बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के लिए जहां जीत को दोहराने का मौका है, वहीं राष्ट्रीय लोकदल के लिए साख का सवाल है। मुजफ्फरनगर जिले की छह सीटों में एकमात्र बुढ़ाना ही ऐसी सीट है जहां सिंबल भी रालोद का है और चुनावी योद्धा भी। किसानों की राजधानी सिसौली भी बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। पिछले दो चुनावों में इस क्षेत्र ने पहले सपा को जिताया फिर भाजपा को। इस बार यहां यह देखना दिलचस्प होगा कि किसान आंदोलन का कितना असर विधानसभा चुनाव पर पड़ा। बुढ़ाना से मनीष शर्मा की रिपोर्ट-
सोमवार को निकली हल्की धूप में बेगम समरू के किले की दीवारें मानों बातें करने को लालायित दिख रही हैं। यहां इक्का-दुक्का इंसानों के अलावा कोई नहीं है, लेकिन कभी गौरवशाली रहा यह किला भी शायद चुनावी चहलकदमी में अपने लिए कुछ चाहता है। जैसे इसकी ख्वाहिश खुद को फिर से आबाद देखने की हो। किसी भी सरकार में किले की मरहम-पट्टी या म्यूजियम अथवा संग्रहालय की शक्ल देने की भले ही पहल न हुई हो, लेकिन बुढ़ाना के हर व्यक्ति की जुबान से बात-बेबात बेगम समरू और किले का नाम जरूर आ जाता है। शांत-वीरान किले से दूर शहर के चौधरी चरण सिंह चौक पर चुनावी चर्चागोशी आबाद है। दो दिन की बारिश ने मौसम में थोड़ी ठंडक बढ़ाई, लेकिन बुढ़ाना के चौक-चौराहों पर चाय की चुस्कियों में घुलती चुनावी चर्चाओं ने माहौल की गर्माहट बरकरार रखी है।
किसान आंदोलन कितना बड़ा मुद्दा होगा, इस सवाल पर अधिवक्ता औमपाल मलिक कहते हैं-‘किसानों की आवाज को दबाया गया। भले ही सरकार ने कानून वापस ले लिए हैं, लेकिन कुछ तो असर पड़ेगा ही। चर्चाओं में लोग कभी काम और कानून व्यवस्था पर भाजपा का पलड़ा भारी दिखाते रहे तो कभी किसान आंदोलन के असर और गन्ना भुगतान की समस्या से सपा-रालोद गठबंधन को लोग फायदा पहुंचाते रहे। चर्चा के दरम्यान कई लोगों ने बेबाक राय रखी कि राजनीति में विकास के मुद्दों की बजाए जातिगत आंकड़े असर डाल रहे हैं। कारोबारी यजुवेंद्र शर्मा कहते हैं कि विकास की अनदेखी तो नहीं ही की जा सकती। गांव के संपर्क मार्ग, बिजलीघर, पानी की टंकी, फायर ब्रिगेड की स्थापना आदि काम सामने हैं।
कुछ दूर चलते ही कस्बे के महावीर चौक पर बस के इंतजार में खड़े मुसाफिर भी सियासी बतकहियों में मशगूल हैं। यहां व्यवसायी अमित गर्ग किसानों का मुद्दा उठाते हैं। कहते हैं, बिजली, खाद, कृषि उपकरणों आदि के बढ़े दामों से किसान बेहाल हैं। इतना है कि बुढ़ाना में महिलाएं भी मुखर हैं और कानून व्यवस्था उन्हें प्रभावित करती है। छात्रा अंर्शु ंसह कहती हैं-‘आज किसी भी समय बेटियां बेखौफ आवागमन कर सकती है। यह कम बड़ी बात है क्या?
जातिगत समीकरणों में जाट-मुस्लिम तुरुप के पत्ते : जनपद की छह विधानसभाओं में बुढ़ाना विधानसभा में सबसे अधिक मतदाता है। एक तिहाई मतदाता मुस्लिम है जिसे गठबंधन शत प्रतिशत अपना मान कर चल रहा है। क्षेत्र में जाटों के गठवाला व बालियान खाप के सबसे अधिक गांव हैं। यही कारण है कि नए परिसीमन के बाद इस सीट पर विभिन्न राजनीतिक दलों से जाट और मुस्लिम ही टिकट की दावेदारी करते रहे हैं। दरअसल, बुढ़ाना सीट पर जाट-मुस्लिम समीकरण तुरुप का पत्ता बनकर उभरा है। जाटों के बाद दलितों का भी अच्छा खासा मत प्रतिशत है। ठाकुर चौबीसी के अधीन आने वाले गांवों में राजपूत समाज के लोगों का भी अच्छा वोट बैंक है। कश्यप, सैनी, प्रजापति एवं अन्य पिछड़ी जातियां भी जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उठती रही है किसान राजनीति की हुंकार : किसान आंदोलन का केंद्र रही सिसौली बुढ़ाना सीट का ही हिस्सा है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह और किसानों के मसीहा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का इस इलाके से खास रिश्ता रहा है। मौजूदा चुनाव में भी सबकी नजरें बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र पर टिकी हैं। भाजपा जहां अपना चुनाव प्रचार सड़क, बिजली, पानी और कानून व्यवस्था को सही करने को मुद्दा बना रही है, वहीं गठबंधन महंगाई, बेरोजगारी और किसान उत्पीड़न के मुद्दों को लेकर चुनाव मैदान में है। 2017 में बुढ़ाना में कुल 40.55 प्रतिशत मतदान हुआ। इस चुनाव में भाजपा से उमेश मलिक ने 97,781 मत पाकर जीत हासिल की थी, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सपा के प्रमोद त्यागी को 84,580 मत मिले थे। वहीं बसपा की सईदा बेगम को 30,034 व रालोद के योगराज को 23,732 मत मिले थे। इस बार सपा और रालोद गठबंधन ने इस सीट पर मुकाबला कड़ा कर दिया है।