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Jharkhand Assembly Election 2019: हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बदला साथी, पार्टनरों के भरोसे चल रही गाड़ी

Jharkhand Assembly Election 2019 राजद झाविमो के साथ अलग-अलग चुनाव लड़ चुकी कांग्रेस इस बार झामुमो के साथ मैदान में उतरी है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 08:24 AM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 08:36 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बदला साथी, पार्टनरों के भरोसे चल रही गाड़ी
Jharkhand Assembly Election 2019: हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बदला साथी, पार्टनरों के भरोसे चल रही गाड़ी

रांची, [आशीष झा]। Jharkhand Assembly Election 2019 अलग राज्य बनने के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टनर बदलती रही है और यह क्रम इस चुनाव में भी दिख रहा है। पहले अकेले लड़ी कांग्रेस ने अगले दो चुनावों में पार्टनर के तौर पर झाविमो और राजद को रखा। इस बार झाविमो अलग हो गया है। झारखंड अलग होने से पूर्व ही इस क्षेत्र में कांग्रेस कमजोर पडऩे लगी थी और अलग राज्य बनने के बाद पार्टनरों के भरोसे ही कांग्रेस की गाड़ी आगे बढ़ी।

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अलग राज्य बनने के बाद पहले चुनाव वर्ष 2005 में कांग्रेस अपने दम पर 41 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 9 पर जीतने में सफलता मिली। कांग्रेस ने 2009 के विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के साथ समझौता किया था। समझौते के तहत झाविमो को 25 सीटें दी गईं और यह प्रयोग सफल हो गया। इस चुनाव में कांग्रेस को अबतक की सर्वाधिक 14 सीटें हासिल हुईं तो झाविमो ने 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

अगले चुनाव में कांग्रेस ने फिर पार्टनर बदल लिया। 2014 के चुनाव में झाविमो को छोड़कर कांग्रेस ने राजद के साथ चुनाव लड़ा और बहुत ही खराब परिणाम सामने आया। कांग्रेस 62 सीटों पर लड़कर सिर्फ छह सीट जीत पाई और राजद को 19 सीटों में से एक भी नहीं मिला।

अब झामुमो को पार्टनर के तौर पर परखेगी पार्टी

बदलती परिस्थितियों में अब कांग्रेस को लग रहा है कि झामुमो के साथ गठबंधन से उसकी स्थिति मजबूत होगी और इसीलिए झाविमो को छोडऩे के लिए पार्टी राजी हुई है। कांग्रेस आनेवाले दिनों में विवादों को बढ़ाने के बजाए कुछ और सीटों पर अपना दावा छोड़ सकती है। लोकसभा चुनाव में एक सीट पर जीत और दो सीटों पर कड़ी टक्कर को लेकर झामुमो के साथ करार को अहम मान रही है पार्टी। 

15 से 24 पर पहुंच गए थे बाबूलाल

सीटों की मांग को लेकर बाबूलाल मरांडी की जिद ही उन्हें महागठबंधन से बाहर की ओर ले गई। कांग्रेस ने अंतिम समय तक कोशिश की कि मरांडी को मना लिया जाए। इसके पीछे अहम कारण यह भी था कि कांग्रेस और झाविमो का 2009 में समझौता दोनों दलों के लाभदायक रहा था अभी तक की सर्वाधिक सीटें मिली थीं। इधर, बाबूलाल को झामुमो के रूप में नया पार्टनर मंजूर नहीं था और हेमंत के नेतृत्व पर भी नाराजगी थी।

शुरू से 15 सीटों पर बात कर रहे झाविमो ने बाद में बात खुद बिगाड़ ली। बताते हैं कि आलाकमान के निर्देश पर उनसे आखिरी बार बात करने पहुंचे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के सामने झाविमो सुप्रीमो ने 24 सीटों की जिद कर दी थी जबकि झामुमो 12 से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं था। अब कांग्रेस और झामुमो इस महागठबंधन की असफलता का ठीकरा बाबूलाल पर हीे फोडऩे के मूड में हैं। शीघ्र ही नेताओं की बयानबाजी शुरू होगी।


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