नई दिल्ली, जेएनएन। AK Hungle Birth Anniversary: बॉलीवुड के दिग्गज चरित्र कलाकारों में से एक ए के हंगल यानी अवतार किशोर हंगल की आज 109वीं बर्थ एनिवर्सरी है। ए के हंगल ऐसे कलाकार थे, जो सहायक भूमिकाएं करने के बावजूद घर-घर में पहचाने जाने जाते थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले ए के हंगल ने 5 साल जेल में बिताए थे। उनके दादाजी और पिता के पास ब्रिटिश राज में सरकारी नौकरी थी, लेकिन ए के हंगल ने आजादी की राह चुनी।

एक दौर ऐसा भी आया जब ए के हंगल को गुजारा करने के लिए कपड़ों की सिलाई तक करनी पड़ी, पर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। हंगल रंगमंच के मंझे हुए कलाकार थे, जिसनें उन्हें फिल्मों तक पहुंचा दिया। जिसके बाद उन्होंने कई बड़ी फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा दिखाया।
5 साल की उम्र में मां का निधन
एके हंगल के पिता और दादाजी ब्रिटिश राज में बड़े अधिकारी पद पर थे। उनका परिवार पेशावर में बड़े आलीशान घर रहता था। रिपोर्ट्स की मानें तो ए के हंगल के जन्म से पहले उनकी मां अपने मायके चली गई थीं। ए के हंगल का जन्म 1 फरवरी 1914 को उनके मामा के घर सियालकोट में कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। फिर जब ए के हंगल 5 साल के हुए तो उनकी मां का निधन हो गया, जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें अपने पास पेशावर बुला लिया।
गुड्डी फिल्म में ए के हंगल, IMBD
ब्रिटिश हुकुमत की नौकरी नहीं थी स्वीकार
ए के हंगल की मुलाकात पढ़ाई-लिखाई के दौरान अब्दुल गफ्फार खान से हुई, जिनका उन पर खासा प्रभाव रहा। ए के हंगल के मामा कांग्रेस के नेता थे। हंगल ने भगत सिंह की गिरफ्तारी और फांसी भी देखी। जब जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ तो उनके मामा वहां की मिट्टी अपने घर लेकर आए। इन सब घटनाओं ने उन पर बड़ा असर छोड़ा। फिर क्या था, उन्होंने अपने पिता और दादाजी की तरह ब्रिटिश सरकार में नौकरी करने के बजाए स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेना वाजिब समझा।
कराची जेल में रहे बंद
आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए हंगल को 3 सालों तक जेल में बंद रहना पड़ा। इस दौरान परिवार से भी उनके संबंध बिगड़े। उनके पिता ब्रिटिश सरकार के मुलाजिम थे, लिहाजा वो अपने बेटे को इस क्रांति से दूर रखना चाहते थे। मगर ए के हंगल भी कहां मानने वाले थे। वो आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने रहे।
1929 से 1947 तक रहे आजादी की लड़ाई क्रांतिकारी
ए के हंगल ने 1929 से 1947 तक स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। फिर साल 1947 में आजादी तो मिल गई, लेकिन देश को बंटवारे का दंश भी झेलना पड़ा। हंगल ने इस दौरान पाकिस्तान को चुना। उनकी किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। क्रांतिकारी विचारों के चलते उन्हें 2 साल और जेल में रखा गया। फिर जेल से छूटने के बाद उन्होंने पाकिस्तान छोड़ मुंबई का रुख कर लिया।
कपड़े सिलकर करते थे 2 वक्त की रोटी का जुगाड़
इस सबके बीच ए के हंगल के जीवन में थिएटर मुख्य रूप से शामिल रहा। चाहे वो आजादी की लड़ाई के लिए नाटक कर लोगों को जागरूक करना हो या थिएटर में नाटक करना। मुंबई आने के बाद ए के हंगल को रोजी रोटी का संकट था। ऐसे में उन्होंने सिलाई सीखकर कपड़े सिलना शुरू कर दिया। साथ में वो वक्त मिलने पर नाटकों में काम किया करते थे।
52 साल की उम्र में मिला फिल्मों में काम
ए के हंगल को थिएटर में अभिनय करते देख एक बार ऋषिकेश मुखर्जी ने उन्हें अपनी फिल्म में काम करने के लिए कहा, तब उन्होंने फिल्मों का रुख कर लिया। 1966 में पहली बार राज कपूर की फिल्म तीसरी कसम में नजर आए। इसके बाद उन्होंने फिल्म हीर रांझा, नमक हराम, शौकीन, आईना जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया, लेकिन उन्हें पहचान मिली फिल्म शोले से, जिसमें इमाम साहब की भूमिका में वो नजर आये थे। 'इतना सन्नाटा क्यों है भाई' आज भी सिनेप्रेमियों के जहन में ताजा है।
थिएटर में ए के हंगल, IMBD
225 फिल्मों में किया काम
ए के हंगल ने अपने जीवन में लगभग 225 फिल्मों में काम किया। उन्होंने कई फिल्मों में पिता और दादाजी के रोल निभाकर लोगों के दिलों में अपनी एक अलग जगह बनाई। आखिरी बार उन्हें 2012 के सीरियल 'मधुबाला- एक इश्क एक जुनून' में देखा गया था।
भारत सरकार ने पद्म भूषण से किया सम्मानित
ए के हंगल को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 2006 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्होंने अपने जीवन में बहुत सी परेशानियां देखीं, पर समाजवाद पर जोर देने वाले हंगल ने कभी बैंक बैलेंस बनाने की कोशिश नहीं की। इसका सिला ये हुआ कि जिंदगीभर मेहनत करने के बाद आखिरी समय में वो पैसों के लिए मोहताज हो गए थे। उनके आखिरी समय में उनके इलाज के लिए सरकार और कई संस्थाएं उनके सपोर्ट में आईं।
98 साल की उम्र में हुआ निधन
ए के हंगल का निधन इलाज के दौरान मुंबई के अस्पताल में 26 अगस्त 2012 को हो गया। उनके निधन को आशा पारेख ने एक युग का अंत होना बताया था।
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