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एक ख्वाहिश जिसे चाहकर भी पूरा ना कर पाए किशोर दा

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By Edited By: Published: Sun, 13 Oct 2013 12:16 PM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2013 12:16 PM (IST)
एक ख्वाहिश जिसे चाहकर भी पूरा ना कर पाए किशोर दा

सालों पहले की बात है जब साल 1987 में किशोर कुमार ने निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे। वह अकसर कहा करते थे कि 'दूध जलेबी खायेंगे खंडवा में बस जाएंगे' लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। 13 अक्टूबर, 1987 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनकी मौत हो गई। उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार उनको खंडवा में ही दफनाया गया।

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साल 1987 की इस कहानी को अधिकांश लोग जानते हैं पर बहुत कम ही लोग जानते है कि किशोर कुमार की ऐसी कौन सी ख्वाहिश थी जिसे पूरा करने की उन्होंने कई बार कोशिश कीं पर इसके बावजूद भी उन्हें असफलता ही मिली। आज 13 अक्टूबर की तारीख है और इस दिन किशोर कुमार की उपलब्धियों के लिए टेलीविजन चैनल्स और अखबारों में उन्हें याद किया जाएगा। लेकिन उनके गायकी कॅरियर की वो कौन सी उपलब्धि थी जिसे चाहते हुए भी किशोर कुमार हासिल नहीं कर पाए?

साल 1950 से लेकर 60 के दशक की शुरुआत तक हिंदी सिनेमा के संगीतकारों की लिस्ट में नौशाद का नाम पहले नंबर पर लिया जाता था। नौशाद ने अपनी फिल्मों में शास्त्रीय संगीत पर आधारित धुनों का बखूबी इस्तेमाल किया और उन्हें क्लासिकल संगीत की समझ ना रखने वाले आम दर्शकों तक भी आपनी धुनों को पहुंचाया। नौशाद ऐसे पहले संगीतकार थे जो 50 के दशक में एक फिल्म में संगीत देने के लिए 1 लाख रुपए लेते थे।

जाहिर सी बात है जब 60 के दशक में नौशाद राज कर रहे थे तो ऐसे में उनसे जुड़े करीबी लोगों को ज्यादा महत्व दिया जाता था। नौशाद के मनपसंद गायक लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी थे। मोहम्मद रफी, नौशाद के बेहद करीबी थे जिस कारण नौशाद ज्यादातर गायिकी के मौके मोहम्मद रफी को ही दिया करते थे। उन दिनों किशोर कुमार भी गायक बनने का सपना लेकर सिनेमा में आए।

किशोर कुमार के लिए बहुत मुश्किल था हिन्दी सिनेमा में अपना मुकाम बनाना क्योंकि उन दिनों लोग मोहम्मद रफी को ही सुनना चाहते थे पर साल 1969 में रिलीज हुई फिल्म आराधना ने किशोर कुमार की किस्मत को बदल दिया। मोहम्मद रफी को चाहने वाले लोग धीरे-धीरे किशोर कुमार की गायिकी के दीवाने हो गए। सच तो यह था कि दोनों की गायक अपनी गायिकी के अंदाज में बेहतर थे।

नौशाद भी समय परिवर्तन के साथ-साथ किशोर कुमार की गायिकी को पसंद करने लगे। नौशाद ने किशोर कुमार को फिल्म सुनहरा संसार में गाने का मौका दिया। साल 1975 में जब फिल्म सुनहरा संसार रिलीज हुई तो उसमें किशोर कुमार का गाया गाना नहीं था। जब नौशाद से पूछा गया कि फिल्म से वो गाना कट क्यों कर दिया गया तो नौशाद ने जवाब दिया कि फिल्म के निर्देशक ने उस गाने की शूटिंग ही नहीं की थी। ऐसे में कहीं ना कहीं किशोर कुमार का नौशाद से विश्वास उठ गया और फिर कभी भी दोनों ने एक साथ काम नहीं किया। इस बीच दोनों का ही कुछ भी नुकसान नहीं हुआ बल्कि नुकसान उन लोगों का हुआ जो किशोर और नौशाद को एक साथ सुनना चाहते थे।

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