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अशोक गहलोत के जरिये एक बार फिर से सीएम सिटी बनने का ख्‍वाब देख्‍ा रहा जाेधपुर

अशोक गहलोत अपने क्षेत्र के लिए उपलब्‍ध भी रहते हैं जबकि जोधपुर के भाजपा नेता भी वसुंधरा तक सीधी पहुंच नहीं रखते।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 04:29 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 04:29 PM (IST)
अशोक गहलोत के जरिये एक बार फिर से सीएम सिटी बनने का ख्‍वाब देख्‍ा रहा जाेधपुर
अशोक गहलोत के जरिये एक बार फिर से सीएम सिटी बनने का ख्‍वाब देख्‍ा रहा जाेधपुर

आनन्‍द राय, जोधपुर। राजपूताना की सबसे बड़ी रियासत जोधपुर में राजस्‍थान के राज-पाट के लिए सेमीफाइनल शुरू हो गया है। जोधपुर की सरदारपुरा सीट से पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत के उम्‍मीदवार होने से यहां के बाशिंदे सत्‍ता में वापसी का ख्‍वाब देख रहे हैं क्‍योंकि उनकी वजह से जोधपुर को दो बार सीएम सिटी बनने का सौभाग्‍य मिल चुका है। राजस्‍थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सत्‍ता की अदला-बदली से उम्‍मीद और बढ़ी है। खास बात यह कि वसुंधरा राजे और गहलोत एक-दूसरे को ही सत्‍ता सौंपते रहे हैं। यही वजह है कि 200 विधानसभा सीटों वाले राजस्‍थान की निगाह जोधपुर पर विशेष रूप से टिकी है। सेमीफाइनल में ही गहलोत की राह रोकने के लिए भाजपा जाल बिछा रही है।

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जोधपुर से 1980 में पहली बार सांसद बने गहलोत ने पांच बार संसद में प्रतिनिधित्‍व के साथ केंद्रीय मंत्री का दायित्‍व निभाया। 1998 में राजस्‍थान का मुख्‍यमंत्री बनने के बाद वह 1999 में सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते तो उन्‍हें अब तक कोई मात नहीं दे सका। 2003 में कांग्रेस की हार के बाद उन्‍होंने राजस्‍थान की सत्‍ता वसुंधरा राजे को सौंपी थी लेकिन पांच वर्ष बाद हुए चुनाव में गहलोत ने इसे दोबारा हासिल कर लिया। 2013 में उन्‍हें वसुंधरा के आगे सरकार गंवानी पड़ी। तब मोदी की लहर ने कांग्रेस को कमजोर करने में सर्वाधिक बड़ी भूमिका निभाई।असर यह हुआ कि मुख्‍यमंत्री रहते हुए गहलोत भले चुनाव जीत गये लेकिन, जोधपुर जिले की बाकी नौ सीटें भाजपा के खाते में चली गई।अब गहलोत सोमवार को अपना नामांकन पत्र दाखिल करेेंगे और उसका उत्‍साह जोधपुर में दिखने लगा है। इस बार कांग्रेस गहलोत के सहारे जोधपुर संभाग में मजबूती से उभरने का ताना-बाना बुन रही है। 

गहलोत की राह रोकने को एकजुट हुए क्षत्रप

भाजपा ने 2013 में गहलोत से पराजित हो चुके शंभू सिंह खेतासर पर ही दांव लगाया है लेकिन, इस बार उनसे मात खाये सभी क्षत्रपों को एक मंच पर ला दिया है। शुक्रवार को ही शंभू सिंह खेतासर ने नामांकन कर दिया। उनके वाहन पर 1999 में गहलोत से पराजित हुए मेघराज लोहिया, 2003 में चुनाव हारे महेंद्र झाबक और 2008 में मुकाबिल रहे राजेंद्र गहलोत हाथ बांधे खड़े थे।इन नेताओं की एकजुटता से भाजपा ने गहलोत काे सामूहिक चुनौती दी। हालांकि गहलोत समर्थकों का दावा है कि कोई माई का लाल उनकी पीठ पर धूल नहीं लगा सकता। पर, भाजपा के दिग्‍गज और विशेष रूप सेे वसुंधरा के रणनीतिकार जोधपुर में गहलोत को हराने के लिए डेरा डाल रहे हैं। 

