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'चंद्रकांता' का क्रूर सिंह बड़े पर्दे पर वकील बनकर लौट रहा है, पढ़िये अखिलेंद्र मिश्रा से यह ख़ास बातचीत

उनके मुताबिक एक अभिनेता थियेटर से कमाता है और फ़िल्मों में खर्च करता है। अभी तक 51 फ़िल्में कर चुके अखिलेंद्र की आने वाली फ़िल्मों में...

By Hirendra JEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 03:20 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 08:20 AM (IST)
'चंद्रकांता' का क्रूर सिंह बड़े पर्दे पर वकील बनकर लौट रहा है, पढ़िये अखिलेंद्र मिश्रा से यह ख़ास बातचीत
'चंद्रकांता' का क्रूर सिंह बड़े पर्दे पर वकील बनकर लौट रहा है, पढ़िये अखिलेंद्र मिश्रा से यह ख़ास बातचीत

हीरेंद्र झा, मुंबई। जो पीढ़ी नब्बे के दशक में बड़ी हुई है वो टीवी सीरियल 'चंद्रकांता' और उसके एक अहम किरदार क्रूर सिंह से भलीभांति परिचित है। 'यक्कू' कहते हुए जब क्रूर सिंह टीवी पर आते तो उन्हें तब बच्चे-बूढ़े सब टकटकी लगाये देखा करते। क्रूर सिंह का किरदार निभाने वाले अखिलेंद्र मिश्रा के मुताबिक उनका यह किरदार 'शोले' के 'गब्बर सिंह' की तरह ही एक आइकॉनिक किरदार है।

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54 साल के अखिलेंद्र मिश्रा इन दिनों अपनी फ़िल्म 'काशी: इन सर्च ऑफ़ गंगा' के लिए चर्चा में हैं। धीरज कुमार के निर्देशन में बनी इस सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म में अखिलेंद्र मिश्रा के अलावा शरमन जोशी, ऐश्वर्या दीवान, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा जैसे एक्टर्स हैं। यह फ़िल्म 26 अक्टूबर को रिलीज़ होगी। जागरण डॉट कॉम से एक ख़ास बातचीत में अखिलेंद्र बताते हैं कि- '' पूरी फ़िल्म बनारस में शूट हुई है जबकि कोर्ट का हिस्सा मुंबई में शूट हुआ है। फ़िल्म में भाई का नाम है काशी जो अपनी बहन गंगा को ढूंढ रहा है, जो गायब हो गयी है। इसलिए फ़िल्म का टाइटल भी है- काशी: इन सर्च ऑफ़ गंगा। बहुत ही खूबसूरत ढंग से लेखक ने पिरोया है इस कहानी को।''

इस फ़िल्म में अखिलेंद्र एक वकील की भूमिका में हैं जो कोर्ट रूम में यह साबित करने में लगे हैं कि गंगा है ही नहीं, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं। फ़िल्म में जब दोनों वकील बहस कर रहे हैं तो उनके संवाद में यह एक प्रतीक के रूप में आता है कि गंगा कहीं गायब हो गयी है। सांकेतिक रूप में इसे गंगा नदी से भी जोड़कर देखा जा सकता है! बहरहाल, फ़िल्म में अखिलेंद्र अपने वकील के किरदार को लेकर काफी उत्साहित हैं।

जागरण डॉट कॉम से इस बारे में बात करते हुए अखिलेंद्र बताते हैं कि- ''वकील समाज का एक बुद्धिजीवी तबका है जो सच को झूठ और झूठ को सच करने के लिए भी जाना जाता है। हाल के दिनों में कई फ़िल्म स्टार्स बड़े पर्दे पर वकील की भूमिका में दिखाई दिए हैं, इन सबको देखने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि मेरा किरदार इन सबसे अलहदा है। अभी तक जितने वकीलों के किरदार आये हैं उनका मेरे कैरेक्टर से कोई संबंध नहीं है। इस फ़िल्म में मेरा जो चरित्र है वो मेरे जीवन के दो वास्तविक वकीलों से प्रभावित है। एक तो अस्सी के दशक में पटना हाई कोर्ट में वकील थे प्रभाशंकर मिश्रा, जो मेरे परिचित थे और दूसरे हैं मेरे सगे भाई जो सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट हैं विद्या भूषण मिश्रा। इन दोनों से प्रभावित है मेरा यह चरित्र! जो उन दोनों के बहस करने का ढंग था वो मैंने देखा है और इसलिए मुझे यह किरदार निभाने में थोड़ी आसानी भी रही।''

अखिलेंद्र बताते हैं कि जब डायरेक्टर उन्हें इस फ़िल्म की कहानी सुना रहे थे तो उन्होंने क्लाइमेक्स सुनाने के लिए मना कर दिया। उनके मुताबिक वो इस फ़िल्म के एक मात्र अभिनेता हैं जिन्हें फ़िल्म का क्लाइमेक्स नहीं मालूम। इसकी उन्होंने वजह भी बताई। वो कहते हैं- ''मेरा सस्पेंस फ़िल्म करने का ये तरीका है कि मैं किरदार करूं, सस्पेंस को न जानूं। क्योंकि मुझे लगता है कि अगर एक एक्टर क्लाइमेक्स जानता है तो उसके परफॉर्मेंस पर उसका प्रभाव पड़ जाएगा। ये मैंने इस्माइल श्रॉफ से सीखा था जब मैं उनके साथ 'तरकीब' (2000) की शूटिंग कर रहा था। नाना पाटेकर और तब्बू उस फ़िल्म में लीड रोल में थे। उस फ़िल्म में भी मुझे क्लाइमेक्स पता नहीं था। जबकि फ़िल्म में क़ातिल मैं ही था और मैं परफॉर्म कर रहा था बिना ये जाने। इस्माइल श्रॉफ ने तब मुझसे कहा था कि आप किरदार निभाइये, सस्पेंस मत जानिये तभी इसे आप खूबसूरत ढंग से कर पाएंगे। जिस दिन ये सीन करना था उस दिन हमें बताया गया कि आज ये करना है!''

अखिलेंद्र मिश्रा आगे कहते हैं कि उन्होंने अभी तक जो कुछ भी हासिल किया है वो थियेटर की वजह से ही है। उनके मुताबिक एक अभिनेता थियेटर से कमाता है और फ़िल्मों में खर्च करता है। अभी तक 51 फ़िल्में कर चुके अखिलेंद्र की आने वाली फ़िल्मों में एक कॉमेडी फ़िल्म 'लव ट्रेनिंग' और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के जीवन पर बनी 'झलकी- एक और बचपन' जैसी लगभग आधा दर्जन फ़िल्में शामिल हैं।


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