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Loksabha Election: भगवंत मान पर संगरूर का बड़ा मिथक तोड़ने की चुनौती, जानें पूरा मामला

Loksabha Election 2019 में पंजाब के संगरूर सीट के बड़ा मिथक चर्चाओं में है। इस मिथक को तोड़ना आप के भगवंत मान के लिए बड़ी चुनौती होगी। जानें क्‍या है यह मिथक।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 10:20 AM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 10:20 AM (IST)
Loksabha Election: भगवंत मान पर संगरूर का बड़ा मिथक तोड़ने की चुनौती, जानें पूरा मामला
Loksabha Election: भगवंत मान पर संगरूर का बड़ा मिथक तोड़ने की चुनौती, जानें पूरा मामला

-मध्यावधि चुनाव में पूर्व सीएम बरनाला लगातार दो बार जीतने वाले एकमात्र नेता

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सुनाम ऊधम सिंह वाला (संगरूर), सुशील कांसल। Loksabha Election 2019 में आम आदमी पार्टी के भगवंत मान के लिए संगरूर का बड़ा मिथक तोड़ने की चुनौती है। संगरूर संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने पिछले 20 साल से किसी भी राजनेता को लगातार दो बार सांसद नहीं चुना है। दो दशक से यहां यही परंपरा चली आ रही है।

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला एकमात्र ऐसे राजनेता रहे हैं जो यहां से लगातार दो बार चुनाव जीते। बरनाला 1996 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद दो वर्ष बाद 1998 में हुए मध्यावधि चुनाव में जीत हासिल करने में कामयाब रहे।

दो दशक में लगातार दो बार सांसद नहीं बन सका कोई राजनेता, नए चेहरों व हर दल को मौका दिया लोगों ने

संगरूर के मतदाता नए चेहरों को ही नहीं, बल्कि हर सियासी दल के प्रत्याशी को संसद भेजते रहे हैं। यहां से कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, अकाली दल (अमृतसर), सीपीआइ, अकाली दल (संत फतेह सिंह) और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी सांसद बने हैं। अब चर्चा है कि क्या सांसद भगवंत मान लगातार दो बार जीत दर्ज कर इस मिथक को तोड़ कर नया इतिहास रचेंगे या संगरूर की जनता हर बार की तरह इस बार भी किसी नए चेहरे को संसद भेजने की अपनी परंपरा को बरकरार रखेगी।

सवा दो लाख वोटों के अंतर से जीते थे भगवंत मान

आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भगवंत मान ने 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब सवा दो लाख वोट के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। तब गुटबाजी के चलते कांग्रेस के वोट बैंक में उन्‍होंने जबरदस्त सेंधमारी की थी। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के करीब आधे वोट आम आदमी पार्टी के खाते में चले गए थे।

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उस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व सांसद विजयइंद्र सिंगला (वर्तमान प्रदेश कैबिनट मंत्री) अपनी जमानत तक नहीं बचा के थे। इस बार आम आदमी पार्टी की डगर कुछ कठिन दिखाई दे रही है। खैहरा ग्रुप के अलग होने से यहां नई सियासी तस्वीर बनने के संकेत मिल रहे हैं, जबकि अन्य सियासी दलों पर भी भितरघात के बादल मंडरा रहे हैं।

कौन कब रहा सांसद

भगवंत मान से पहले कांग्रेस के विजयइंद्र सिंगला ने 2009 में यहां से संसदीय चुनाव जीता था। 2004 में शिरोमणि अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींडसा यहां से सांसद बने थे। 1999 में अकाली दल अमृतसर के सिमरनजीत सिंह मान यहां से सांसद चुने गए थे। 1996 व 1998 में अकाली दल के नेता व पूर्व सीएम सुरजीत बरनाला यहां से सांसद बने थे।

कांग्रेस के गुरचरण सिंह ददाहूर 1991 में और अकाली दल मान के राजदेव सिंह 1989 में यहां से संसद पहुंचे थे। 1984 में अकाली दल के बलवंत सिंह रामूवालिया, 1980 में कांग्रेस के गुरचरण सिंह निहालसिंहवाला और 1977 में अकाली दल के सुरजीत सिंह बरनाला ने चुनाव में जीत दर्ज की थी। 1971 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के तेजा सिंह निर्दलीय यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे। 1962 में सीपीआइ के रणजीत सिंह सांसद बने थे।

बहरहाल, संगरूर संसदीय सीट पर सियासी पत्ते पूरी तरह से नहीं खुले हैं। चुनाव प्रचार ने भी जोर नहीं पकड़ा है। ऐसे में आने वाला वक्त ही बताएगा कि मतदाताओं की बेरुखी व चुप्पी तोडऩे में किस सियासी पार्टी का नेता सफल हो पाता है।

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