बाकी बूथ से कितना अलग है 'पिंक बूथ', जानिए क्या है गुलाबी रंग और महिलाओं का 'कनेक्शन'
पिंक बूथ पर तैनात चुनाव अधिकारी से लेकर सुरक्षा अधिकारी तक सिर्फ महिलाएं होती हैं। कर्नाटक चुनाव में 450 पिंक बूथ खोले गए हैं।
नई दिल्ली (जेएनएन)। क्या गुलाबी रंग औरतों को अपनी ओर खींचता है? यह सवाल जहन में इसलिए उठा, क्योंकि पिंक ऑटो, पिंक टॉयलेट, पिंक किताब के बाद अब महिलाओं के लिए पिंक बूथ का चलन भी शुरू हो चला है। इसका उपयोग कर्नाटक चुनाव में महिलाओं को बूथ तक ले जाने में भी किया जा रहा है। चुनाव आयोग ने एक या दो नहीं, बल्कि राज्य में पूरे 450 पिंक बूथ बनाए हैं, जिसको नाम दिया गया है 'पिंक पोलिंग स्टेशन'। जानकारी के मुताबिक, इतनी बड़ी संख्या में आज तक पिंक बूथ किसी और राज्य में नहीं बने हैं। हम महिलाओं और गुलाबी रंग के संबंधों पर और अधिक बात करें, उससे पहले आपको बताते हैं आखिर पिंक बूथ हैं क्या?
क्या है पिंक बूथ?
- पिंक बूथ पर तैनात चुनाव अधिकारी से लेकर सुरक्षा अधिकारी तक सिर्फ महिलाएं होती हैं।
- ये बूथ बनाए तो महिलाओं के लिए गए हैं, लेकिन पुरुष भी यहां जाकर वोट डाल सकते हैं।
- इन बूथों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया कपड़ा, टेबल क्लॉथ, गुब्बारे से लेकर हर कुछ गुलाबी रंग का होता है।
- यहां बच्चों के खेलने के लिए भी जगह होती है और वो भी गुलाबी रंग की।
पिंक बूथ बनाने का मकसद
पिंक बूथ को महिला सशक्तीकरण से भी जोड़कर देखा जाता है। हालांकि इसका मुख्य मकसद है कि हर महिला व पुरुष को वोट देने का सुखद अनुभव हो। ये उन्हें बूथ तक लेकर आने की पहल है, ताकि चुनावी प्रक्रिया में महिलाओं की ज्यादा भागीदारी हो सके। कहा जाता है कि इस तहर के बूथ महिलाओं का उत्साह बढ़ाते हैं।
कब हुई पिंक बूथ की शुरुआत?
भारत में पहली बार गुलाबी बूथ की शुरुआत पूर्व चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने की थी। साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इसकी पहली बार इस्तेमाल हुआ।
कर्नाटक में महिला मतदाताओं की संख्या
कर्नाटक में इस बार तकरीबन 2 करोड़ 51 लाख पुरुष मतदाता हैं और 2 करोड़ 44 लाख महिला मतदाता। जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2008 में 63.2 फीसद महिलाओं ने वोट डाले थे, जबकि 2013 में 70.5 फीसद महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।
चुनावी अधिकारियों ने 75 फीसद मतदान के लक्ष्य के साथ इसकी पहल की है। वहीं, इवीएम के साथ छेड़छाड़ के मुद्दे पर हो-हल्ला होने के बाद इस बार चुनाव आयोग 'एम3 इवीएम' लेकर आया है, जिसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। इसकी खासियत है कि अगर इसके साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश भी की जाएगी, तो इवीएम काम करना बंद कर देगी। मुख्य चुनाव अधिकारी के कार्यालय के सूत्र के अनुसार मशीन में बैटरी स्टेटस (स्थिति) और डिजिटल प्रमाणीकरण के प्रदर्शन जैसी सुविधाएं हैं। मशीन खुद किसी भी खराबी की रिपोर्ट कर सकती है।' वहीं महिलाओं को ध्यान में रखते हुए 'सखी' नाम से 450 पिंक बूथ खोले गए हैं। महिला सशक्तिकरण के संदेश देते हुए पिंक बूथ पर सभी कार्ययत कर्मचारी महिलाएं ही हैं। वहीं, चुनाव आयोग ने मैसूर, चामराजनगर और उत्तर कन्नड़ जिलों में अदिवासियों को ध्यान में रखते हुए जनजातीय लोगों की जीवनशैली से मिलता-जुलता बूथ बनाया है।
सबका पसंदीदा रंग होता है नीला
भले ही महिलाओं के संदर्भ में गुलाबी रंग का इस्लेमाल होता हो, लेकिन अगर वर्ष 2007 में ब्रिटेन की न्यू कैसल यूनिवर्सिटी द्वारा कराए गए शोध की मानें तो, महिलाएं हो या पुरुष अधिकतर लोगों का पसंदीदा रंग नीला होता है।
पिंक ऑटो की जरूरत क्यों पड़ी?
वैसे तो गुलाबी ऑटो को महिला सुरक्षा के तहत शुरू किया गया था, लेकिन इसने महिलाओं के सशक्तीकरण में भी अहम भूमिका अदा की। इस ऑटो में बैठकर केवल महिलाएं ही यात्रा कर सकती हैं। इसके अलावा पिंक ऑटो के जरिये महिलाओं को रोजगार भी मुहैया कराया गया है। गुजरात में तो पिंक ऑटो के जरिये महिलाएं हर महीने हजारों रुपये कमा रही हैं।
महिलाओं के लिए पिंक टॉयलेट
राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में महिलाओं की सुविधा के मद्देनजर पिंक टॉयलेट (गुलाबी रंग के शौचालय) खोले गए हैं। इसमें महिलाओं के लिए रेस्ट रूम और बच्चों की सुविधा के लिए भी टॉयलेट बनाया गया है। टॉइलट में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन, चाइल्ड केयर रूम और चेंजिंग रूम की सुविधा महिलाओं को दी गई है।