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Rajasthan Chunav 2018: पानी के लिए हुए हिंसक आंदोलन के बूते पर वोटों की फसल काटने को बेताब प्रत्याशी

Rajasthan Assembly Election 2018. राजस्थान में कांग्रेस व माकपा ने पानी के मुद्दे पर फिर आंदोलन कर राजनीतिक आधार बनाने की कोशिश की।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 05:07 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 05:07 PM (IST)
Rajasthan Chunav 2018: पानी के लिए हुए हिंसक आंदोलन के बूते पर वोटों की फसल काटने को बेताब प्रत्याशी
Rajasthan Chunav 2018: पानी के लिए हुए हिंसक आंदोलन के बूते पर वोटों की फसल काटने को बेताब प्रत्याशी

घड़साना (राजस्थान), संदीपसिंह धामू।14 साल पहले इंदिरा गांधी नहर परियोजना (आईजीएनपी) में नहरी पानी को लेकर हुए हिंसक आंदोलन की आंच नवंबर की ठंड में फिर राजनीतिक माहौल में तपिश का अहसास करवा रही है। वर्ष 2004-05 में शुरू हुए इस किसान आंदोलन में पुलिस की गोली व लाठीचार्ज से छह किसान मारे जा चुके हैं। तब से आईजीएनपी के प्रथम चरण में श्रीगंगानगर जिले की अनूपगढ़ और बीकानेर जिले के खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र में नहरी पानी के मुद्दे पर वोटों की फसल काटने के लिए हर राजनीतिक दल आमदा रहता है। इस बार भी ऐसा ही है। आंदोलन का केंद्र घड़साना कस्बा रहता है। तीन महीने पहले पानी के लिए आंदोलन की घोषणा कर माकपा और कांग्रेस शक्ति-प्रदर्शन भी कर चुकी है। वहीं, सत्ताधारी भाजपा ने पंजाब और हिमाचल प्रदेश के बांधों में पानी की कमी बता कर बचाव का प्रयास किया।

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इस चुनावी साल में घड़साना और रावला क्षेत्र में कांग्रेस व माकपा ने पानी के मुद्दे पर फिर आंदोलन कर राजनीतिक आधार बनाने की कोशिश की। दोनों ने अलग-अलग आंदोलन किए। किसान मजदूर व्यापारी संघर्ष समिति आईजीएनपी प्रथम चरण से अलग होकर आंदोलन किया। अनूपगढ़ और खाजूवाला के भाजपा विधायक खामोश रहे। किसान मजदूर व्यापारी संघर्ष समिति आईजीएनपी प्रथम चरण के प्रवक्ता महेंद्र तरड़ के अनुसार इस नहर में पानी की कमी आई तो सत्ताधारी विधायक टिकट के लालच में चुप रहे। माकपा और कांग्रेस ने वोट जुटाने के लालच में अलग अलग आंदोलन किए। संघर्ष समिति को साथ नहीं नहीं। तरड़ का आरोप है कि दोनों पार्टियों ने पानी कैसे हासिल कर किसान की फसल बचाई जाए, की बजाय पानी की कमी को उछाल कर अपनी राजनीति चमकाने पर ज्यादा जोर दिया। मजबूरन किसानों ने एकजुट होकर रबी की फसल पकाने के लिए पानी की 11 बारियों की मांग रखी। दबाव बनाया तो सरकार ने 8 बारियों का रेगुलेशन घोषित किया।

पानी के आंदोलन से माकपा की जड़ें जमी

अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र के अनूपगढ़, घड़साना और रावला पहले सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। परिसीमन से वर्ष 2008 में अनूपगढ़ नया विधानसभा क्षेत्र गठित हुआ। इसमें अनूपगढ़, घड़साना और रावला तीन प्रमुख कस्बें शामिल हैं। वर्ष 2004 में पानी को लेकर शुरु हुए आंदोलन से यहां माकपा की जड़ें जमी। पहले पंचायत समिति व जिला परिषद चुनाव में लाल झंडे को जनादेश मिला। वर्ष 2008 में यहां माकपा की टिकट पर पानी को मुद्दा बनाकर पवन दुग्गल चुनाव जीते। तब पानी देने में विफल रहने का आरोप फेस करने वाली सत्ताधारी भाजपा के प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे थे। वर्ष 2008 से 2013 तक कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भाजपा ने पानी के मुद्दे को खूब भुनाया।

नहरी पानी की बदौलत 2013 में भाजपा यहां से जीती। बहरहाल, कांग्रेस प्रत्याशी कुलदीप इंदौरा और माकपा के पवन दुग्गल नहरी पानी की कमी को तुरुप के पत्ते के तौर पर इस्तेमाल कर चुनाव बाजी जीतने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी संतोष बावरी पानी के मुद्दे को अपने तरीके से भुना रही है कि भाजपा सरकार ने बांधों में पानी की कमी होने के बावजूद पंजाब से अतिरिक्त पानी लेकर किसानों की फसल बचाई। खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र में भी नहरी पानी के मसले पर भाजपा प्रत्याशी डॉ. विश्वनाथ और कांग्रेस प्रत्याशी गोविंद राम मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं।

जानिए, कैसे हिंसक हुआ आंदोलन

सितंबर 2004 में कांग्रेस और माकपा ने इंदिरा गांधी नहर में पानी की कमी होने पर आंदोलन किया। तब किसानों को 43 दिनों के बाद एक सप्ताह में साढ़े तीन दिन पानी मिलता था। उसे समय भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार ने बांधों में पानी की कमी बताते हुए पानी उलपब्ध करवाने में असमर्थता जाहिर की थी। अक्टूबर में किसानों ने घड़साना में सरकारी अधिकारियों को कर्मचारियों को घेराबंदी कर बंधक बना लिया। तब पुलिस ने भारी लाठीचार्ज कर किसानों के हुजूम को खदेड़ दिया। इससे 27 अक्टूबर को आंदोलन उग्र हुआ। लाठीचार्ज से गुस्साए किसानों ने घड़साना व रावला में पुलिस चौकी, थाना और एसडीएम कार्यालय जला दिया। कई वाहन जला दिया। पुलिस की ओर से इस हिंसक भीड़ पर चलाई गोली से तीन लोगों की मौके पर ही मौत गई। लाठीचार्ज से घायल दो व्यक्तियों ने बाद में दम तोड़ दिया। वर्ष 2005 में इस आंदोलन के दौरान लाठीचार्ज से एक किसान की मौत हुई।


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