हर फिल्म 300 करोड़ कमाये और मैं उसका हिस्सा बनूं ये जरूरी नहीं - आमिर खान
आमिर इस बारे में दो टूक कहा कि उनके प्रोडक्शन में वह डायरेक्टर के बाद राइटर को ही तवज्जो देते हैं. इसके बाद ही वह क्रेडिट के रूप में प्रोड्यूसर का नाम डालते हैं.
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई. आमिर खान ने मुंबई में हो रहे स्क्रीन राइटर्स कांफ्रेंस के दौरान फिल्म राइटिंग को लेकर और राइटर्स को लेकर आने वाली चुनौतियों पर बातचीत की और कहा कि मैं इस बात पर बिल्कुल यकीन नहीं करता हूं कि हर फिल्म 300 करोड़ की ही कमाई करे और मैं इस बात को भी अहमियत नहीं देता हूं कि जिस फिल्म ने 300 करोड़ की कमाई नहीं की है वह अच्छी फिल्म ही नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि मैं ऐसी फिल्में नहीं बनाऊंगा.
अपनी फिल्म तलाश का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि कई लोगों को लगता है कि मेरी वह फिल्म कामयाब नहीं है लेकिन सच यही है कि जब इस फिल्म की कहानी मेरे पास रीमा लेकर आयी थीं. मुझे कांसेप्ट बहुत ही पसंद आया था. फिर मैंने उसकी पूरी कहानी नहीं सुनी थी. सिर्फ ये कांसेप्ट कि किसी ने अपने किसी को खो दिया है और इसके बाद फिर वह उसकी कैसे तलाश करना चाहता है. यूनिक कांसेप्ट हैं. मुझे लगा कि हम सब अपनी ज़िंदगी में ऐसे हालात से तो गुजरते ही हैं. सो मैंने फिल्म को हां कह दिया.
आमिर कहते हैं कि मैं शुरू से इस बात से वाकिफ था कि इस फिल्म की कमाई 60 से 70 करोड़ रूपये नहीं होगी और मैं ये प्रेडिक्शन कर ही देता हूं अपनी फिल्मों को लेकर. फिर इससे क्या होता है कि मैं इसके बाद अपनी फिल्म का बजट उससे पार जाने ही नहीं देता हूं. कुछ ऐसा ही तलाश के साथ हुआ, फिल्म को कामयाबी मिली . फिल्म ने 95 करोड़ की कमाई कर ली थी तो हम तो फायदे में ही थे. लोगों को लगा कि फिल्म ने 100 करोड़ पार नहीं किया तो फिल्म कामयाब नहीं है. जिसने भी फिल्म में पैसे लगाये थे. उनके पैसे उन्हें मिले. तो शुद्ध रूप से ये मेरी कामयाबी रही. कॉन्फ्रेस के दौरान ही आमिर से पूछा गया कि उन्हें क्या उन्हें लगता है कि अब भी राइटर्स को उनका ड्यू नहीं मिलता है तो आमिर इस बारे में दो टूक कहा कि उनके प्रोडक्शन में वह डायरेक्टर के बाद राइटर को ही तवज्जो देते हैं. इसके बाद ही वह क्रेडिट के रूप में प्रोड्यूसर का नाम डालते हैं.
आमिर कहते हैं कि फिल्म एक सामूहिक आर्ट है. वह अकेले किसी की मेहनत से नहीं बनती है. कई लोगों का इसमें योगदान होता है तो हम इस बात को तवज्जो देते हैं लेकिन सिक्के के दोनों पहलू पर विचार किया जाना चाहिए. वह ऐसे कि कई बार ऐसा होता है कि राइटर अगर कहानी लेकर जाते हैं तो उन्हें ये मान नहीं लेना चाहिए कि मैंने बेस्ट लिखा है. कई बार उन्हें खुद में ख़ामियां नज़र ही नहीं आती हैं. वहीं दूसरी तरफ यह भी सच है कि यह हमारे लिए दुर्भाग्यवश है, लेकिन ये सच है कि हमारी इंडस्ट्री में अब भी कई जगहों पर अन ओर्ग्निकली ही काम होता है. कम लोगों को ही अच्छी स्क्रिप्ट के पहचान है. तो दोनों पहलुओं को देखना जरूरी है. बता दें कि आमिर हमेशा इस बात को दोहराते हैं कि वह स्क्रिप्ट को ही तवज्जो देते हैं.
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