रों के चयन से लेकर वस्त्र विन्यास, रूप सज्जा से लेकर कहने की शैली में भी वे परंपरा से दूर जाने की चुनौती स्वीकार करते हैं। यहां भगवान राम और माता सीता दैवीय नहीं, मनुष्य रूप में दिखते हैं। यहां रामकथा स्वर्ण मृग के साथ शुरू होती है। वीएकएक्स का कुशल प्रयोग रामकथा की सहजता को एक नई भव्यता प्रदान करता है।
विदेश तक पहुंची आस्था
भगवान राम को जानते ही आप किस तरह उनसे बंध जाते हैं, यह कोई जापानी फिल्मकार यूगो साकी से पूछे। 1983 में वे पहली बार भारत आए। भारतीय संस्कृति को समझते हुए वे रामायण के करीब आए। उन्हें श्रीराम का चरित्र इतना पसंद आया कि रामायण के कई संस्करण पढ़ डाले। उन्हें लगा कि इस तरह के चरित्र को कोई भी अभिनेता ईमानदारी से साकार नहीं कर सकता, इसीलिए उन्होंने 1992 में कालजयी एनीमेशन फिल्म ह्यरामायण: द लीजेंड आफ प्रिंस रामह्ण बनाई।
कम नहीं हुआ सिनेमा का रुझान
भारतीय सिनेमा के लिए तो भगवान राम हर युग में उद्धारक रहे हैं। दादा साहब फाल्के से लेकर आज ओम राउत तक सिनेमा रामकथा को दोहराकर धन्य होता रहा है। यदि सिर्फ हिंदी सिनेमा को देखें तो ह्यसंपूर्ण रामायणह्ण के नाम से ही आधा दर्जन फिल्में हैं। वास्तव में सिनेमा को पता है भारतीय मानस भगवान राम से परे सोच नहीं सकता। दुनिया न चले श्री राम के बिना...सिनेमा हर दौर में लौटकर श्रीराम के श्रीचरणों को समर्पित होता है। आज अभिषेक शर्मा ह्यरामसेतुह्ण के बहाने राम के प्रति आस्था स्थापित करते हैं, तो ओम राउत श्रीराम को ह्यआदिपुरुषह्ण की संज्ञा देते हुए भव्य फिल्म निर्माण की तैयारी में जुटे हैं। यह राम के प्रति आस्था ही है कि ह्यदंगलह्ण फेम नीतेश तिवारी भी ऋतिक रोशन, रणबीर कपूर और दीपिका के साथ 1,000 करोड़ रुपये बजट की फिल्म ह्यरामायणह्ण बना रहे हैं। कंगना रनोट माता सीता को केंद्र में रखकर ह्यइन्कार्नेशन सीताह्ण बना रही हैं। यह स्वभाविक है, जिस तरह भगवान राम देश की आस्था, हिम्मत व ताकत के प्रतीक हैं, ऐसी व्याप्ति स्वभाविक है। श्रीराम की चर्चा, श्रीराम का नाम किसी भी कला तत्व को सार्थकता देता है। लोक जीवन में तो यह सदा से मौजूद रहा है, सुखद कि सिनेमा जैसी विधा भी अब इस सत्य को स्वीकार कर रही है।
तू ही जगदाता, विश्वविधता.
तू ही सुबह, तू ही शाम,
हे राम, हे राम, हे राम, हे रामे
अकेले प्रेम अदीब ने आठ बार भगवान राम की भूमिका निभाई, जिसमें विजय भट्ट की ह्यराम राज्यह्ण भी शामिल है, जिसे महात्मा गांधी द्वारा देखी जाने वाली एकमात्र फिल्म के रूप में याद किया जाता है। ह्यभरत मिलापह्ण, ह्यराम बाणह्ण, ह्यराम विवाहह्ण, ह्यराम नवमीह्ण, ह्यराम लक्ष्मणह्ण, ह्यराम भक्त विभीषणह्ण जैसी फिल्मों का अदीब पर इस तरह प्रभाव पड़ा कि वे शूटिंग के समय पूर्णतः सात्विक जीवन व्यतीत करने लगते थे।
2008 में यूनेस्को ने रामलीला को संरक्षित कला की सूची में शामिल किया है।