राजस्थान सरकार में चल रही खींचतान से निर्दलियों की ठंडी पड़ीं उम्मीदें
राजस्थान में मंत्रिमंडल गठन को लेकर सामने आई खींचतान ने सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीयों के अरमान ठंडे कर दिए हैं।
जयपुर, ब्यूरो। राजस्थान में मंत्रिमंडल गठन को लेकर सामने आई खींचतान ने सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीयों के अरमान ठंडे कर दिए हैं। इन निर्दलीयों को उम्मीद थी कि सरकार बनेगी तो उन्हें भी कुछ भागीदारी मिल सकती है, लेकिन अब ऐसा होने की उम्मीद लगभग खत्म मानी जा रही है।
राजस्थान में यूं तो इस बार 13 निर्दलीय प्रत्याशी जीत कर आए हैं लेकिन इनमें से दस प्रत्याशी पूर्व कांग्रेसी हैं। निर्दलीयों के रूप में जीतने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री महादेव सिंह खंडेला, पूर्व मंत्री बाबूलाल नागर, पूर्व विधायक संयम लोढा, राजकुमार गौड़, रामकेश मीणा, खुशबीर सिंह जोजावर के अलावा रमिला खोड़िया, लक्ष्मण मीणा, आलोक बेनीवाल, बलजीत यादव हैं।
ये सभी कांग्रेस के साथ ही दिख रहे हैं और ज्यादातर ने कांग्रेस को समर्थन देने का खुलकर एलान कर दिया है। राजस्थान में कांग्रेस वैसे तो बहुमत का आंकड़ा प्राप्त कर चुकी है, क्योंकि इसके खुद के 99 विधायक हैं और आरएलडी से जीत कर आए एक विधायक चुनाव पूर्व गठबंधन के कारण सरकार में शामिल हैं, उन्हें मंत्री भी बनाया गया है, लेकिन सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा बिल्कुल सीमा पर है और विधानसभा में कई बार सरकार को निर्दलीयों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में भी ये निर्दलीय कांग्रेस के लिए काफी उपयोगी साबित होंगे। जीत कर आए निर्दलीयों में से कुछ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के काफी नजदीकी भी रह चुके हैं। ऐसे में मंत्रिमंडल गठन से पूर्व इस बात की चर्चा थी कि कुछ निर्दलीयों को मंत्री बनाकर सरकार में भागीदारी दी जा सकती है।
दिग्गज भी शपथ समारोह से दूर रहकर जता चुके नाराजगी
राजस्थान में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 30 मंत्री बनाए जा सकते हैं और इनमें से 25 पद भर चुके हैं। मंत्रिमंडल गठन में पार्टी के ही कई दिग्गजों को छोड़ना पड़ा है और अब उनके समर्थकों का विरोध खुलकर सामने आ रहा है। ये दिग्गज भी शपथ ग्रहण समारोह से दूर रहकर अपनी नाराजगी दिखा चुके हैं। ऐसे में अब किसी निर्दलीय को मंत्री पद मिलने की संभावना नहीं के बराबर है। कुछ निर्दलीयों ने आपसी बातचीत में कहा कि हमारे प्रयास तो जारी है, लेकिन मंत्रिमंडल गठन के हालात को देखते हुए बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। यह जरूर हो सकता है कि संसदीय सचिव या किसी आयोग बोर्ड में अध्यक्ष पद देकर संतुष्ट कर दिया जाए। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कुछ निर्दलीयों का समर्थन पार्टी के लिए जरूरी है, लेकिन अब पहली जरूरत बड़े नेताओं की नाराजगी दूर करना है।