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आलिया भट्ट ने 'गंगूबाई काठियावाड़ी' में अपने किरदार को लेकर की बात, कहा- आवाज भारी करने से लेकर सीखें गुजराती शब्द

अभिनेत्री आलिया भट्ट 25 फरवरी को रिलीज हो रही फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से बॉक्स ऑफिस पर धमाका करने के लिए तैयार हैं। फिल्म में अपने किरदार और निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ काम के अनुभवों को लेकर आलिया भट्ट ने एक खास बातचीत में कई रोचक बाते साझा कीं।

By Vaishali ChandraEdited By: Published: Sun, 20 Feb 2022 01:03 PM (IST)Updated: Sun, 20 Feb 2022 01:03 PM (IST)
आलिया भट्ट ने 'गंगूबाई काठियावाड़ी' में अपने किरदार को लेकर की बात, कहा- आवाज भारी करने से लेकर सीखें गुजराती शब्द
actress alia bhatt social media account post

प्रियंका सिंह, जेएनएन। आलिया भट्ट बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में मख्य भूमिका निभाती नजर आएंगी। इस फिल्म में अपने किरदार की तैयारियों और निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ काम के अनुभवों को लेकर आलिया भट्ट ने जागरण डॉट कॉम की प्रियंका सिंह से की खास बातचीत।

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फिल्म को तैयार होने में दो साल लग गए। इतने लंबे वक्त तक किसी किरदार के साथ रहने के बाद उससे निकलने में वक्त लगता होगा?

सच कहूं तो हां। जब फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप दर्शकों को अपनी फिल्म सौंप देते हैं। तब उस किरदार से निकलकर दूसरे किरदार की ओर बढ़ते हैं। वह अब तक इस फिल्म के साथ नहीं हुआ है। कोरोना महामारी की वजह से इस फिल्म को शूट करने में ही दो साल लग गए। मैं आज भी इस किरदार को बहुत करीब लेकर घूम रही हूं।

क्या ऐसा कभी किसी और किरदार के साथ भी हुआ है?

हां, ‘हाइवे’ के दौरान भी ऐसा हुआ था। उस किरदार से मैं कहीं न कहीं खुद को रिलेट कर रही थी। वह दिल्ली की लड़की थी, बड़े घर से थी। उसके जीवन में एक ऐसा सफर शुरू हो जाता है जो उसे बदल देता है। जबकि ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के किरदार से मैं रिलेट नहीं कर सकती थी। जब आप किरदार से रिलेट नहीं करते हैं और फिर भी आपका जुड़ाव किरदार के साथ हो जाता है, तो वह कलाकार के लिए बहुत अनोखी चीज होती है।

आपने मुंबई के रेडलाइट एरिया कमाठीपुरा जाकर वहां के लोगों से मिलने की कोशिश नहीं की?

पहले बात हुई थी कि क्या मुझे कमाठीपुरा जाना चाहिए। मैं तैयार थी, लेकिन फिर टाइम या डेट की वजह से वह हो नहीं पाया। अगर निर्देशक चाहते हैं कि मैं बहुत सारी तैयारी करूं, तो करती हूं। जैसे ‘उड़ता पंजाब’ के निर्देशक अभिषेक चौबे चाहते थे कि मैं गांव जाकर लड़कियों से मिलूं, उन्हें काम करते हुए देखूं। संजय सर नहीं चाहते थे कि हम ज्यादा रिहर्सल करें। उनका मानना है कि कुछ चीजें सेट पर तुरंत ही होती हैं। यह किरदार सेट पर बना है। इस फिल्म को शुरू करने से पहले कई चीजों पर हमारी बात हुई। आवाज में थोड़ा वजन लाने को कहा क्योंकि उसी से पावर दिखेगी। किरदार काठियावाड़ से है, तो वहां का टच भी चाहिए था, तब कुछ गुजराती शब्द भी सिखाए गए। संजय सर चाहते थे कि मेरी एंट्री धमाकेदार बने। सेट पर जाने से एक दिन पहले सर ने फोन करके कहा कि अगर मैं वहां नहीं गई हूं, तो जाने दो। अच्छा भी हुआ, क्योंकि पहली बार कमाठीपुरा की गलियों में चलने का मौका मुझे सेट पर ही मिला। वह सेट ही मेरा घर बन गया।

संजय लीला भंसाली की बनाई दुनिया में काम करने का अनुभव कैसा रहा?

संजय सर के निर्देशन के सफर पर कोई भी कलाकार तैयारी करके नहीं जा सकता। जब आप कैमरा के सामने या पीछे होते हैं, संजय सर लगातार अपने रचनात्मक दिमाग से कई चीजें स्क्रिप्ट और किरदार में लेकर आते रहते हैं। आपको उनके साथ कदम मिलाकर चलना होता है। वह कहते हैं कि मैं एक पत्ता डालूंगा, तुम दो और पत्ते डालना। वह कहते हैं 100 प्रतिशत सोच लगाओ। पिछले दो वर्षों में सीन को अप्रोच करने की मेरी पूरी प्रक्रिया ही बदल गई है। उन्होंने मुझे जिम्मेदारी और स्वतंत्रता दोनों दी।

यह कैसे तय किया कि आप इतने मैच्योर किरदार कर सकती हैं?

अगर आठ साल का बच्चा माता-पिता के साथ खेतों में काम करता है तो उसकी उम्र नहीं, बल्कि जिम्मेदारियां अनुभव बढ़ाती हैं। आप कैसे बर्ताव करेंगे, यह आपके जीवन के अनुभवों पर निर्भर करता है। मैं लोगों पर बहुत गौर करती हूं। उनको देखकर, बातें करके मैं उनसे सीखती हूं, समझती हूं। 


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