गीत सुन मधुबाला रोनी लगी..
पिछली दफा बात हुई थी चंद्रा और अपनी कुछ अन्य फिल्मों 'अलबेली' और 'प्रभु की माया' के गीतों के बारे में। अब बात उससे आगे की..। सन 1
नई दिल्ली। पिछली दफा बात हुई थी चंद्रा और अपनी कुछ अन्य फिल्मों 'अलबेली' और 'प्रभु की माया' के गीतों के बारे में। अब बात उससे आगे की..।
सन 1957 में एक कमाल की फिल्म आई थी 'एक साल'। फिल्म में दर्द को बेहद संजीदा तरीके से पेश किया गया था। मेरे संगीत से सजी इस फिल्म के भी निर्देशक थे देवेंद्र गोयल और कलाकार थे अशोक कुमार, मधुबाला, जॉनी वॉकर आदि। इस फिल्म के चार गीत लिखे थे प्रेम धवन ने और एक गीत मेरा लिखा था। इस फिल्म के गीत 'चले भी आओ चले भी आओ..' और 'छुम छुम चली पिया की गली..' को गाया था लता मंगेशकर ने और 'गाफिल तुझे घडि़याल ये देता है मुनादी..' रफी साहब की आवाज में था। तलत महमूद से हमने एक गीत गवाया था, जो उन्हें तब बहुत पसंद आया था। उसके बोल थे 'सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया..'। बाद में जब यह गीत रिकार्ड के जरिए लोगों तक पहुंचा, जो सभी सुनने वालों को पसंद आया। मेरा लिखा 'उलझ गए दो नैना देखो उलझ गए..' गीत को गाया था लता जी के साथ हेमंत दा ने। इस गीत को भी लोगों ने पसंद किया, लेकिन तलत साहब के गाये गीत ज्यादा मकबूल हुए। लोग उसे आज भी गाते हैं।
इस फिल्म का संगीत जब मैं बना रहा था, एक बात की चर्चा फिल्म इंडस्ट्री में जोरों से हुई और वह बात थी इस फिल्म की हीरोइन मधुबाला और दिलीप कुमार को लेकर। यह उन दिनों की बात है, जब मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच अनबन हो गई थी और दोनों फिल्म तो साथ करते थे, लेकिन बात नहीं करते थे। दिलीप कुमार से उनके संबंध खराब होने के बाद उन दिनों मधुबाला काफी दुखी रहा करती थीं। यह मैं बता चुका हूं कि इस फिल्म के लिए मैंने एक गाना रिकार्ड किया था, जिसके बोल थे, 'सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया..'। इस फिल्म की शूटिंग जब चेंबूर में चल रही थी, तब कुछ काम आ गया और फिल्म के निर्देशक गोयल साहब के कहने पर मैं भी वहां पहुंच गया। वहां पहुंचने के बाद सबसे पहले गोयल साहब ने मेरा परिचय मधुबाला से करवाया, तो उन्होंने कहा कि आपने यह गाना बहुत ही अच्छा बनाया है। फिर हमारी हिचक भी दूर हुई और फिर हमारे बीच कुछ देर तक औपचारिक बातचीत हुई। उसके बाद वे मेकअप रूम में चली गई और मैं वहीं गोयल साहब के पास बैठा रहा। अभी कुछ ही समय बीता था कि एक लड़की ने आकर मुझसे कहा कि मैडम यानी मधुबाला जी आपको बुला रही हैं। उस लड़की की बात सुनकर मैं हड़बड़ा गया और सोचने लगा। मेरी स्थिति गोयल साहब समझ गए। गोयल साहब ने कहा, जाओ मिलकर आओ..। मैं मधुबाला के पास पहुंचा, तो उन्होंने मुझसे वही गाना पूरा सुनाने की फरमाइश की। मैंने कहा कि अभी तो इसी गाने का फिल्मांकन चल रहा था, क्या आपने गाना सुना नहीं। वे बोलीं, 'नहीं-नहीं.., वहां मजा नहीं आता है, एक-एक लाइन पर शॉट लिया जाता है, पूरा गाना कहां सुन पाती हूं..? प्लीज उस गाने को पूरा सुनाइए, बहुत अच्छा बनाया है आपने..'।
उनकी बात सुनकर मैंने टेबुल पर ठेका बजाकर उन्हें पूरा गाना गाकर सुना दिया। मैं जब गीत गा रहा था, तब मेरी आंखें बंद थीं और मैं गाये जा रहा था। जब गाना खत्म हुआ और मैंने अपनी आंखें खोलीं, तो जो देखा, मेरे मुंह से अचानक निकल गया, 'यह क्या..?' गाना सुनकर मधुबाला फूट-फूटकर रोने लगी थीं। मुझे लगा कि मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी? फिर हिम्मत करके पूछा, तो वे अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, 'नहीं..। इस गाने ने मेरे दिल को छू लिया है, इसलिए मैं खुद को रोक नहीं पाई.. इसलिए आंसू निकल आए..।' मधुबाला से मेरी दूसरी मुलाकात फिल्म 'शामे-अवध' के समय हुई थी। इस फिल्म को उनके पिता अताउल्लाह खान बना रहे थे। उन्होंने हेमंत कुमार को संगीत-निर्देशन के लिए साइन किया था और तब मैं उनके लिए भी काम करता था।
