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MP Election 2018: कांग्रेस के बागी बिगाड़ रहे कई सीटों पर प्रत्याशियों का समीकरण

MP Election 2018 सबसे ज्यादा दिक्कतें छतरपुर और उज्जैन जिलों की आधा दर्जन सीटों पर प्रत्याशियों के सामने खड़ी हो गई हैं।

By Hemant UpadhyayEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 09:31 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 01:31 AM (IST)
MP Election 2018: कांग्रेस के बागी बिगाड़ रहे कई सीटों पर प्रत्याशियों का समीकरण
MP Election 2018: कांग्रेस के बागी बिगाड़ रहे कई सीटों पर प्रत्याशियों का समीकरण

भोपाल। विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर दूसरी पार्टी का दामन थामने या निर्दलीय रूप में चुनाव मैदान में डटे कांग्रेस के बागियों के कारण करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों के समीकरण गड़बड़ा रहे हैं।

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सबसे ज्यादा दिक्कतें छतरपुर और उज्जैन जिलों की आधा दर्जन सीटों पर प्रत्याशियों के सामने खड़ी हो गई हैं। डेढ़ दर्जन में से कुछ सीटों पर कांग्रेस के लिए मुसीबतें ज्यादा पैदा हो गई हैं। इन बागियों ने पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ से लेकर पार्टी में उनके आकाओं तक की नहीं सुनी। हालांकि इनमें से कुछ की स्थिति पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों से ज्यादा बेहतर है।

बागी जिनसे प्रभावित हो रहे समीकरण

नितिन चतुर्वेदी: पूर्व सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी के पुत्र हैं और 2003 में चुनाव हार चुके हैं। सत्यव्रत को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि नितिन को छतरपुर जिले की राजनगर विधानसभा सीट से टिकट मिलेगा, लेकिन मौजूदा विधायक विक्रम सिंह नातीराजा नहीं माने। अब समाजवादी पार्टी से टिकट लेकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ने को उतरे।

राजेश शुक्ला: छतरपुर जिले की बिजावर सीट से लगातार दो चुनाव हारने वाले राजेश शुक्ला का टिकट काटकर शंकरप्रताप सिंह बुंदेला को टिकट दिया गया। 2013 में मोदी लहर के बाद भी 10 हजार से ज्यादा वोटों से हारे शुक्ला टिकट कटने पर समाजवादी पार्टी के पास पहुंचे और सपा प्रत्याशी के रूप में उतर आए हैं। इससे कांग्रेस को यहां लगातार चौथी बार झटका लग सकता है।

प्रदीप जायसवाल: बालाघाट जिले की वारासिवनी विधानसभा सीट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह मसानी को प्रत्याशी बनाए जाने से नाराज होकर प्रदीप जायसवाल गुड्डा बागी होकर चुनाव मैदान में आ गए हैं। गुड्डा 2013 में कांग्रेस प्रत्याशी थे और करीब 18 हजार वोटों से हारे थे। हार के बाद से ही वे 2018 चुनाव की तैयारियों में जुट गए थे, जिससे अब कांग्रेस को वे नुकसान पहुंचा सकते हैं।

प्रताप सिंह उइके: बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी सीट से पूर्व मंत्री प्रताप सिंह उइके को टिकट नहीं मिला तो वे समाजवादी पार्टी से चुनाव मैदान में उतर आए हैं। वे दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे थे। उनके चुनाव लड़ने के कारण व्यक्तिगत हैसियत से यादव व आदिवासी वोटों के अलावा प्रताप सिंह कांग्रेस के कुछ परंपरागत वोटों में भी सेंध लगाने की स्थिति में हैं।

विशाल रावत: झाबुआ जिले की जोबट विधानसभा सीट पर विशाल रावत निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में डटे हैं। दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहीं सुलोचना रावत के बेटे विशाल के चुनाव मैदान में उतरने से सांसद कांतिलाल भूरिया की भतीजी कलावती भूरिया की मुश्किलें बढ़ गई हैं। कांग्रेस प्रत्याशी बनाई गईं कलावती पिछले चुनाव में बागी होकर निर्दलीय के रूप में उतरी थीं।

जेवियर मेढ़ा: झाबुआ जिले में सांसद कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया को टिकट मिलने से जेवियर मेढ़ा ने बागी तेवर अपनाए हैं। जेवियर 2013 के विधानसभा चुनाव में करीब 16 हजार वोट से हारे थे। मगर जिले में पार्टी के कुछ नेताओं में सांसद भूरिया की बहन और बेटे को टिकट दिए जाने से नाराजगी स्पष्ट दिखाई दे रही है।

दिनेश जैन बोस: उज्जैन जिले की महिदपुर सीट पर 2013 के विधानसभा चुनाव में 50 हजार से ज्यादा वोट हासिल करने वाले दिनेश चंद बोस हार के बाद से क्षेत्र में सक्रिय हो गए थे। तब कांग्रेस की अधिकृत प्रत्याशी कल्पना परुलेकर किसी तरह सात हजार वोट ले पाई थीं।

जय सिंह दरबार: उज्जैन दक्षिण में महावीर प्रसाद वशिष्ठ के बेटे राजेंद्र वशिष्ठ को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद जय सिंह दरबार बागी प्रत्याशी के तौर चुनाव में उतर गए हैं। जय सिंह 2013 में दस हजार से भी कम वोट से हारे थे। उस समय वशिष्ठ परिवार पर उनके खिलाफ भीतरघात के आरोप लगे थे। अब इस बार जय सिंह पिछली बार की हार का बदला मैदान में उतरकर निकाल रहे हैं। 


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