MP Election 2018 : सियासत की खातिर बदल ली वफादारी, अब इज्जत दांव पर
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा, कांग्रेस और बसपा के दिग्गजों ने टिकट कटते ही दशकों पुरानी पार्टी और वफादारी को अलविदा कह दिया।
भोपाल, राजीव सोनी। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा, कांग्रेस और बसपा के दिग्गजों ने टिकट कटते ही दशकों पुरानी पार्टी और वफादारी को अलविदा कह दिया। ये सियासी नेता आयाराम-गयाराम की तर्ज पर विरोधी दल से जा मिले और अपनी ही पार्टी के खिलाफ चुनावी अखाड़े में ताल ठोक बैठे। इन बागियों ने अपने दल का नुकसान कर दिया लेकिन बढ़े हुए मतदान व उलझे चुनावी समीकरण के चलते अब उनके जीवन भर की साख और इज्जत भी दांव पर है। दशकों तक जिस दल के निर्णायक मंडल में रहे उसी के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोकने वालों में पूर्व मंत्री, पांच बार सांसद और दो मर्तबा विधायक रहे सरताज सिंह एवं डॉ रामकृष्ण कुसमरिया का नाम प्रमुख है।
कुसमरिया तो भाजपा की प्रदेश चुनाव समिति के सदस्य भी रहे, लेकिन अपना टिकट भी नहीं बचा पाए। उम्र के अंतिम पड़ाव पर सरताज को कांग्रेस का दामन थामना पड़ा, जबकि कुसमरिया ने दो सीटों से चुनाव लड़कर भाजपा के समीकरण छिन्न-भिन्न कर दिए। अब दोनों ही नेताओं के सामने जीवन भर की साख बचाने के लिए चुनावी जीत के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा। इसी तरह दस बार लगातार विधायक रहने का रिकॉर्ड बना चुके पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने भी बगावती मुद्रा अपना ली थी, लेकिन भाजपा ने उनकी पुत्रवधु कृष्णा गौर को टिकट देकर मना लिया। हालांकि गौर यह कहने से नहीं हिचकते कि कांग्रेस की मदद से ही उनकी बहू कृष्णा को टिकट मिल पाया। बसपा से विधायक रही विद्यावती पटेल और महापौर रही रेणु शाह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में है।
सत्यव्रत ने झोंक दी ताकत : कांग्रेसी दिग्गज सत्यव्रत चतुर्वेदी कहते हैं उनकी तीन पीढ़ी कांग्रेस में खप गईं, लेकिन इस बार जब 15 साल के इंतजार और सब कुछ तय होने के बाद भी बेटे नितिन को टिकट नहीं मिला तो वह समाजवादी पार्टी से चुनाव मैदान में कूद गया। सत्यव्रत ने भी बेटे को जिताने के लिए पार्टी लाइन के खिलाफ राजनगर सीट पर पूरी ताकत झोंक दी। अब उनकी साख भी दांव पर है। चुनावी जीत मिली तो सामने अनंत संभावनाएं हैं, लेकिन उनकी बगावत से जिले में कांग्रेस के जातीय और पारंपरिक समीकरण बिगड़ गए।
मुख्यमंत्री के साले भी : प्रदेश की सियासत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह मसानी का मामला भी सुर्खियों में रहा। संजय ने ठीक चुनाव के पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस की शरण ले ली। कांग्रेस ने उन्हें वारासिवनी से उम्मीदवार भी घोषित कर दिया, चुनावी भंवर में उलझे संजय के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी साख बचाने और जनाधार साबित करने की बन गई है। नरसिंहपुर जिले में तेंदूखेड़ा सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला है। विधायक संजय शर्मा अब तक जहां भाजपा की तरफ से ताल ठोकते थे वे कांग्रेस के प्रत्याशी हैं और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मुलायम विश्वनाथ सिंह दल बदलकर भाजपा की तरफ से चुनावी अखाड़े में मौजूद हैं।
ये भी हैं बगावती : मुरैना में बसपा नेता रामप्रकाश राजौरिया भी बागी की भूमिका में हैं। पार्टी से बगावत कर चुनावी मैदान में कूदने वालों की सूची में भाजपा के नरेंद्र सिंह कुशवाह, रामोराम गुप्ता, ऋषि लोधी, धीरज पटैरिया,लता राजू मस्की, प्रदीप सिंह पटना और कांग्रेस के जेवियर मेढ़ा भी शरीक हैं। 11 दिसंबर को मतगणना के साथ इन सभी की किस्मत का फैसला भी हो जाएगा।
मुझे तो भाजपा ने कांग्रेस में धकेल
मुझे तो भाजपा से धकेला गया है, इसलिए मेरे अफसोस करने से भी कुछ नहीं होता। मजबूरी थी क्या करता, घर बैठने की आदत नहीं। वैसे चुनौतियों से जीवन भर जूझता रहा हूं यह चुनाव भी जीतूंगा। कांग्रेस के दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुनसिंह जब होशंगाबाद से मेरे खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़े थे उस वक्त जैसा माहौल था वैसा ही पब्लिक का रिस्पांस मुझे इस बार विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। इस बार सरकार के खिलाफ बदलाव की हवा है किसान, व्यापारी और युवा सभी नाराज हैं। पारंपरिक वोटर भी भाजपा से छिटक गए हैं। - सरताज सिंह पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस प्रत्याशी होशंगाबाद