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लाल थनहवला पर है पूर्वोत्तर में कांग्रेस के आखिरी किले को बचाने की जिम्मेदारी

1973 में वह मिजोरम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और उसके बाद से वह लगातार इस पद पर बने हुए हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 09:00 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 09:00 PM (IST)
लाल थनहवला पर है पूर्वोत्तर में कांग्रेस के आखिरी किले को बचाने की जिम्मेदारी

नई दिल्ली, जेएनएन। मिजोरम के मुख्यमंत्री इस समय एल लथनहवला हैं। 2008 कांग्रेस ने इनकी अगुवाई में जबरदस्त जीत दर्ज की थी।तब से लेकर अभी तक वह लगातार राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। इसके पहले भी वह 1984 से लेकर 1986 तक और फिर 1989 से लेकर 1998 तक राज्य मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह अब तक राज्य के 4 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मिजोरम के करिश्माई नेता माने जाने वाले लथनहवला 9 बार विधानसभा के लिए चुने जा चुके हैं।

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लथनहवला का जन्म 1942 को हुआ था। 1964 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने स्कूल निरीक्षक के ऑफिस में रिकॉर्डर के रूप में करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने कोऑपरेटिव बैंक में असिस्टेंट के तौर पर भी काम किया और बाद में मिजो नेशनल फ्रंट के आंदोलन से जुड़ गए। यह एक भूमिगत आंदोलन था और वह इसके विदेश सचिव थे। लथनहवला को गिरफ्तार कर लिया गया। 1967 में जेल से छूटने के बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। उनको पार्टी की ओर से आईजोल जिले का मुख्य संगठनकर्ता बना गिया गया।

1973 में वह मिजोरम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और उसके बाद से वह लगातार इस पद पर बने हुए हैं। 1978 और 1979 में वह केंद्र शासित प्रदेश के चुनाव में विधायक चुने गए। 1984 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत की हासिल की और वह राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। 1986 में भारत और मिजोरम नेशनल फ्रंट के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया ताकि एमएनएफ के नेता पी. लालडेंगा को राज्य का सीएम बनाया जा सके।

यह समझौते का हिस्सा था और लथनहवला को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। मिजोरम को भारत का पूर्ण राज्य घोषित कर दिया गया। राज्य का पहला विधानसभा चुनाव 1987 में कराया गया। वह फिर विधायक चुनकर आए। लेकिन लालडेंगा की सरकार दलबदल की वजह से गिर गई और 1988 में वह राज्य के सीएम बने। वह 1989 और 1993 तक लगातार राज्य के सीएम बने रहे। 1998 में उनको हार का सामना करना पड़ा। यह उनकी पहली राजनैतिक हार थी। 2008 में एक बार फिर उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए सरकार का गठन किया।

साल 2013 के चुनाव में मिजोरम विस चुनाव में कांग्रेस ने उनकी अगुवाई में 40 सीटों 34 सीटें जीतीं। 2008 के चुनाव से इस बार कांग्रेस को 2 ज्यादा सीटें मिली थीं। मुख्य विपक्षी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट को सिर्फ 5 सीटें मिली।


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