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Ludo Movie: अनुराग बासु ने ‘लूडो’ में पंकज त्रिपाठी पर क्यों सेट किया ‘ओ बेटा जी’ गाना, बताया ये ख़ास कनेक्शन

Ludo Movie फिल्म ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ के बाद निर्देशक अनुराग बासु ने एंथोलॉजी फिल्म ‘लूडो’ का निर्देशन किया है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज ‘लूडो’ में खेल के मुताबिक चार अहम कहानियां हैं। फिल्म हाल ही मे ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हई है।

By Nazneen AhmedEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 11:10 AM (IST)Updated: Fri, 20 Nov 2020 02:03 PM (IST)
Photo credit - Pankaj Tripathi Instagram Account Photo

स्मिता श्रीवास्तव, जेएनएन। फिल्म ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ के बाद निर्देशक अनुराग बासु ने एंथोलॉजी फिल्म ‘लूडो’ का निर्देशन किया है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज ‘लूडो’ में खेल के मुताबिक चार अहम कहानियां हैं। फिल्म को लेकर अनुराग से बातचीत के अंश:

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सवाल : एंथोलॉजी फिल्म से कैसा जुड़ाव रहा है?

जवाब : ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ में चार कहानियां थीं। चारों एक मिजाज और एक जॉनर की थीं। उसे करना आसान हो जाता है। मैंने इस बार सोचा कि चार अलग जॉनर की कहानी को जोड़ते हैं। सब अलग मिजाज की होंगी। शुरू में बड़ा मुश्किल लग रहा था। मुझे लग नहीं पा रहा था कि यह कहानी बन पाएगी। फिर करीब पंद्रह दिन बाद कहानी लिख ली गई। लगा कि यह ठीकठाक बन गई है। मैंने कहानी लोगों को सुनाना शुरू किया। उन्हें भी पसंद आई।

सवाल : भगवान दादा की फिल्म ‘अलबेला’ का गाना ‘किस्मत की हवा’ डालने के बारे में कैसे सोचा?

जवाब : कहानी लिखते समय ही मैंने लिखा था कि सत्तू (पंकज त्रिपाठी) का किरदार मेटाडोर में जाएगा, बाद में वह गाना आएगा। फिल्म की कहानी भी वैसी ही है जैसे गाने के बोल ‘किस्मत की हवा कभी इधर कभी उधर। जिंदगी का मजा कभी नरम कभी गरम।’ मैंने प्रीतम से कहा कि इसे बनाने से पहले देखना होगा कि इसके अधिकार मिलेंगे या नहीं। मगर खुशकिस्मती से मिल गए। यह गाना मुङो हमेशा से अच्छा लगता था।

सवाल : संगीतकार प्रीतम के साथ ‘गैंगस्टर’, ‘बर्फी’, ‘जग्गा जासूस’ और अब ‘लूडो’ में काम किया है। उनके साथ कैसे दोस्ती हुई?

जवाब : प्रीतम से बहुत पुरानी दोस्ती है। पिछली सदी के नौवें दशक से हम एकदूसरे को जानते हैं तब हम टीवी की दुनिया में साथ काम करते थे। प्रीतम इंडस्ट्री में मेरे एकमात्र दोस्त हैं। हम दोनों एकदूसरे को काफी समझते हैं। हमारा संगीत का टेस्ट भी एकसमान है। हम म्यूजिक के लिए कम बाकी चीजों के लिए ज्यादा मिलते हैं। गाना तो बन जाता है। बहरहाल, ‘लूडो’ का म्यूजिक बनाना थोड़ा मुश्किल था। हमें इसमें ओल्ड वल्र्ड चार्म, कविता और अच्छी मैलोडी सब चाहिए था।

सवाल : फिल्म में आपने यमराज का किरदार निभाया है। शुरुआत से तय था कि यह किरदार आप ही निभाएंगे?

जवाब : नहीं। अगर कोविड नहीं आता तो मैं यह रोल बिल्कुल भी नहीं करता। हमने एक दिन की शूटिंग छोड़ दी थी। सोचा था कि बाकी फिल्म एडिट करके उसे करूंगा। फिर लॉकडाउन शुरू हो गया। लॉकडाउन के बीच एक दिन शूट करने का मौका मिला। हमने झटपट उसे शूट किया। उस समय कोई एक्टर साथ में था नहीं। हमारे लिए फिल्म को पूरा करना जरूरी था, वरना अटक जाती।

सवाल: कर्मा का गणित फिल्म में बताया है। इंडस्ट्री का गणित कितना समझ पाए हैं..

जवाब : कर्मा का गणित सब जगह काम करता है। बस वही आपका नजरिया है। हो सकता है मेरा सही आपका गलत। आपका सही मेरा गलत हो। हम फिल्मों में नैतिक कदम लेते हैं, लेकिन जिंदगी में वैसा होता नहीं है।

सवाल : खबरों में कहा गया कि ‘जग्गा जासूस’ के सेट पर रणबीर कपूर और कट्रीना कैफ ‘लूडो’ खेलते थे। वहां से यह नाम आपके जेहन में आया?

जवाब : (हंसते हुए) यह मैंने कभी नहीं कहा। मैंने भी इसे खबरों में पढ़ा था। मैंने इतना कहा था कि आजकल फिल्म के सेट पर भी लोग लूडो खेलते हैं। लूडो बचपन से खेलते आए हैं। जब स्क्रीन प्ले लिख रहे थे तो कहानी लूडो के खेल के माफिक ही जा रही थी। पंकज त्रिपाठी का किरदार ‘सत्तू’ लूडो के पासे की तरह है। लूडो को हमने फिल्म में प्रतीक के तौर पर रखने की सोची थी। टाइटल नहीं सोचा था। बाद में मुङो कोई और टाइटल सूझा ही नहीं। आज महामारी के समय सभी लोग लूडो खेल रहे हैं। यह महज संयोग हो गया, सोने पे सुहागा।

सवाल : ओटीटी ने सिनेमा को कड़ी प्रतिस्पर्धा दे दी है?

जवाब : यह बहुत अच्छा हुआ। अब दुनियाभर का सिनेमा आपके हाथ में है। सिनेमा को अब आप आर्ट के तौर पर सराहना शुरू करेंगे। पिछली सदी के सातवें दशक में यह माहौल हमारे यहां था। उसके बाद खत्म हो गया।

जवाब : क्या मानते हैं कि डिजिटल ने बॉक्स ऑफिस का चार्म प्रभावित किया है?

सवाल : सौ करोड़, दो सौ करोड़ क्लब की बातें निर्माता और निर्देशक के बीच विमर्श का विषय होनी चाहिए। आप किसी रेस्त्रं में जाकर खाना खाते हैं और खाना पसंद आता है तो होटल मालिक से यह नहीं पूछते हैं कि कितना कमा लेते हो। आपको खाना अच्छा या बुरा लगना चाहिए। ऑडियंस को भी फिल्म पसंद आनी चाहिए या खराब लगनी चाहिए। यह जरूर है कि थिएटर में दर्शकों की त्वरित प्रतिक्रिया मिल जाती थी वह मिस करेंगे। डिजिटल पर लोगों की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।

 

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