मौजूदा सरकार की उपेक्षा से नाराजगी

भाजपा गहलाेत की राह रोकने को चाहे जितने कांटे बिछाए लेकिन, वसुंधरा सरकार पर इस अंचल की उपेक्षा का आरोप है। सुभाष चौक, रतनाणा के सेवानिवृत्‍त शिक्षक निरंजन गहलोत कहते हैं कि जोधपुर का जो भी विकास हुआ वह अशोक गहलोत ने किया। उनकी सौ फीसद जीत सुनिश्‍िचित मानते हुए कहते हैं कि उनकी सही नीति और वही सही आदमी हैं। अशोक गहलोत अपने क्षेत्र के लिए उपलब्‍ध भी रहते हैं जबकि जोधपुर के भाजपा नेता भी वसुंधरा तक सीधी पहुंच नहीं रखते। सरदारपुरा न्‍यू कालोनी निवासी मनोहर लाल दो टूक कहते हैं कि एम्‍स, पुल, नया हाईकोर्ट, कानून विश्‍वविद्यालय समेत जो भी काम है, वह अशोक गहलोत ने किये। वसुंधरा ने यहां के लिए कुछ नहीं किया। दूसरे दलों से ताल्‍लुक रखने वाले लोग भी गहलोत की बुराई नहीं करते। एक आस है कि अगर गहलोत जीते तो उन्‍हें पुन: राजस्‍थान का मुख्‍यमंत्री बनाया जा सकता है। वार्ड संख्‍या 35 मकराना निवासी कैलाश चंद्र गौड़ कहते हैं कि अटल जी के लिए जैसे कहा जाता था कि इंसान अच्‍छे लेकिन, पार्टी गलत तो उसी तरह गहलोत का भी है। वह आदमी अच्‍छे हैं लेकिन उनकी पार्टी गलत है। हालांकि कैलाश चंद्र का दावा है कि मोदी की वजह से राजस्‍थान में भाजपा की ही सरकार बनेगी। 

जातीय समीकरण पर जोर

अशोक गहलोत माली जाति के हैं जबकि उनके प्रतिस्‍पर्धी शंभू सिंह खेतासर राजपूत हैं। जोधपुर में हिंदुत्‍व भले एजेंडा है लेकिन, गहलोत के लिए यह मायने नहीं रखता। उनकी अपनी जाति के साथ ही ब्राहमण, क्षत्रिय, माथुर, माहेश्‍वरी, सिंधी जैसी सवर्ण जातियां और रावणा राजपूत, सोनार, कुम्‍हार, घांची, जाट, विश्‍नोई आदि पिछड़ी जातियों का समीकरण उनके पक्ष में है। दलितों में मेघवाल और जनजाति में मीणा और भीलों को भी गहलोत के रणनीतिकार साधने में जुटे हैं। हालंकि राजनीतिक समीक्षक हेमराज कहते हैं कि गुटबाजी तो सभी जातियों में होती है। एक गुट अगर इनके साथ है तो दूसरा गुट स्‍वाभाविक रूप से विरोध में रहेगा। पर, मनोहर लाल कहते हैं कि अशोक गहलोत जाति-पाति से ऊपर हैं। 

कांग्रेस के असंतोष को भी हवा

कांग्रेस ने 2013 के कुछ उम्‍मीदवारों के टिकट काट दिए तो कई बड़े दावेदारों को टिकट नहीं दिया। भाजपा सुनियोजित ढंग से कांग्रेस के असंतोष को हवा दे रही है। मेहरौका चौकी क्षेत्र के संदीप गौड़ कहते हैं कि भाजपा ने ज्‍यादातर अपने पुराने उम्‍मीदवारों पर भरोसा जताया है लेकिन, कांग्रेस ने टिकट बदले हैं। जोधपुर संभाग में टिकट न पाने से असंतुष्‍ट कांग्रेसी माहौल बिगाड़ेंगे। इससे कार्यकर्ताओं के उत्‍साह पर तो असर पड़ेगा ही विद्रोह और भीतरघात भी होगा।


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