MP Election Result 2018: किसान-महिलाओं को साधा, जातिवाद और मतदाता की चुप्पी ने बढ़ाई धड़कनें
MP Election Result 2018: विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर में कई मुद्दे हवा में तैरते रहे।
भोपाल, नईदुनिया स्टेट ब्यूरो। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर में कई मुद्दे हवा में तैरते रहे। मंदसौर गोलीकांड के बाद चुनावों में किसानों का मुद्दा छाया रहेगा, यह डेढ़ साल पहले ही तय हो गया था, हुआ भी यही। कांग्रेस की कर्ज माफी की घोषणा ने इस मुद्दे को और हवा दी। इसके अलावा पदोन्नति में आरक्षण और एट्रोसिटी एक्ट की वजह से अंदर ही अंदर सामान्य और आरक्षित वर्ग के बीच एक खाई पैदा हो गई। जिसका मतदान पर भी गहरा असर पड़ा। इन सब मुद्दों के बीच मतदाता के मौन ने दोनों ही राजनीतिक दलों की धड़कनें आखिरी समय तक बढ़ा रखी थीं। इन सबके बीच कई सीटों पर महिला मतदाताओं की भारी बढ़ोतरी ने भी परिणामों को लेकर दिलचस्पी बढ़ा दी।
अन्नदाता के लिए खुला खजाना
जून 2017 में किसान आंदोलन और गोलीकांड के बाद यह तय हो गया था कि विधानसभा चुनावों में किसानों की नाराजगी सबसे बड़ा मुद्दा हो सकता है। इसे भांपते हुए भाजपा सरकार ने एक साल में किसानों के लिए बोनस सहित कई घोषणाएं की। सरकार ने एक साल में करीब 30 हजार करोड़ स्र्पए किसानों को बांटे। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर में ही घोषणा कर दी कि यदि कांग्रेस सरकार आई तो दस दिन में किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। इसके बाद से चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा और कांग्रेस नेताओं के भाषणों में किसान महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में छाया रहा।
महिलाओं ने मतदान में दिखाई रुचि
विधानसभा चुनाव में इस बार महिलाओं को लेकर कई मुद्दे छाए रहे। कांग्रेस ने महिला अत्याचारों को मुद्दा बनाया तो भाजपा ने महिलाओं के लिए अपनी योजनाएं गिनाकर महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। भाजपा ने मतदान के दौरान भी यह कोशिश की कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं वोट डालने निकलें। कई सीटों पर उसकी यह कोशिश सफल भी हुई। करीब 116 सीटें ऐसी रहीं, जिन पर महिला मतदाता की संख्या में 2013 के मुकाबले चार प्रतिशत से ज्यादा इजाफा हुआ। बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं ने भी परिणाम तय करने में बड़ी भूमिका निभाई।
मतदाता की चुप्पी ने बढ़ाई बेचैनी
कई सालों के बाद मप्र में ऐसा चुनाव हुआ है, जब मतदाता पूरी तरह मौन नजर आया। मतदाता का स्र्झान समझने में दोनों ही दलों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। हालात ये रहे कि आखिरी समय तक दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर देखी गई। हार-जीत का समीकरण बैठाने वाले विशेषज्ञ भी मानते रहे कि ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। मतदाताओं ने खुलकर अपना स्र्झान इस चुनाव में सामने नहीं रखा था। लोगों में भाजपा के प्रति आक्रोश और कांग्रेस के प्रति समर्थन खुलकर नजर नहीं आया है। इसके पहले के चुनाव में मतदाता का रुझान पहले ही पता चल जाता था।
चुनाव में पहली बार जातिवाद हावी
मप्र में पहली बार जातिगत आधार पर बनी पार्टी सपाक्स ने चुनाव लड़ा। सपाक्स ने एट्रोसिटी एक्ट और पदोन्नति में आरक्षण मुद्दे को लेकर चुनाव से पहले ही हवा बनाना शुरू कर दी थी। 2 अप्रैल को एट्रोसिटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में हुए दलितों के उग्र आंदोलन का सबसे ज्यादा असर मप्र के ग्वालियर-क्षेत्र में पड़ा था। यहां 8 लोग मारे गए थे। वहीं विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र में भी इसका असर रहा। सवर्ण आंदोलन का असर पूरे प्रदेश में रहा। इसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने भी टिकट बांटते वक्त जातिगत समीकरण को ध्यान में रखा। इसका कई जगह उन्हें फायदा हुआ तो कहीं इसका नुकसान उठाना पड़ा।