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यूपी चुनाव: आचार संहिता से पढ़ाई से सिंचाई तक सब कुछ हुआ ठप

चुनाव आयोग ने प्रदेश को कई टुकड़ों में बांट कर शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव तो सुनिश्चित किया, पर लंबी चली चुनाव प्रक्रिया ने जहां दो महीने तक सरकार को पंगु कर दिया।

By Ashish MishraEdited By: Published: Wed, 08 Mar 2017 01:46 PM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 03:57 PM (IST)
यूपी चुनाव: आचार संहिता से पढ़ाई से सिंचाई तक सब कुछ हुआ ठप
यूपी चुनाव: आचार संहिता से पढ़ाई से सिंचाई तक सब कुछ हुआ ठप

लखनऊ [अमित मिश्र] । मां के गर्भ में अधिक समय तक रहने वाले बच्चे की सेहत भले ही आगे चल कर मजबूत निकले लेकिन, यह तो सिर्फ मां ही जानती है कि इस अधिक समय की उसे क्या कीमत चुकानी पड़ी है। ठीक ऐसा ही हाल दो महीने से चुनाव का सामना कर रहे प्रदेश का हो गया है। चुनाव आयोग ने प्रदेश को कई टुकड़ों में बांट कर शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव तो सुनिश्चित किया, पर लंबी चली चुनाव प्रक्रिया ने जहां दो महीने तक सरकार को पंगु कर दिया, वहीं ऐन परीक्षा से पहले विद्यार्थियों के लिए कठिनाई बढ़ाने के साथ ही सरकारी दफ्तरों का कामकाज भी प्रभावित किया है।

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क्रिसमस और नए साल के स्वागत का जश्न मनाने के बाद सरकारी दफ्तरों का कामकाज ढर्रे पर लौट पाता, उससे पहले ही चार जनवरी से विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो गई थी। इसी के बाद एक ओर जहां बड़े पैमाने पर कर्मचारियों और शिक्षकों की ड्यूटी चुनाव संबंधी कार्यों और मतदान प्रक्रिया के लिए लगा दी गई तो दूसरी तरफ नीतिगत निर्णय न होने के कारण विभागों और दफ्तरों के कामकाज भी सिर्फ रुटीन तक सिमट गए। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री अतुल मिश्र कहते हैैं कि चुनाव लंबा चलने का सबसे बड़ा विपरीत प्रभाव बोर्ड परीक्षा पर पड़ा है। परीक्षा देर तक चलेगी तो परिणाम देर से जून तक आएंगे, जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय सहित कई शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए अप्रैल से फॉर्म मिलने लगते हैैं।
मिश्र कहते हैैं कि इससे विद्यार्थियों का दोहरा नुकसान हुआ। एक और चुनाव में लगे शिक्षक उन्हें बोर्ड परीक्षा से पहले रिवीजन और प्रैक्टिकल नहीं करा पाए तो साथ ही प्रदेश से बाहर दाखिले के अवसर भी उनके लिए सीमित हो गए। आचार संहिता की वजह से अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और लोक सेवा आयोग से होने वाली नियुक्तियां रुक गईं तो उधर वन विभाग के कर्मचारियों के चुनाव ड्यूटी में जाने से जनवरी से मार्च के बीच होने वाला पौधरोपण भी प्रभावित हुआ। कर्मचारियों की लंबे समय तक गैर मौजूदगी से गन्ने के बीज बांटने का काम धीमा रहा, जिसका असर बुवाई पर भी पड़ा जबकि रोडवेज की बसों और कर्मचारियों के चुनाव में लगने से परिवहन निगम की भी आमदनी कम हो गई।
दो महीने से अधिक समय से चल रही चुनाव प्रक्रिया ने खेतों पर भी असर डाला है। सिंचाई विभाग के नलकूप संचालक भी चुनाव कराने में लग गए, जिससे खराब होने वाले ट्यूबवेल समय पर ठीक नहीं हो पाए। संयुक्त परिषद के महामंत्री बताते हैैं कि जो ट्यूबवेल 80 फीसद क्षमता पर चलते थे, उनकी परफॉरमेंस घट कर महज 20 फीसद रह गई। चुनाव की आचार संहिता लागू होने के समय का अनुमान पहले से था, इसलिए अधिकतर विभागों में विभिन्न कार्यों के लिए बजट का आवंटन पहले ही हो गया था। फिर भी कई विभागों में काम अटक गए। माना यह भी जा रहा है कि नई सरकार बनते ही इस बाबत फैसले तेजी से लेने होंगे, ताकि वित्तीय वर्ष खत्म होने से पहले बजट खर्च किया जा सके।

होली बाद होंगे काम
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के एक गुट के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी बताते हैैं कि चुनाव से कर्मचारी लौटने तो लगे हैैं लेकिन, कामकाज अभी पटरी पर नहीं लौटा है। अब सिर्फ चुनाव के नतीजों को लेकर चर्चा है और दफ्तरों की कुर्सियों से ही कयासों के पेंच लड़ाए जा रहे हैैं। इस बीच विकास के सारे काम बंद हैैं। लोक निर्माण विभाग से भी इस दौरान कोई इस्टीमेट पास नहीं हुआ है। तिवारी का कहना है कि होली के बाद अब 20 तारीख तक ही दफ्तरों में कामकाज का माहौल लौटेगा। 


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