काम न आया राहुल गांधी का बड़बोलापन, खुद को बताया था प्रधानमंत्री पद का दावेदार
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार कर्नाटक में चुनाव प्रचार करते हुए राहुल गांधी ने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बड़ा नेता बताने की भरसक कोशिश की।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी का बड़बोलापन काम नहीं आया। न सिर्फ मुख्यमंत्री सिद्दरमैया को एक सीट पर हार का सामना करना पड़ा, बल्कि कांग्रेस के एक दर्जन से अधिक मंत्री भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। चुनाव के पहले राहुल गांधी ने कर्नाटक के बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ और 2019 के लोकसभा चुनाव का जीत का दावा करते हुए प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी भी ठोक दी थी।
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार कर्नाटक में चुनाव प्रचार करते हुए राहुल गांधी ने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बड़ा नेता बताने की भरसक कोशिश की। उन्होंने यहां तक कह दिया कि संसद में उन्हें 15 मिनट बोलने का मौका दे दिया जाए, तो प्रधानमंत्री उनके सामने खड़े ही नहीं रह पाएंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री को सिद्धारमैया से शासन चलाने की सीख लेने का सुझाव देते हुए 2019 में नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने पर भी संदेह जता दिया। राहुल गांधी के इन बड़े बोल का उद्देश्य कर्नाटक की जनता को यह संदेश देना था कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बड़े नेता है और आने वाला भविष्य उनका है। लेकिन जनता ने इन बड़े बोलों को खारिज कर दिया।
अपने बड़े बोलों में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता पर भी सवाल खड़ा करने की कोशिश की। उनका कहना था कि यदि प्रधानमंत्री इस तरह गाड़ी (सरकार) चलाएंगे तो नाले में चली जाएगी। अगर बेहतर भारत चाहते हैं तो आगे की ओर देखें। मोदी को संकीर्ण दृष्टिकोण का नेता बताते हुए राहुल गांधी ने कह दिया कि प्रधानमंत्री उनसे बात नहीं करते हैं। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वे और सोनिया गांधी भारत के 20 फीसद वोट शेयर का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी है, लेकिन राहुल गांधी ने आम जनता में भाजपा के खिलाफ गुस्सा देखने का भी दावा किया था। उनका कहना था कि प्रधानमंत्री उन्हें सबसे बड़े खतरे के रूप में देखते हैं। शायद उन्हें फिर से अपने बयानों पर गौर करना चाहिए।