कर्नाटक का किला बचाने के लिए दौरे बढ़ाएंगे राहुल गांधी
कर्नाटक के चुनाव में भाजपा के मुकाबले अपना सियासी पलड़ा भारी होने का अनुमान लगा रहे कांग्रेस नेतृत्व को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आक्रामक अभियान ने चिंतित कर दिया है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कर्नाटक में भाजपा के शिखर नेतृत्व के आक्रामक चुनाव अभियान को देखते हुए कांग्रेस ने भी अपनी सियासी रणनीति में बदलाव करने का फैसला किया है। इस रणनीति के तहत राहुल गांधी के राजनीतिक दौरों की संख्या में इजाफा किया जा रहा है। साथ ही युवा और मध्यम वर्ग में फिर से पैठ बनाने की संभावनाओं के मद्देनजर राहुल गांधी भी इन वर्गो से सीधे अपना संवाद बढ़ाएंगे। वहीं कर्नाटक की सत्ता बचाने की जंग में कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी सूबे के हर जिले में चुनावी ड्यूटी के लिए उतार दिया है।
कर्नाटक के चुनाव में भाजपा के मुकाबले अपना सियासी पलड़ा भारी होने का अनुमान लगा रहे कांग्रेस नेतृत्व को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आक्रामक अभियान ने चिंतित कर दिया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार शाह न केवल आक्रामक रणनीति के जरिये कांग्रेस की सियासत पर हमला बोल रहे बल्कि भाजपा कैडर में उम्मीद का जज्बा भरने का दांव चल रहे। कांग्रेस का मानना है कि कैडर में नई सियासी उर्जा भरना सिद्धारमैया सरकार के लिए ज्यादा चिंता की बात है।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के चुनावी मैदान में उतरने से पहले तक सिद्धारमैया ने सूबे के भाजपा नेतृत्व को सियासी दायरे में थाम रखा था। पार्टी का अपना आकलन है कि राज्य स्तरीय नेतृत्व की सियासी लड़ाई में भाजपा के सीएम चेहरे येदियुरप्पा के मुकाबले सिद्धारमैया की साफ छवि कांग्रेस को एक मनौवैज्ञानिक बढ़त दिला रही है। मगर भाजपा अध्यक्ष के दौरे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्च में प्रस्तावित दौरे कांग्रेस की इस घेरेबंदी को तोड़ सकते हैं। इसीलिए राहुल के दौरों की संख्या तो बढ़ेगी ही साथ ही पार्टी मध्यम और युवा वर्ग को खास तौर पर फोकस करेगी।
कर्नाटक चुनाव से जुड़े कांग्रेस के एक रणनीतिकार ने कहा कि पार्टी का आकलन है कि एनडीए सरकार से अपनी उम्मीदें पूरी नहीं होने से क्षुब्ध मध्यम और युवा वर्ग को भाजपा से विमुख करने का कर्नाटक टेस्ट केस बन सकता है। पार्टी इस दिशा में किसी हद तक सफल रही तो लोकसभा चुनाव में इसके लिए विशेष सियासी रणनीति भी अपनायी जाएगी। फिलहाल कर्नाटक में इस रणनीति को जमीन पर उतारने के लिए ही गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, वीरप्पा मोइली से लेकर पी चिदंबरम जैसे नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है।