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कॉपीराईट विवाद: लड्डू और इन द नेम ऑफ गॉड में मामला और बढ़ा

आरोप है कि लड्डू को कथित रूप से लिखने वाले ने पहले किसी तरह का रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया था। वो इस मामले में कानूनी तौर पर आगे की लड़ाई लड़ेंगेl

By Manoj KhadilkarEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 04:08 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 04:08 PM (IST)
कॉपीराईट विवाद: लड्डू और इन द नेम ऑफ गॉड में मामला और बढ़ा
कॉपीराईट विवाद: लड्डू और इन द नेम ऑफ गॉड में मामला और बढ़ा

मुंबई। नीरज पांडे की शॉर्टफिल्म 'लड्डू' और निर्माता, निर्देशक अजय धामा की फिल्म इन द नेम ऑफ द गॉड के बीच कॉपीराइट्स को लेकर चल रहा विवाद फ़िलहाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच मामला अब काफ़ी आगे बढ़ गया है।

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पिछले दिनों अजय धामा ने आरोप लगाया था कि लड्डू उन्हीं की फिल्म की कहानी को कॉपी कर बनाई गई शॉर्ट फिल्म है, जो उन्होंने सीताराम पंचाल के साथ साल 2014 में इन द नेम ऑफ द गॉड के नाम से बनाई थी। अजय का आरोप है कि लड्डू को कथित रूप से लिखने वाले ने पहले किसी तरह का रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया था। वो इस मामले में कानूनी तौर पर आगे की लड़ाई लड़ेंगेl यह मामला पिछले दिनों जब सामने आया तो इसके बाद लड्डू मेकर्स नीरज पांडे और शीतल भाटिया ने बताया कि लेखक पंकज चतुर्वेदी ने साल 2013 में उनके सामने ये स्क्रिप्ट लाई थी। लेकिन समय बीत जाने और किसी कारणवश लड्डू में लेखक का नाम देना छूट गया था।

जानकारी के मुताबिक इसके बाद 25 फरवरी को लड्डू के लेखक पंकज ने अजय धामा को लीगल नोटिस भेजा जिसमें ये कहा गया कि इस सब्जेक्ट को पंकज ने अजय के साथ 2013 शेयर किया था। पंकज का दावा है कि वो ही इस स्क्रिप्ट के असली लेखक हैं। साथ ही ये भी हिदायत दी कि अजय को तुरंत सोशल मीडिया सहित हर जगह से अपनी फिल्म को हटा लेना चाहिए। इस बीच अजय धामा ने उस नोटिस का जवाब देते हुए सवाल किया है कि पंकज ने फरवरी 2019 तक अपनी स्क्रिप्ट को रजिस्टर करने में इंतज़ार क्यों किया क्योंकि उससे पहले इस तरह की कोई स्क्रिप्ट दर्ज़ ही नहीं थी। अजय के मुताबिक राकेश ओझा और उन्होंने इस स्क्रिप्ट को बनाया था।

पंकज के मुताबिक उन्होंने दिसंबर 2013 में ही स्क्रिप्ट रजिस्टर कराई थी लेकिन हाल ही में सिर्फ एहतियात के लिए फिर से कॉपीराईट के लिए अप्लाई किया है। अजय की फिल्म की कहानी एक लड़के की है जिसे उसकी मां उसके दादाजी के बरसी पर खाना देते हुए पंडित को खिलाने के लिए भेजती है। खाना लेकर जब लड़का मंदिर जाता है तो वहां ताला लगा होता है और फिर वो आगे एक मस्जिद में पहुंचता है। वहां के मौलवी से वो खाना खाने को कहता है। मौलवी कहते हैं कि वो गलत जगह आ गया है जो काम पंडित कर सकता है वो मौलवी नहीं। और अपनी बातों से वो बच्चा मौलवी को खाना खाने के लिए तैयार करता है । फिल्म सभी धर्मों के एक बराबर होने की बात करती है।

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