बुलंद दरवाजा। UP Assembly Elections 2022 फतेहपुर सीकरी नगर स्थित ये स्मारक अकबर की गुजरात में विजय की याद दिलाता है तो विकास और बेहतरी की राहें इसी ‘दरवाजे’ से निकलती हैं। क्षेत्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु भी यही स्थल होता है। इलाका पथरीला है तो राजनीति की राह भी जातियों की एकजुटता से पत्थरों जैसी ठोस है। फतेहपुर सीकरी से राजीव शर्मा की रिपोर्ट-
लंद दरवाजे से लगभग छह किमी दूर, राजस्थान बार्डर स्थित रसूलपुर गांव में एक मंदिर के सामने बैठे कुछ लोगों की चुनावी चर्चा ही यह बताने को पर्याप्त है कि फतेहपुर सीकरी का चुनाव किस तरह खेमों में बंटा है। इसी गांव के नानक चंद को लगता है कि मामला भाजपा का बन रहा है तो उनकी बात को काटते हुए उमेश कुमार कहते हैं कि इस बार भावनाओं का ज्वार नहीं है। इस बार मुद्दा है रोजगार और सरकार इसके संसाधन नहीं दे सकी है। बात चल ही रही है कि गांव के जगन्नाथ कहते हैं कि हाथी भी कमजोर नहीं है। दलितों के साथ ओबीसी के वोटों के बूते ही यहां दो बार हाथी चिंघाड़ चुका है।
यह है फतेहपुर सीकरी का चुनावी माहौल। मुगल काल में सल्तनत के लिए कुटिल कूटनीतिक चालों का गवाह रहे आगरा जिले के राजस्थान सीमा से सटे इस क्षेत्र में राजनीतिक दलों के बड़े मोहरे अपनी चाल चल रहे हैं तो ‘सेना’ अपना-अपना मोर्चा संभाले हुए है। भाजपा ने योगी सरकार में मंत्री चौधरी उदयभान सिंह का टिकट काटकर 2014 में सांसद रहे चौ. बाबूलाल को मैदान में उतारा है। बाबूलाल 1996 में निर्दलीय और 2002 में रालोद से विधायक भी रह चुके हैं। रालोद-सपा गठबंधन प्रत्याशी बृजेश चाहर ने 2007 और 2017 में विधानसभा का चुनाव लड़ा हैं, हालांकि वह विधानसभा तक नहीं पहुंच सके। बसपा के मुकेश राजपूत और कांग्रेस के हेमंत चाहर पहली बार चुनाव मैदान में हैं। चार प्रमुख पार्टियों में भाजपा, रालोद व कांग्रेस के प्रत्याशी जाट बिरादरी से हैं। लिहाजा तीनों की अपनी जाति के वोट बैंक पर निगाह है ही।
जातियां यहां बहुत कुछ तय करने की स्थिति में होती हैं। रसूलपुर से आगे बढ़ने वहीं के रहने वाले लाल सिंह और सोनू साफ कहते हैं कि सभी प्रमुख दल जाट प्रत्याशियों पर ही दांव लगाते हैं। ऐसे में जाट मतदाता असमंजस में पड़ जाते हैं और अन्य जातियों पर चुनाव टिक जाता है। हालांकि विकास की बातें भी होती हैं और भाजपा की यह बड़ी आस है।
भाजपा प्रत्याशी बाबू लाल पार्टी के वोटबैंक, सरकार के काम और अपने समर्थकों के सहारे जीत पक्का करना चाह रहे हैं। वह पिछली बार की तरह पिछड़ी जाति के मतदाताओं का समर्थन मिलना तय मान रहे हैं। वहीं रालोद प्रत्याशी जाट मतों को अपना परंपरागत वोट बैंक मान रहे हैं, तो उनकी पिछड़ी जाति के मतों को पाने की भी कोशिश हैं। कांग्रेस प्रत्याशी स्वजातीय जाट मतों के अलावा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को भी जोड़ने में जुटे हैं। बसपा प्रत्याशी अनुसूचित जाति के वोट के अलावा खुद के पिछड़े वर्ग से होने का लाभ मिलने की उम्मीद संजोए हैं।
पांच बार चुने गए बदन सिंह : अपने व्यवहार, कार्यशैली के बूते बदन सिंह इस क्षेत्र से सबसे अधिक पांच बार विधायक रह चुके हैं। वह 1977 में जनता पार्टी, 1980 में जनता पार्टी (सेकुलर), 1985 में लोकदल, 1989 में जनता दल व 1993 भाजपा की टिकट पर चुने गए। अब वह सियासत से दूर हैं।