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यहां 61 साल से सिर्फ इन दो दलों का राज, पार्टी छोड़ निर्दलीय लड़े तो हुआ ये हाल

जिले की चारों सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार कभी भी किला फतह करने की स्थिति में नहीं आ पाए।

By Saurabh MishraEdited By: Published: Sat, 27 Oct 2018 12:12 PM (IST)Updated: Sat, 27 Oct 2018 12:12 PM (IST)
यहां 61 साल से सिर्फ इन दो दलों का राज, पार्टी छोड़ निर्दलीय लड़े तो हुआ ये हाल
यहां 61 साल से सिर्फ इन दो दलों का राज, पार्टी छोड़ निर्दलीय लड़े तो हुआ ये हाल

सेंधवा, नईदुनिया न्यूज। पश्चिमी निमाड़ के बड़वानी जिले की चारों विधानसभा सीटों पर मतदाताओं को दोनों प्रमुख राजनीतिक दल के सिवाय किसी और पर भरोसा नहीं है। यही कारण है कि पिछले 61 सालों से जिले की चार विधानसभाओं से अब तक कांग्रेस, जनसंघ-भाजपा के उम्मीदवार के अलावा कोई ओर जीत का स्वाद नहीं चख सका है। फिर चाहे कोई प्रत्याशी भाजपा-कांग्रेस से बगावत कर के ही अन्य चिन्ह से मैदान में क्यों ना उतरा हो।

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राकांपा के कारण हारी कांग्रेस

वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में जिले की सेंधवा सीट से राकांपा के उम्मीदवार के कारण कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के कारण सुखलाल परमार ने कांग्रेस से बगावत कर राकांपा के बैनर तले चुनाव लड़ा। परमार ने कांग्रेसी प्रत्याशी ग्यारसीलारल रावत को प्राप्त मत 24 हजार 311 से मात्र 233 मत कम लाकर ध्यान आकर्षित किया। नतीजा यह हुआ कि अगले चुनाव में कांग्रेस से सुखलाल परमार को टिकट मिला। लेकिन वे भाजपा के उम्मीदवार अंतरसिंह आर्य से 12 हजार 934 मतों से हार गए।

1972 में हुआ था उलटफेर

1972 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार देवीसिंह पटेल ने बड़वानी सीट के परिणाम में उलटफेर किया। यहां से भारतीय जन संघ के उम्मीदवार उमरावसिंह पर्वतसिंह कांग्रेस के उम्मीदवार रायसिंह पटेल से मात्र 220 मतों से जीते। जबकि निर्दलीय उम्मीदवार देवीसिंह पटेल ने 2 हजार 885 मत हासिल कर लिए।

जिले में निर्दलीयों के हाल

जिले की चारों सीटों पर (पूर्व में तीन) निर्दलीय उम्मीदवार कभी भी किला फतह करने की स्थिति में नहीं आ पाए। कई बार वे साख बचाने में असफल रहे। केवल बड़वानी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार लक्ष्मणसिंह चौहान 2008 के चुनाव में सर्वाधिक मत 15 हजार 880 प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे। 1985 के चुनाव में अंजड़ सीट से निर्दलीय उम्मीदवार शोभाराम को 0.48 फीसदी (186) मत मिले। इसी प्रकार 1990 में अंजड़ सीट से निर्दलीय उम्मीदवार अनारसिंह को 0.16 फीसदी (89) मत मिले।

1990 में ही राजपुर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार विजयसिंह को 0.18 फीसदी (96) मत मिले। 1990 में ही बड़वानी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार ओंकार मोहनिया को 0.51 फीसदी (297) और सुरेशचंद्र को 0.46 फीसदी (269) मत मिले।

कुल मिलाकर जिले में निर्दलीय कोई खास कमाल दिखा नहीं पाए। वर्ष 2013 में चार में से तीन विधानसभा में कांग्रेस व भाजपा के उम्मीदवारों के अतिरिक्त निर्दलीय व अन्य दलों के उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। सेंधवा विस से दो निर्दलीय व एक बसपा का उम्मीदवार, बड़वानी से एक निर्दलीय व दो अन्य दल के उम्मीदवार, राजपुर से दो अन्य दल के उम्मीदवार व दो निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें से एक भी विजय नहीं हुआ। वहीं पानसेमल में कांग्रेस-भाजपा के उम्मीदवार मैदान में थे।

पानसेमल में निर्दलीयों ने दिशा बदली

पानसेमल सीट से 2008 के चुनाव में खड़े हुए तीन निर्दलीय और दो अन्य दल के उम्मीदवारों को कु ल 9 हजार 937 मत मिले। जबकि भाजपा के उम्मीदवार कन्हैयालाल सिसौदिया कांग्रेस के बाला बच्चन से महज 3 हजार 564 मतों से हारे।

बड़वानी जिले की विधानसभा से जुड़े अहम तथ्य

-1980 के विस चुनाव में राजुपर सीट से एक निर्दलीय और सीपीआई उम्मीदवार द्वारा मत विभाजन करने से कांग्रेस के बारकू भाई चौहान भाजपा के उम्मीदवार मायाभाई सिसौदिया से 3 हजार 160 मतों से हार गए।

-प्रमुख दलों को छोड़कर जिलेभर में निर्दलीय या अन्य दल से चुनाव लड़कर सर्वाधिक मत लाने वालों में सेंधवा के सुखलाल परमार का नाम पहले स्थान पर है। इन्होंने 2003 के चुनाव में 24 हजार 78 मत प्राप्त किए।

-1975 के विस चुनाव में सेंधवा सीट से सबसे कम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार शोभाराम है। इन्हें 72 मत मिले थे।


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