एक छोटी सी भूल विद्या स्टोक्स पर पड़ी भारी,जानें- क्यों नामांकन हुआ रद्द
छोटी भूल कहें या बड़ी भूल सच ये है कि हिमाचल कांग्रेस की कद्दावर नेताओं में से एक विद्या स्टोक्स अब चुनावी मैदान से बाहर हो चुकी हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। एक छोटी सी भूल आपके अरमानों पर पानी फेर सकती है। हिमाचल प्रदेश की राजनीति में खास जगह रखने वाली कांग्रेस की कद्दावर नेता विद्या स्टोक्स के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। ठियोग विधानसभा क्षेत्र को लेकर अंतिम समय तक सस्पेंस बना रहा। कांग्रेस ने जब साफ कर दिया कि सीएम वीरभद्र सिंह ठियोग की जगह अर्की से चुनाव लड़ेंगे तो ये सवाल उठ खड़ा हुआ कि ठियोग से किस उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा जाएगा। दीपक राठौर के नाम का जब ऐलान हुआ तो विद्या स्टोक्स ने बगावती सुर अख्तियार कर लिया। आलाकमान उनके दबाव के सामने झुक गया। लेकिन कहानी कुछ और हुई। जिस दिन नामांकन का परीक्षण किया जा रहा था, उस दिन साफ हो गया कि अब विद्या स्टोक्स का चुनावी मैदान में बने रहना मुश्किल होगा।
43 साल के राजनीतिक करियर में विद्या स्टोक्स ने अब तक 10 विधानसभा चुनाव जीते हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत वर्ष 1974 मैं बतौर कांग्रेस प्रत्याशी की थी। उन्होंने पति लालचंद स्टोक्स के निधन के बाद पहली बार ठियोग विधानसभा चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीता था। हालांकि उन्हें दो बार वर्ष 1977 और 1993 में हार का सामना भी करना पड़ा। नामांकन खारिज होने के बाद विद्या स्टोक्स ने हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन कुछ घंटों के बाद ही उन्होंने याचिका वापस लेने का फैसला भी कर लिया था। इस तरह से हिमाचल की सबसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता की राजनीति से अचानक विदाई हो गई है।
क्या था पूरा मामला
कांग्रेस की कद्दावर नेता विद्या स्टोक्स ने अपनी ये सीट वीरभद्र सिंह के लिए छोड़ी थी। 20 अक्टूबर को वीरभद्र सिंह ठियोग से नामांकन करने के लिए तैयार थे। इसी बीच, हाईकमान ने वीरभद्र को ठियोग से अर्की भेज दिया। विद्या स्टोक्स ठियोग से विजयपाल सिंह खाची को उम्मीदवार बनाना चाहती थी। इसी दौरान युवा नेता दीपक राठौर पिक्चर में आए और हाईकमान ने उनके नाम का ऐलान कर दिया। विद्या इससे नाराज हो गईं। ऐन मौके पर हाईकमान ने फिर से विद्या को उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया।
उधर, तकनीकी दिक्कत ये हुई कि राठौर ने अपना नाम वापिस नहीं लिया और नामांकन कर दिया। उन्होंने चूंकि विद्या स्टोक्स से पहले कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर नामांकन किया था, लिहाजा वे ही पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी माने गए। अब यदि विद्या स्टोक्स आजाद उम्मीदवार के तौर पर लड़ती तो नामांकन रद न होता। आजाद प्रत्याशी के तौर पर भी उनके नामांकन के कम से कम दस प्रस्तावक चाहिए थे, जो केवल दो ही थे।
विद्या के पास अधिकृत पत्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की तरफ से था न कि ऑस्कर फर्नांडिस की तरफ से। यहीं पर पेंच फंसा रहा कि क्या सुक्खू इसके लिए अधिकृत हैं या नहीं। भाजपा और माकपा ने उनके आवेदन पर आपत्ति जताते हुए निर्वाचन अधिकारी से शिकायत की थी, जिसे सही पाया गया। एसडीएम ताशी संडूप ने जांच में पाया कि विद्या स्टोक्स ने आधे-अधूरे कागजात जमा करवाए थे।
चुनाव लड़ने के नियम
लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों (लोकल बॉडी) जैसे म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन या प्रधानी (मुखिया) के चुनाव लड़ने के तौर-तरीके बिल्कुल अलग होते हैं।
लोकसभा
- कम-से-कम 25 साल उम्र हो।
- भारत का नागरिक हो।
- भारत के किसी भी राज्य का वोटर हो।
- आरक्षित सीट के लिए किसी भी राज्य की मान्य जाति का हो।
- पागल, विक्षिप्त या कोर्ट से चुनाव लड़ने पर बैन न हो।
विधानसभा
- कम-से-कम 25 साल उम्र हो।
- भारत का नागरिक हो
- जिस राज्य से चुनाव लड़ना है, उसकी वोटर लिस्ट में नाम हो।
- आरक्षित सीट के मामले में कैंडिडेट उसी राज्य की मान्य जाति का हो।
- पागल, विक्षिप्त या कोर्ट से बैन न हों।
म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन
- कम-से-कम 21 साल उम्र हो।
- हर राज्य/संघ शासित राज्य की अपनी नियमावली होती है जिसके तहत कई राज्यों में जिनके तीन बच्चे हैं, उन्हें चुनाव लड़ने पर रोक होती है।
- प्रत्याशी जिस म्यूनिसिपल क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहता है, वहां की वोटर लिस्ट में उसका नाम हो।
नामांकन (नॉमिनेशन) कैसे भरें
- चुनाव आयोग चुनाव की तारीखें घोषित करता और तय वक्त में नामांकन भरना होता है। अमूमन इसके लिए सात दिन की समयसीमा होती है। इसके बाद दो दिन के अंदर नाम वापस लिए जा सकते हैं।
- लोकसभा/विधानसभा चुनाव में पार्टी कैंडिडेट के लिए एक प्रस्तावक और निर्दलीय उम्मीदवार के लिए 10 प्रस्तावक जरूरी हैं।
- चुनाव आयोग के विवेकानुसार चुनाव प्रक्रिया न्यूनतम 14 दिनों में खत्म की जा सकती है। वोटिंग से 48 घंटे पहले सारे प्रचार-प्रसार बंद होना जरूरी है।
कौन-कौन से कागजात जरूरी
नॉमिनेशन फॉर्म के साथ किसी भी कागजात की जरूरत नहीं होती। सिर्फ कैंडिडेट का नाम वोटर लिस्ट में होना चाहिए। हां, नामांकन प्रपत्र में चल और अचल संपत्ति का डिक्लरेशन देना जरूरी होता है। कैंडिडेट दो-तीन सेटों में नामांकन भर सकते हैं, क्योंकि स्क्रूटनी में एक सेट गलत हो गया और दूसरा सेट सही है तो नामांकन रद्द नहीं होता।
जमानत राशि का फंडा
- लोकसभा: 25,000 रुपये
- विधानसभा: 10,000 रुपये
- म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन: ₹500 से ₹1000 रुपये
- आरक्षित वर्ग के लिए यह रकम आधी हो जाती है।
चुनाव में खर्च की सीमा
लोकसभा- अधिकतम ₹ 70 लाख
विधानसभा- अधिकतम ₹40 लाख
म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन- 10,000 से 4 लाख तक
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में संविधान के जानकार सुभाष कश्यप का कहना है कि उम्मीदवारों के नामांकन का रद्द होना कोई नई बात नहीं है। नामांकन फॉर्म में कई कॉलम होते हैं, उम्मीदवारों के वकीलों से अक्सर इस तरह की गल्तियां हो जाया करती हैं। राष्ट्रीय दल या क्षेत्रीय दल मुख्य उम्मीदवार के साथ-साथ डमी प्रत्याशी से भी नामांकन कराते हैं ताकि किसी तरह की गलती की सूरत में उनके उम्मीदवार चुनावी मैदान में बने रहें। हिमाचल चुनाव में जहां विद्या स्टोक्स के नामांकन खारिज होने का मामला है, वो एक तरह से तकनीकी मामला है। लेकिन उसके लिए कांग्रेस की आंतरिक नीति जिम्मेदार है। जब उनसे ये पूछा गया कि क्या इससे पहले किसी बड़े नेता के नामांकन रद्द होने का मामला सामने आया है तो उन्होंने कहा कि जहां तक उन्हें याद आता है ऐसा कोई मामला नहीं है। लेकिन निर्दलीय उम्मीदवारों के नामांकर रद्द होने के मामले सामने आते रहते हैं।
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