MP Election Result 2018: मैनेजमेंट में आगे रही कांग्रेस, अंचल में बंट गई भाजपा
MP Election Result 2018: मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने एकजुट होकर बेहतर मैनेजमेंट के साथ चुनाव लड़ा और उसी मैनेजमेंट की बदौलत वह चुनाव जीतने में कामयाब हुई।
भोपाल, नईदुनिया ब्यूरो। पिछले पंद्रह साल में हुए तीन चुनाव को देखें तो पहला अवसर था जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने एकजुट होकर बेहतर मैनेजमेंट के साथ चुनाव लड़ा और उसी मैनेजमेंट की बदौलत वह चुनाव जीतने में कामयाब हुई। वोटर लिस्ट में गड़बड़ी से लेकर स्ट्रांग रूम की पहरेदारी तक कांग्रेस ने जो दबाव बनाया, उसने कांग्रेस को हमेशा भाजपा पर भारी बनाए रखा।
कार्यकर्ताओं में पार्टी ने उत्साह जगाया, जिसके चलते वे बूथ तक वोटर्स को ले जाने में सफल रहे। वचन पत्र में आरएसएस की शाखा सरकारी परिसर में न लगने देने की बात को छोड़कर कांग्रेस ने कोई भी सेल्फ गोल नहीं किए। सात ऐसे कारण रहे, जिनके कारण कांग्रेस आगे और भाजपा बैकफुट पर रही।
1. कांग्रेस का वचन पत्र- कांग्रेस के वचन पत्र में युवा, किसान, महिला से लेकर उद्योग जगत के लिए तमाम ऐसी घोषणाएं की गईं, जिसने एक बड़े वर्ग को प्रभावित किया।
2. दिग्विजय का मौन- पिछले तीन चुनाव से भाजपा हमेशा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल को मुद्दा बनाती रही। पहली बार कांग्रेस ने दिग्विजय को पर्दे के पीछे रखा और भाजपा को अवसर नहीं दिया कि वह मिस्टर बंटाढार जैसे विषय को उठा पाए।
3. सोशल मीडिया का बेहतर और सफल उपयोग- मुझे गुस्सा आता है और महिलाओं की सुरक्षा, बेरोजगारी के मुद्दे पर कांग्रेस ने प्रचार के लिए जो आकर्षक विज्ञापन बनवाए, वे लोगों को प्रभावित करने वाले रहे।
4. 'वक्त है बदलाव का’- इस चुनाव में कांग्रेस ने 'वक्त है बदलाव का' स्लोगन का इस्तेमाल किया। इस स्लोगन को लोगों की जुबान से दिल तक पहुंचाने में कांग्रेस सफल रही।
5. कर्जमाफी दस दिन में - किसानों को प्रभावित करने वाले इस वचन ने भाजपा के किसान वोट बैंक में सेंध लगाई।
6. मीडिया में सुर्खियां बटोरी- कांग्रेस ने इस बार अपने राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को लाकर प्रभावशाली ढंग से भाजपा सरकार को घेरा। चैनल्स में भी पार्टी के नेता छाए रहे।
7. उत्साह - पार्टी ने कार्यकर्ताओं में जो उत्साह जगाया कि वह वोटर लिस्ट और प्रचार से लेकर स्ट्रांग रूम की पहरेदारी तक कायम रहा। चुनाव आयोग में शिकायतों का दौर भी कांग्रेस को आक्रामक बनाए रखने में महत्वपूर्ण रहा।
सूबे में बंट गई भाजपा
इधर, पंद्रह साल सत्ता में रहकर भाजपा कांग्रेस के ट्रैक पर चली गई। हर बड़ा नेता एक सूबे का नेता बन गया। दिग्गजों ने इस भाव से काम किया कि टिकट मेरे समर्थक को ही मिले या मेरे समर्थक ही ज्यादा जीतें। शिवराज को छोड़कर कोई भी नेता अपने सूबे से बाहर नहीं निकला। कई नेताओं के बारे में तो यह कहा गया कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों को हराने का काम किया।
सूबे के नेता
कैलाश विजयवर्गीय - मालवांचल के नेता
नरेंद्र सिंह तोमर- ग्वालियर और चंबल के नेता
राकेश सिंह- महाकोशल के नेता
फग्गन सिंह कुलस्ते- आदिवासी नेता
थावरचंद गेहलोत- अनुसूचित जाति के नेता