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आज आंखों में कटेगी कयामत की रात, हर तरफ बस दारू-हड़ि‍या, मांस-भात Jharkhand Election 2019

Jharkhand Assembly Election 2019 यह जानने की कोशिश है कि चुनाव का अर्थतंत्र कैसा है? चुनाव आयोग की आंखों में धूल झोंककर किस तरह चुपके-चुपके वोट खरीदने के लिए पैसे बहाए जा रहे हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 29 Nov 2019 07:48 AM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 12:40 AM (IST)
आज आंखों में कटेगी कयामत की रात, हर तरफ बस दारू-हड़ि‍या, मांस-भात Jharkhand Election 2019
आज आंखों में कटेगी कयामत की रात, हर तरफ बस दारू-हड़ि‍या, मांस-भात Jharkhand Election 2019

खास बातें

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  • हरी पर्ची लाइए तो अंग्रेजी और लाल पर हाजिर है देसी पाउच, 4 वोटरों को सात सौ बीस एमएल की एक बोतल बांट रहे एजेंट
  • प्रथम चरण के मतदान क्षेत्रों में शुरू हो गई है पार्टी, 15 वोटरों पर दस किलो का एक बकरा या सात मुर्गा बांट रहे
  • पूरे चुनाव में 20 करोड़ से अधिक इस मद में खर्च का अनुमान, 5 किलो चावल हर परिवार को गांव में बांट रहे हैं प्रत्याशी के एजेंट

दैनिक जागरण के 243 संवाददाताओं ने झारखंड की 81 विधानसभा क्षेत्रों के 243 गांवों की एकसाथ पड़ताल की। यह जानने की कोशिश की कि चुनाव का अर्थतंत्र कैसा है? चुनाव आयोग की आंखों में धूल झोंककर किस तरह चुपके चुपके वोट खरीदने के लिए पैसे बहाए जा रहे हैं।

रांची, जेएनएन। झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान दो दिन बाद 30 नवंबर को है। चुनावी रंग परवान चढऩे के साथ गांव, शहर और कस्बे झूमने लगे हैं। वोटरों को लुभाने के लिए मांस, भात, शराब, देसी दारू व हंडिया की पार्टी धड़ल्ले से शुरू हो गई है। चतरा, गुमला, बिशुनपुर, लोहरदगा, मनिका, लातेहार, पांकी, डालटनगंज, विश्रामपुर, छतरपुर, हुसैनाबाद, गढ़वा और भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र के किसी भी गांव में चले जाइए, प्रत्याशियों के एजेंट और ठेकेदारनुमा समर्थकों ने वोटरों के लिए पुख्ता प्रबंध कर रखा है।

चंद गांवों को छोड़ कर अधिकतर गांवों में मांस के लिए बकरा-बकरी और मुर्गा-मुर्गी की खरीद-बिक्री बढ़ गई है। एजेंट के पास जाइए, पैसा लीजिए और खुद ही खरीद कर पार्टी कीजिए। एजेंटों ने गांव के टोलों में चावल की बोरी पहले ही पहुंचा दी है। वहीं, गांवों में ही हंडिया बेचने वालों को पिलाने का ठेका दिया गया है। स्थानीय कार्यकर्ता वोटरों को सीधे हंडिया की दुकान पर रेफर कर रहे हैं। उधर, कोल्हान प्रमंडल की 13 विधानसभा क्षेत्रों में भी कमोवेश यही हाल है। चूंकि यहां पर मतदान अगले माह सात दिसंबर को है, इसलिए पार्टी पूरी तरह परवान नहीं चढ़ी है। यहां एक दिसंबर से पार्टियों का सिलसिला शुरू होगा।

खैर, शहरों में तस्वीर थोड़ी जुदा है। यहां हंडिया और मांस-भात से ज्यादा लाल पानी का बोलबाला है। प्रत्याशी के एजेंट वोटरों के बीच लाल व हरे रंग की पर्ची बांट रहे हैं। जिनके पास लाल वाली पर्ची है, उन्हें सीधे दुकान से पाउच वाली शराब मिल जा रही है। जिनके पास हरी पर्ची है, उन्हें अंग्रेजी शराब हाथ लग रही है। विश्रामपुर क्षेत्र के एक वोटर ने दो टूक कहा- नेताजी की पर्ची लेकर दुकान पर जाइए, शराब लेकर आइए। 

किसकी क्या भूमिका

  1. प्रत्याशी : आयोग की डर से यह सीधे वोटरों को पैसा या किसी तरह की सामग्री नहीं बांटता है। एजेंट, समर्थक व ठेकेदार की मदद लेता है।
  2. एजेंट : प्रत्याशी का पैसा इसी के पास आता है। यह बेहद खास होता है। सक्रिय नेता के रूप में नजर नहीं आता है।
  3. स्थानीय कार्यकर्ता : प्रत्याशी के एजेंट से पैसे लेकर वोटरों तक सामग्री पहुंचाना और अन्य तरह की सुविधाओं का इंतजाम करना। यह संबंधित गांव का होता है।
  4. समर्थक / ठेकदार : प्रत्याशी के पक्ष में खुद के खर्चे से वोटरों के लिए भोज का आयोजन करता है। लोग इसे प्रत्याशी का खास समझते हैं।

वोट के लिए प्रलोभन ने दूषित कर रखा है चुनाव

गांवों में मांस, भात, हंडिया, शराब, दारू और पैसे के प्रलोभन ने चुनाव जैसे पवित्र कार्य को दूषित कर दिया है। इस कारण अच्छे प्रत्याशी भी मैदान में कई बार पस्त हो जाते हैं। चुनाव आयोग को इस पर नकेल कसने के लिए और मजबूत तंत्र विकसित करना चाहिए।  सूर्य सिंह बेसरा, झारखंड पीपुल्स पार्टी के प्रत्याशी, घाटशिला विस क्षेत्र


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