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Happy Birthday Amitabh Bachchan: नायक, खलनायक और 'सदी का महानायक'...

Happy Birthday Amitabh Bachchan यह खलनायक फिर नायक बना और एक लंबे सफर पर निकल गया। वह आज किनारे पे खड़ा है तो वह सदी का महानायक है।

By Rajat SinghEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 08:15 PM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2019 11:19 AM (IST)
Happy Birthday Amitabh Bachchan: नायक, खलनायक और 'सदी का महानायक'...
Happy Birthday Amitabh Bachchan: नायक, खलनायक और 'सदी का महानायक'...

नई दिल्ली, जेएनएन। Happy Birthday Amitabh Bachchan: वो नायक हैं, वो खलनायक हैं... उन्होंने ऐसा काम किया है कि वो अब सदी के महानायक हैं। 'सात हिंदुस्तानी' के साथ एक 6 फुट 2 इंच लंबे युवक ने अपने करियर की शुरुआत की। इसे नायक बनना था, लेकिन 'परवाना'  ने उसे खलनायक बनाया। यह खलनायक फिर नायक बना और एक लंबे सफर पर निकल गया। कई बार टूटा, गिरा और फिर उठकर दौड़ गया। इस दौड़ में  भले ही बाल काले से सफेद हो गए, लेकिन जब वह आज किनारे पे खड़ा है, तो वह सदी का महानायक है। आज इस महानायक अमिताभ बच्चन का जन्मदिन है। इस अवसर पर हम आपको इनके अभिनय की दुनिया के सभी पहलुओं से रूबरू कराने जा रहे हैं।

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नायक-

अमिताभ बच्चन के करियर की शुरुआत भी उसी दौड़ में हुई, जहां लोग फ़िल्मी हीरो बनने को बेताब थे। ऐसे किरदारों की धूम थी, जो समाजिक खांचे में नायक की भूमिका में फिट बैठते थे। अमिताभ ने भी ऐसे ही कई पॉजटिव किरदारों को पर्दे पर उतारा।  'अलाप' में वह एक ऐसे किरदार में थे, जो मोहब्बत का हीरो था। यह हीरो साल 1981 में 'सिलसिला' में एक बार फिर प्यार के तराजू में तौला गया। अमिताभ सिर्फ इश्क की इबादत बनकर नहीं रहे। उन्होंने समाज के असली हीरो के रूप में पुलिस के भार को भी अपने कंधे पर उठाया। 'शोले' में वह गांवों के लिए कुर्बान हो गये, तो 'जंजीर' और 'शहंशाह' में पुलिस की वर्दी में वह हीरो बने। शहंशाह से निकला डायलॉग 'रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं' आज भी आम लोगों के बातचीत में गूंज जाता है। सिलसिला यहीं नहीं रुका... वह खुदा-गवाह, मजबूर, अमर अकबर एंथनी, लावारिस, सौदागर और अभिमान जैसी न जाने कितनी फ़िल्मों में ऐसे ही हीरो बनते रहे।

खलनायक-

नायक कैसा भी हो, उसे अपने नायकत्व को साबित करने के लिए एक खलनायक की जरूरत होती है। बिना खलनायक किसी नायक का अस्तित्व नहीं। अमिताभ ने अपने सिनेमाई सफ़र में कई बार ऐसा किरदार निभाया, जो हीरो पर भारी पड़ गया। इस फ़िल्मी खलनायक का सफर पर्दे पर साल 1971 में 'परवाना' से शुरू हुआ। एक खलनायक जिसके मारने की कला के इर्द-गिर्द पूरी फ़िल्मी बुनी गई। ये विलेन उस वक्त और प्रभावशाली हो गया, जब इसे 'डॉन' बनाया गया। ऐसा डॉन कि उसे 12 मुल्क़ों की पुलिस तलाशने लगी। इस किरदार में अमिताभ की इतनी शिद्दत नज़र आती है, जिसे आज भी पकड़ पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। अभी तक जिस डॉन से लोगों को मुहब्बत थी, उसे अभी क्रूर बनना था। इतना कि 'आखें ' में जब उसने अंधों से बैंक लूटवाने की कोशिश की, तो लोगों को इससे नफरत हो गई। इस खलनायक को उस डायरेक्टर का भी साथ मिला, जिसे ऐसे किरदारों का बाज़ीगर कहा जाता है। अमिताभ ने राम गोपाल वर्मा के साथ 'आग' की। हालांकि, ये आग पर्दे और दर्शकों दोनों के दिलों में आग न लगा सकी।

महानायक-

फ़िल्मी दुनिया में कुछ ऐसे किरदार होते हैं, जिन्हें समाजिक नायकों और खलनायकों की चिंता नहीं होती। उसे किसी रास्ते की परवाह नहीं होती है। वह पर्दे पर होता और उसका कनेक्शन सीधे दर्शकों के दिलों से होता है। ऐसे में अमिताभ जब 'एंग्री यंग मैन' बनकर लोगों के दिलों में उतरे, तो महानायक बन गए। दीवार, त्रिशूल, अग्निपथ, कालिया, मर्द और शराबी फिल्में इस महानायक के पर्दे की कहानी का हिस्सा बनीं। जब बाल सफेद हुए, तो सिल्वर स्क्रीन पर महनायक की चमक और भी बढ़ गई। नायक ने अपने टाइपोकॉस्ट को छोड़ अलग-अलग किरदरों को अपनाया। 'पा' में वह अपने बेटे के बेटे बन गए, तो 'वज़ीर' में एक ऐसा बूढ़ा, जो चल नहीं सकता। यह किरदार हल्के नहीं थे, यह मजबूत थे उतने जितने कि 'सरकार' की ताकत। इस महानायक का सफ़र अभी थमा नहीं है, अभी वह आएगा और पर्दे पर छा जाएगा।


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