इस फिल्म के बाद आई एक और भक्ति फिल्म 'नरसी भगत'। इसके निर्देशक भी थे देवेंद्र गोयल ही और इस फिल्म में काम किया था निरुपा राय, शाहू मोदक, प्रतिमा देवी, राधा कृष्ण, ललिता पवार आदि ने। इस फिल्म में थे तो कई गीत, लेकिन जिस गीत ने कमाल की सफलता पाई, वह था हेमंत दा, मन्ना डे और सुधा मल्होत्रा की आवाज वाला 'दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अंखिया प्यासी रे..'। इस फिल्म के सभी गीत लिखे थे कवि गोपाल सिंह नेपाली ने और एक गीत नरसी मेहता के ही गाये भजन थे। गांधी जी का सबसे प्रिय गीत 'वैष्णव जन तो तैने कहिए पीड़ पराई जाने रे..' को मन्ना डे ने गाया था। इसमें कुल बारह गीत थे जिनमें आवाज थी मोहम्मद रफी, आशा भोसले आदि की।
सन 1958 में आई केदार कपूर निर्देशित फिल्म 'देवर भाभी'। इस फिल्म में राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा हीरो-हीरोइन थे। बलराज साहनी, राम मोहन और तिवारी भी थे। इस फिल्म का एक गाना मुझे अभी भी याद है, जिसके बोल थे 'प्यार की गलियों से बेटा कर ले बिस्तर गोल, जमाना नाजुक है..'। इस फिल्म के सभी गीत लिखे थे शैलेंद्र ने और एक खूबसूरत गीत 'तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी..', जो रफी की आवाज में था को लिखा था राजा मेहंदी अली खां ने। इस फिल्म के अन्य गीत 'चोरी छुप जाए रे..' में आवाज आशा भोसले और शमशाद बेगम की थी। 'हजारों हसरतें ऐसी..' को भी रफी ने ही गाया था। 'ये कैसी रुत आई अजब रंग लाई..' और 'किसे थी खबर कि यूं हद से..' में आवाज थी आशा भोसले की और 'आंख की अंधी..' को गाया था मन्ना डे ने। गीत 'किसी थी खबर..' फिल्म में दो बार था। एक बार खुशी वाला और दूसरी बार सैड अंदाज वाला।
यह वह दौर था, जब मैं फिल्मी दुनिया में बतौर संगीतकार चल निकला था और कामयाब हो गया था। बहुत काम था मेरे पास, लेकिन रहने का स्थान मैंने अभी नहीं बदला था। कांदिवली में जिस गोदाम में रहता था, उसी गोदाम से जुड़ा दूसरा गोदाम भी किराए पर ले लिया था। हां, हिलमैन कार मैंने तब बेच दी थी और उसकी जगह फिएट खरीद ली थी। कुछ दिनों बाद एक और बड़ी कार प्राइमाउथ खरीदी यानी कांदिवली वाले मकान में मेरे पास दो-दो कारें थीं। घूमने का शौक मुझे शुरू से ही था। जब भी काम से फारिग होता, परिवार के साथ घूमने निकल जाता था। एक बार तो गजब हो गया। हम सब कार से खंडाला गए। लौटते समय रास्ते में कार खराब हो गई। रात हो गई थी। सब लोग घबरा गए। कार का इंजन बहुत गर्म हो गया था। काफी मेहनत करने के बाद जब गाड़ी स्टार्ट हुई, तब सबकी जान में जान आई। उसी वक्त पत्नी की मां की मृत्यु हो गई। उनके पिता ने कुछ समय बाद दूसरी शादी कर ली, लिहाजा पत्नी की दोनों छोटी बहनें दादा-दादी के पास रहने लगीं। जब बीच वाली बहन की शादी हो गई और कुछ दिनों बाद दादी की भी मौत हुई, तब छोटी बहन बिन्नो अकेली हो गई, तो मैंने बिन्नो और दादा जी को अपने साथ रहने के लिए बंबई बुला लिया और हम एक परिवार की तरह सुख के साथ रहने लगे।
क्रमश:
इस अंक के सहयोगी : मुंबई से अजय ब्रह्मात्मज, अमित कर्ण, दिल्ली से रतन, स्मिता, पंजाब से वंदना वालिया बाली, पटना से संजीव कुमार आलोक
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