विरासत की सियासत: तब जगदेव की हुई थी जय जयकार
Hamirpur BJP leader Jagdev chand किसी दौर में जनसंघ के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय जगदेव चंद ठाकुर की विरासत की सियासत भी रोचक है।
बिलासपुर, राजेश्वर ठाकुर। किसी दौर में जनसंघ के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय जगदेव चंद ठाकुर की विरासत की सियासत भी रोचक है। वह हमीरपुर जिले में जनसंघ, जनता पार्टी और इसके बाद भाजपा नेता के रूप में ऐसे स्थापित हुए कि लगातार पांच बार विधायक बने। वह मंत्री भी रहे। उनके सामने कांग्रेस व भाजपा नेता भी मुकाबले में नहीं टिक पाए। जगदेव चंद ने पहला चुनाव बतौर सांसद लड़ा था। उन्हें हमीरपुर जिले से भरपूर समर्थन मिला लेकिन बिलासपुर व ऊना जिले से कम वोट पडऩे के कारण प्रेम ङ्क्षसह वर्मा से तीन हजार मतों से पराजित हो गए थे। 1993 में उनके निधन होने के बाद छोटे बेटे नरेंद्र ठाकुर ने चुनाव मैदान संभाला।
वह पहले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अनीता वर्मा से हार गए। इसके बाद उनकी भाभी उर्मिल ठाकुर मैदान में उतरी। भाजपा ने उन्हें टिकट दिया और वह जीत गईं। अगला चुनाव हार गईं और फिर जीत गईं। पुनर्सीमांकन के बाद उर्मिल ठाकुर का टिकट बदलकर उन्हें सुजानपुर भेज दिया। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने जगदेव चंद ठाकुर की परंपरागत सीट पर जीत दर्ज की। उर्मिल ठाकुर सुजानपुर से हार गईं और आजाद प्रत्याशी राजेंद्र राणा जीत गए। कांग्र्रेस के टिकट पर राणा ने सांसद का चुनाव लड़ा और अनुराग ठाकुर से हार गए। विधानसभा उपचुनाव में नरेंद्र ठाकुर ने सुजानपुर में कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र राणा की पत्नी अनीता राणा को हराया।
राणा संसदीय चुनाव हार। पिछले विधानसभा चुनाव में नरेंद्र ठाकुर को हमीरपुर से चुनाव मैदान में उतारा गया और वह पिता की कर्मभूमि पर भाजपा का ध्वज बुलंद करने में कामयाब हो गए। सुजानपुर में उनकी जगह पर शिफ्ट हुए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए। इस बीच उर्मिल ठाकुर भाजपा में हाशिए पर धकेले जाने के कारण नाराज होकर कांग्रेस में चली गईं। इससे पहले नरेंद्र ठाकुर भी भाजपा में ऐसी ही परिस्थितियों के कारण कांग्रेस में चले गए थे। 2009 में उन्होंने कांग्र्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था और अनुराग ठाकुर से हार गए। 2012 में उन्होंने हमीरपुर सदर से कांग्र्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए।
हमीरपुर जिले में भाजपा की नींव जगदेव चंद ठाकुर ने ही रखी थी। हमीरपुर सदर सीट से विधायक नरेंद्र ठाकुर ने कहा उनके पिता 1962-63 में जनसंघ के प्रदेशाध्यक्ष बने थे। उस दौर में कांग्रेस का बोलबाला होता था। उनके पिता ने 1967 में सबसे पहले जनसंघ के टिकट पर सांसद का चुनाव लड़ा था। उनके पिता ने हमीरपुर जिले से करीब 10 हजार मतों की लीड ली थी। कांग्रेस प्रत्याशी को ऊना व बिलासपुर में अधिक मिले। उनके पिता तीन हजार मतों से पराजित हुए थे। 1971 में उन्होंने दोबारा सांसद का चुनाव लड़ा और फिर हार गए। अगले वर्ष फिर विधानसभा चुनाव लड़ा और हार गए।
1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए। इसके बाद लगातार पांच बार हमीरपुर सदर के विधायक रहे। इस दौरान वह शांता कुमार की सरकार में मंत्री भी रहे। 1993 में चुनाव जीतने के कुछ माह बाद उनका निधन हो गया। इसके बाद भाजपा ने नरेंद्र ठाकुर को टिकट दिया लेकिन वह कांग्रेस प्रत्याशी अनीता वर्मा से 400 मतों से हार गए। इसके बाद भाजपा ने उनकी भाभी उर्मिल ठाकुर को टिकट दिया और अनिता वर्मा से चुनाव जीत गईं। उर्मिल इस दौरान संसदीय सचिव भी रहीं। 2003 में उन्हें अनीता वर्मा ने हरा दिया, क्योंकि नरेंद्र ठाकुर आजाद प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए थे।
2007-08 में उर्मिल ठाकुर को दोबारा भाजपा ने टिकट दिया और वह चुनाव जीत गईं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राजेंद्र राणा के खिलाफ प्रेम कुमार धूमल को सुजानपुर से चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वह हार गए। जगदेव चंद ठाकुर के बड़े बेटे भूपेंद्र ङ्क्षसह कृषि विभाग से डिप्टी डायरेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। सबसे छोटे बेटे प्रदीप ठाकुर पटलांदर में व्यवसाय करते हैं। जगदेव चंद ठाकुर की दो बेटियां विजया पटियाल व सुनीता ठाकुर हैं।