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MP Election 2018: 'बाबागिरी' छोड़ नेतागिरी कर रहे थे ये बाबा, अब हो गए अंतर्ध्यान

MP Election 2018: विधानसभा चुनाव में इस बार आधा दर्जन से ज्यादा बाबा सक्रिय थे। इनमें से कम्प्यूटर बाबा ही अकेले थे, जो आखिर तक मैदान में डटे रहे।

By Saurabh MishraEdited By: Published: Sat, 01 Dec 2018 09:43 AM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2018 09:43 AM (IST)
MP Election 2018: 'बाबागिरी' छोड़ नेतागिरी कर रहे थे ये बाबा, अब हो गए अंतर्ध्यान
MP Election 2018: 'बाबागिरी' छोड़ नेतागिरी कर रहे थे ये बाबा, अब हो गए अंतर्ध्यान

भोपाल। पंद्रहवीं विधानसभा के लिए संपन्न चुनाव में आधा दर्जन से ज्यादा बाबा (साधु, संत, महंत) राज नेताओं की भूमिका में नजर आए। मप्र में पहली बार इतनी संख्या में बाबाओं ने चुनाव में दिलचस्पी दिखाई है। इनमें से प्रांत के चर्चित कम्प्यूटर बाबा आखिर तक डटे रहे। आखिर-आखिर में तो कम्प्यूटर बाबा ने भाजपा को पराजित कराने के लिए कांग्रेस और हाल ही में अस्तित्व में आई सपाक्स पार्टी को भी खुला समर्थन दे दिया। जबकि दो अन्य संत नई पार्टी बनाकर मैदान में उतर आए।

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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को सत्ता के सिंहासन पर बैठने को मौका क्या मिला, मप्र के बाबा राजनीति में उतर आए। इस चुनाव में करीब आधा दर्जन बाबा सक्रिय थे। इनमें से ज्यादातर चुनाव लड़कर सत्ता में आना चाहते थे। 

गायब हुए देवकीनंदन ठाकुर

कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर एट्रोसिटी एक्ट में हुए बदलाव को लेकर केंद्र और राज्य की भाजपा शासित सरकार से नाराज दिखे। ठाकुर ने इसका खुलकर विरोध किया और एक्ट में संशोधन न करने पर राजनीतिक रूप से भाजपा का सबक सिखाने का ऐलान किया। जब भाजपा ने दी गई दो माह की समयसीमा में एक्ट में संशोधन नहीं किया, तो देवकीनंदन ठाकुर ने एक नवंबर को हिदुत्व या हिंदू समाज की रक्षा के नाम पर राजधानी में सर्व समाज कल्याण पार्टी का ऐलान किया।

पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी भी उतारे, लेकिन पार्टी का ऐलान करने के बाद ठाकुर परिदृश्य से गायब हो गए। वे चुनाव प्रचार के दौरान सामने नहीं आए।

अकेले ऐसे बाबा, जो आखिरी समय तक रहे सक्रिय

प्रदेश की भाजपा सरकार ने कम्प्यूटर बाबा को राज्यमंत्री का दर्जा देकर मौका पहले ही दे दिया था, लेकिन बाबा की अनबन हो गई और वे पद का मोह छोड़कर राजनीति में सक्रिय हो गए। कम्प्यूटर बाबा अकेले ऐसे हैं, जो चुनाव के दौरान पूरे समय सक्रिय रहे। जबकि चुनाव के पहले सक्रियता दिखा रहे कई संत-महंत प्रत्याशियों की सूची घोषित होने के बाद मैदान में दिखाई नहीं दिए। सक्रिय बाबाओं में से ज्यादातर भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरकर किस्मत आजमाना चाहते थे।

बाकी बाबा की ऐसी रही कहानी


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