Jharkhand Assembly Election 2019: नीतीश कुमार के लिए क्यों अहम है झारखंड चुनाव; जानें ये 5 कारण
Jharkhand Assembly Election 2019. अनुच्छेद 370 एनआरसी से लेकर तीन तलाक तक भाजपा से जुदा राय रखने वाले नीतीश कुमार के लिए झारखंड विस चुनाव कई मायनों में अहम है।
रांची, [जागरण स्पेशल]। बिहार के मुख्यमंत्री और भाजपा के दोस्त नीतीश कुमार ने झारखंड विधानसभा के रण में उतरने का पूरा मन बना लिया है। उन्होंने अपनी पार्टी जदयू को पुख्ता तैयारी के साथ एक-एक सीट पर आजमाइश करने को कहा है। लिहाजा पार्टी भी संगठन से लेकर कार्यकर्ता तक को दमखम के साथ चुनाव में उतारने को उतावली दिख रही है। अनुच्छेद 370, एनआरसी से लेकर तीन तलाक तक भाजपा से जुदा राय रखने वाले नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव कई मायनों में अहम है।
कहा जा रहा है कि बीते दिन चुनावी तैयारियों को परखने के लिए जब वे रांची पहुंचे तो उन्होंने सहयोगी भाजपा पर जानबूझकर कटाक्ष किया, ताकि जदयू की पहचान वे अलग से झारखंड में स्थापित कर सकें। जिस तरह भाजपा पर तंज कसते हुए नीतीश कुमार ने रांची में कहा कि झारखंड में अधिकतम समय तक भाजपा ने शासन किया, फिर भी बिहार से ज्यादा प्रगति नहीं कर पाया उसे अपेक्षित बताया जा रहा है। उन्होंने भाजपा सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि बिहार में शराबबंदी लागू है, फिर भी झारखंड में वहां के लोग शराब पीने के लिए आते हैं।
नीतीश कुमार की झारखंड विधानसभा चुनाव में दिलचस्पी के ये हैं पांच कारण
- जदयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने में जुटे नीतीश कुमार के लिए झारखंड विधानसभा चुनाव अहम है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि पार्टी जल-जंगल-जमीन के वन प्रदेश में अपना खोया हुआ जनाधार हासिल कर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है। वर्ष 2005 के पहले विधानसभा चुनाव में जदयू ने 4 प्रतिशत वोट हासिल किए और 6 विधानसभा सीटें जीतीं। यह 2009 के चुनाव में सिमटकर 2 सीट तक रह गया, जबकि इस चुनाव में जदयू को सिर्फ 2.8 प्रतिशत वोट मिले। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में जदयू यहां एक भी सीट नहीं जीत सकी और पार्टी को महज 1 फीसद वोट हासिल हुए।
- जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर वर्तमान में मंजे हुए चुनावी रणनीतिकार माने जाते हैं। ऐसे में पार्टी उनके अनुभव के बूते झारखंड में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है। कभी अविभाजित बिहार का हिस्सा रहे झारखंड को लेकर जदयू के रणनीतिकारों को लगता है कि बिहार की तरह ही यहां भी ब्रांड नीतीश की लोगों में पैठ है। ऐसे में पार्टी कैडर से दिसंबर विधानसभा चुनाव को भविष्य के चुनावों से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
- जदयू अपने आधार वोटरों यथा अन्य पिछड़ा वर्ग की झारखंड में बड़ी आबादी को देखते हुए यहां विधानसभा चुनाव में उतरना चाहता है। संगठन का मानना है कि नीतीश कुमार की ओबीसी में साख अच्छी है, जिसके समर्थन से पार्टी यहां कुछ सीटें हासिल कर सकती हैं। झारखंड में भाजपा के पारंपरिक वोटर भी ओबीसी ही माने जाते हैं, ऐसे में जदयू को बीजेपी की राह रोकने का यह बेहतर मौका दिख रहा है।
- भाजपा झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 65 प्लस सीटें हासिल करने के लक्ष्य पर आगे बढ़ रही है। ऐसे में भाजपा के मिशन के लिए यह जरूरी है कि जदयू सरीखे कमतर पहचान वाले दलों को किनारे रखा जाए। आदर्श स्थिति में आजसू, लोजपा और अब जदयू के भाजपा गठबंधन में शामिल होने से बीजेपी की सीटें घटेंगी। इस लिहाज से भाजपा ने भी जदयू से दूरी बनाए रखने को तवज्जो दिया है। भाजपा पहले ही जदयू से झारखंड में गठबंधन करने से इन्कार कर चुकी है। ऐसे में जदयू इस चुनाव में उतरकर भाजपा को अधिकतम नुकसान पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है।
- हालिया दिनों में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ भाजपा के संबंध बेहतर नहीं कहे जा रहे। देश के बड़े मसलों यथा अनुच्छेद 370, तीन तलाक और एनआरसी को लेकर भाजपा के स्टैंड से इतर पार्टी इसे अपनी विचारधारा के खिलाफ मानती रही है। ऐसे में झारखंड विधानसभा चुनाव में उतरकर पार्टी इन मुद्दों पर अपनी अलग राय को नए सिरे से स्थापित कर सकती है। खासकर झारखंड विधानसभा चुनाव के जरिये जदयू अपने मतदाताओं को यह संदेश देने की पुरजोर कोशिश करेगी कि भाजपा से उसकी नजदीकी सिर्फ विकास और न्यनतम साझा कार्यक्रमों पर आधारित है।